90 वर्षीय राजाराम भापकर, महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के गुंडेगाँव तालुका में रहते हैं। गुंडेगाँव में वह भापकर गुरूजी के नाम से लोकप्रिय हैं। सफेद कुर्ता-पायजामा और गांधी टोपी इनकी पहचान है। इन्हें महाराष्ट्र के माउंटेन मैन के नाम से भी जाना जाता है। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं उस व्यक्ति की जिन्होंने 57 वर्षो की कड़ी मेहनत से 7 पहाड़ों को काटकर 40 किलोमीटर लंबी सड़क बनाई। यकीन नहीं होता न! परंतु भापकर गुरूजी के अटूट विश्वास, निरंतर प्रयास और अदम्य साहस ने वह कर दिखाया जिसे करने की कल्पना एक आम आदमी शायद कभी न कर पाए। द बेटर इंडिया ने उनके जीवन संघर्ष के बारे में जानने की कोशिश की और उनसे खास बातचीत की।
परपीड़ा को कम करने, खुद सड़क बनाने का बीड़ा उठाया
भापकर गुरुजी बताते हैं, “आज़ादी के वक्त गुंडेगाँव को पास के गाँवों से जोड़ने के लिए पगडंडी तक नहीं थी। मैंने 1957 में कोलेगाँव के ज़िला परिषद स्कूल में काम शुरू किया। मेरे गाँव वालों को स्कूल पहुँचने के लिए तीन गाँवों का चक्कर लगाना पड़ता था। कई बार सरकार से कहा कि 700 मीटर ऊँची संतोषा पहाड़ी को काटकर सड़क बनाएँ, लेकिन कोई मदद नहीं मिली। तब मैंने खुद यह काम अपने हाथ में लिया।”
29 किमी का सफर 10 किमी में सिमट गया
वह बताते हैं, “शुरुआत में कोलेगाँव पहुँचने के लिए देउलगाँव से होकर जाना पड़ता था, जिसके लिए 29 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता था। पहाड़ को काटकर कच्चा रास्ता बनाया तो यह दूरी घटकर 10 किलोमीटर रह गई। सड़क बनाने के काम में मदद करने वालों को मैंने अपनी कमाई से मेहनताना दिया। मैं अपनी सैलरी में से आधा पैसा मजदूरी पर खर्च कर देता था। इन सड़कों को बनाने के लिए एक रुपया भी सरकार से नहीं लिया। 1968 में जिस रास्ते से साइकिल तक नहीं गुजर सकती थी, अब वहां से बड़े-बड़े वाहन गुजरते हैं। 1991 में रिटायरमेंट के बाद जो पैसा मिला, वह भी सड़क पर लगा दिया।”
जरा सोचिए जिस जगह में पहले पगडंडी भी नहीं थी आज उस जगह में बड़े- बड़े वाहन फर्राटे से चल रहे है। आज तो हमने तकनीकी रूप से काफी प्रगति कर ली है, परंतु जिस दौर में भापकर जी ने काम शुरू किया था उस समय उन्हें किन दिक्कतों का सामना करना पड़ा होगा?
क्या कोई इतना विनम्र भी हो सकता है?
भापकर गुरूजी से बात करने के लहजे में एक अलग ही अपनापन है। भापकर गुरूजी बताते हैं, “मैं जनपद स्कूल में शिक्षक था, इसलिए सब मुझे गुरूजी कहते हैं। जिस दिन स्कूल की छुट्टी होती, उस दिन मैं पहाड़ खोदने का कार्य करता था। शुरूआत में तो किसी ने मेरी कोई मदद नहीं की, परंतु धीरे-धीरे लोगों को भी लगा कि ये जो कर रहे हैं उसमें हमारी ही भलाई है और हमें भी इस कार्य में सहयोग देना चाहिए। धीरे-धीरे कारवां बढ़ता गया और लोग स्वेच्छा से इस कार्य में जुड़ने लगे। लोगों की मदद से ही मैं यह कार्य कर पाया।”
गुरूजी से जब पूछ गया कि सड़क बनाने के कार्य में 57 वर्ष लगे, तो क्या तब तक सरकार ने आपकी मदद नहीं की? इसके बारे में उन्होंने कहा, “एक नवा पैसा का मदद नहीं की सरकार ने’, मैंने अपना पेंशन, प्रोविडेंट फंड, ग्रेच्युटी सब इस कार्य में लगा दिया। मेरे बच्चों ने कहा कि ये काम छोड़ दो वरना रोटी नहीं देंगे। मैंने कहा नहीं देना है तो मत दो, पर मैं ये काम नहीं छोडूँगा। 1991में रिटायर हुआ तो रिटायरमेंट के पैसे भी इस कार्य मे लगा दिए।”
57 वर्षो में सात पहाड़ियों को काटकर 40 किमी लंबी सड़क बनाई पर क्या ये कम अवधि है? आज भापकर गुरूजी एक जाना पहचाना नाम है। गूगल में भापकर गुरूजी लिखते ही आपको इनकी उपलब्धि, सफलता और पुरस्कार के बारे में तो जानकारी मिलती है, परंतु इस कार्य को करने में इन्होंने जितना समय, ऊर्जा, संसाधन लगाया, जो मेहनत की, किसी के मदद न करने पर होने वाली निराशा, ये सब नहीं दिखाई देता। आज भले ही हमने उन्हें माउंटेन मैन की उपाधि दी है, लेकिन इस सच को भी झुठलाया नहीं जा सकता कि जब वह बदलाव के लिए काम कर रहे थे तब किसी ने उनकी मदद नहीं की और न ही उनका हौसला बढ़ाया।
शराबबंदी से अपनी जान जोखिम में डाली
सन 2017 में एक बार फिर मीडिया का ध्यान भापकर गुरूजी तरफ गया। अवैध शराब के अड्डे बंद करने की मुहिम शुरु करने पर उन पर गाँव के कुछ असमाजिक तत्वों ने उन पर हमला किया था। एक आरोपी को गिरफ्तार भी किया गया था, जिसके कारण उन्हें गाँव छोड़ने की धमकियाँ मिलने लगी थीं। गुरुजी ने गाँव के शराब बेचने वालों को नेक राह पर चलने क सलाह दी लेकिन उन लोगों ने उनकी बात नहीं मानी और उन पर हमला बोल दिया। इस बारे में उन्होंने कलेक्टर, एस.पी. औऱ समाजसेवी अन्ना हजारे से भी बातचीत की थी। उस घटना को याद कर गुरूजी बताते हैं, “गुंडों ने बहुत मारा था, लेकिन मैंने हार नहीं मानी। लोगों से मिलने वाली धमकियों से मेरे परिवार वाले भी डर गए थे पर मैंने हौसला बनाए रखा और फिर कुछ समय बाद गुंडों ने मुझे धमकियाँ देना बंद कर दिया।”
मेरे दादा जी ग्रेट हैं!
भापकर गुरूजी की पोती श्वेता भापकर बताती हैं, “एक बार मैं दादाजी के साथ उस सड़क पर गई जहाँ दादाजी काम करते थे। वहाँ बहुत से लोग थे, सब उनकी बहुत प्रशंसा कर रहे थे और तब मुझे अहसास हुआ कि मेरे दादाजी में कुछ खास हैं और मेरे दादाजी कितने ग्रेट हैं!” श्वेता की इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि गुरूजी कितनी सादगी से रहते हैं और अपने काम का प्रचार खुद नहीं करते हैं।
अब 90 वर्ष की आयु में जामुन के पेड़ लगा रहे हैं गुरूजी
भापकर गुरूजी अब जो कर रहे हैं वह देश के तमाम पर्यावरणविदों, समाजिक कार्यकर्ताओं और जल-जंगल-ज़मीन के विषय पर काम करने वाली संस्थाओं के लिए एक मिसाल है। वह इन दिनों तालाब के किनारे जामुन के पेड़ लगाने की योजना पर काम रहे हैं। उनका लक्ष्य 5 लाख जामुन के पेड़ लगाने का है। फिलहाल वह बीज इकट्ठा कर नर्सरी में उनके पौधे बना रहे हैं। वन विभाग इसमें उनकी सहायता कर रहा है। भापकर गुरूजी ने लोगों से अपील की है कि है कि वे जामुन के बीज उनके पास डाक से या अन्य सम्भव तरीके पहुँचाएँ, ताकि वह ज़्यादा से ज़्यादा पेड़ लगा सकें।
भापकर गुरूजी एक साधारण इंसान हैं लेकिन उनकी इच्छाशक्ति असाधारण है। शायद उनके मन में भी कभी यह विचार आया होगा कि मैं अकेले ऐसा कैसे करूँगा? पैसा कहाँ से आएगा? मैं यह कर पाऊँगा भी या नहीं? पर उनके इन सारे सवालों का जवाब सिर्फ एक ही था- ‘कर्म करो’। वह करते गए और रास्ते खुलते गए। यह सब उनकी मजबूत इच्छाशक्ति की वजह से संभव हो सका है। द बेटर इंडिया भापकर गुरूजी के जज्बे को सलाम करता है।
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