Site icon The Better India – Hindi

कर्ज में डूबे ऑटो चालक के लिए मसीहा बना समाज, जानिए पूरी कहानी

Community Comes Together

लॉकडाउन के दौरान देश भर में कई लोग बेरोजगार हुए। कुछ ने हिम्मत नहीं हारी और खुद पर भरोसा बनाए रखा तो वहीं कुछ लोग मन से टूट गए। लेकिन कहते हैं न कि इसी समाज में बहुत से लोग ऐसे हैं जो आज भी नि:स्वार्थ भाव से लोगों की मदद करने सामने आ जाते हैं।

आज द बेटर इंडिया आपको एक ऐसे ओटो रिक्शा चालक की कहानी सुनाने जा रहा है, जो कर्ज के बोझ तले डूब चुका था और उसके पास इतने भी पैसे नहीं बचे थे कि वह अपने माता-पिता को सुबह-शाम खाना खिला सकता। ऐसे में वह उन्हें किसी तीर्थ स्थल पर छोड़ने चला गया लेकिन उसी दौरान किसी ने उसका विडियो बनाकर वायरल कर दिया। उसके बाद जो कुछ भी हुआ, उसने उस ओटो रिक्शा चालक की जिंदगी बदल दी।

आइए जानते हैं पूरी कहानी 

पिछले महीने इंटरनेट पर पुणे के एक ऑटो ड्राइवर का वीडियो वायरल हुआ था, जो अपने माता-पिता को निःसहाय छोड़ने जा रहे थे।

हडपसर के मंजरी इलाके में रहने वाले शिवाजी कांबले, अपने निवास स्थान से करीब 30 किलोमीटर दूर, तीर्थ स्थल अलंदी में, अपने माता-पिता को छोड़ने जा रहे थे। यहाँ कुछ प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा उनके वीडियो को शूट किया गया, क्योंकि उन्हें संदेह था कि शिवाजी अपने माता-पिता को छोड़ कर जा रहे हैं।

अपने ऑटो रिक्शा को वापस पाने के बाद शिवाजी

जब स्थानीय लोगों ने शिवाजी का विरोध किया, तो उन्होंने स्वीकार किया कि वह अपने माता-पिता को छोड़ने जा रहे थे, लेकिन बाद में वह उन्हें वापस ले लेते।

लेकिन, स्थानीय लोगों के सामने उनकी न चली और वह अपने माता-पिता को घर ले जाने के लिए मजबूर हुए। वीडियो की शूटिंग करने वाले व्यक्ति के अनुसार, शिवाजी नाना क्षीरसागर रिक्शा संगठन के सदस्य थे।

बाद में, सोशल मीडिया के जरिए यह वीडियो महाराष्ट्र कामगार महामंडल के अध्यक्ष केशव क्षीरसागर के पास पहुँचा – जो कि शिवाजी के ऑटो-रिक्शा संघ का मूल निकाय है। 

इसके बाद, केशव ने शिवाजी के बारे में और अधिक जानकारी हासिल करने पर जोर दिया।

केशव, जो कि पेशे से एक फिजीशियन भी हैं, कहते हैं, “हमने अपने स्त्रोतों के माध्यम से उन्हें खोजा, ताज्जुब की बात है कि वीडियो पूरी तरह से सही था। जब हमने शिवाजी से पूछा कि उन्होंने ऐसा कठोर कदम क्यों उठाया, तो हमें चौंकाने वाले कारण जानने को मिले।”

केशव कहते हैं कि जब वह 40 वर्षीय ड्राइवर से मिले, तो वह रोने लगे और कहने लगे की अब उनके जीने की इच्छा खत्म हो गई।

वह कहते हैं, “शिवाजी गहरे दर्द में थे, और उन्हें ढाढ़स देने के बाद, उन्होंने मुझे बताया कि कोरोना महामारी के कारण, उनके परिवार को गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। उनके पास आय का कोई साधन नहीं है और जिस फाइनेंस कंपनी से कर्ज लेकर उन्होंने वाहन खरीदा था, उसे जब्त कर लिया गया।”

इस कड़ी में शिवाजी कहते हैं, “ऑटो रिक्शा के लिए मुझे 2500 रुपए का मासिक किस्त भरना पड़ता था। लेकिन, लॉकडाउन शुरू होने के बाद मेरे लिए यह मुश्किल हो गया। मेरे पास आय का कोई दूसरा साधन नहीं था, इसलिए मैं किस्त चुका न सका। यहाँ तक कि मेरे लिए अपने तीन बच्चों, पत्नी और माता-पिता का ध्यान रखना भी मुश्किल हो गया।”

वह आगे कहते हैं, “किस्त नहीं चुकाने के कारण, उनके ऑटो को जब्त कर लिया गया। इसके बाद, मैंने अपने माता-पिता को अस्थायी रूप से तीर्थ स्थली पर छोड़ने का फैसला किया। यह मेरे लिए काफी मुश्किल था, लेकिन तनाव और आर्थिक कठिनाइयों के कारण, मैं मजबूर था। क्योंकि कई तीर्थयात्री भोजन दान करते हैं और मुझे लगा कि यहाँ उन्हें कम से कम पेट भर खाने को मिलेगा। एक बार वित्तीय रूप से स्थायी हो जाने के बाद, मैं उन्हें वापस ले आता।”

शिवाजी को अहसास था कि उनका यह फैसला गलत है, लेकिन उनके पास कोई और विकल्प नहीं था।

वह कहते हैं, “वे मेरे माता-पिता हैं। उन्होंने मुझे पाल-पोष कर बड़ा किया है। मैं उन्हें कभी नहीं छोड़ता। लेकिन, मेरी कमाई का एकमात्र जरिया खो जाने के कारण में असहाय था।”

केशव ने बताया कि शिवाजी के माता-पिता के साथ बातचीत करने के बाद, उन्हें मालूम हुआ कि उन्हें शिवाजी की स्थिति के बारे में पता था और वह उनकी इच्छा के खिलाफ कुछ नहीं कर रहे थे।

शिवाजी की पूरी कहानी सुनने के बाद, केशव ने संघ के कुछ अन्य सदस्यों के साथ, उनकी मदद करने का फैसला किया।

शिवाजी की मदद के लिए सामने आए कई लोग

“हमने सबसे पहले शिवाजी को ढांढ़स बंधाया, क्योंकि वह काफी चिन्ता में थे। हमने उन्हें हर संभव मदद करने का वादा किया। इस क्रम में, हमारा सबसे पहला कदम यह था कि हम उस फाइनेंस कंपनी के पास गए, जिससे शिवाजी ने कर्ज लिया था। हमने कंपनी से मानवीय आधार पर ऑटो वापस करने का आग्रह किया। इस तरह, उन्होंने किस्तों को भरने के लिए फरवरी तक का समय दिया,” केशव कहते हैं।

इसके बाद, कुछ संघ के कुछ सदस्यों ने शिवाजी के लिए राशन-पानी की व्यवस्था भी की और सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होने के बाद, कई अन्य लोग भी उनकी मदद के लिए सामने आए। इस तरह, शिवाजी के पास अब छह महीने के लिए पर्याप्त राशन की व्यवस्था हो गई।

इतना ही नहीं, पुणे के एक शख्स ने शिवाजी को ईएमआई भरने में भी मदद की पेशकश की। वह एक मार्केटिंग प्रोफेशनल हैं, लेकिन अज्ञात रहना चाहते हैं। 

वह कहते हैं, “मुझे शिवाजी के बारे में सोशल मीडिया के जरिए पता चला। इसके बाद, मैं ऑटो-रिक्शा यूनियन के अध्यक्ष के पास पहुँचा और जो वित्तीय सहायता के लिए राजी हो गए। मैंने शिवाजी को 10000 रुपए के साथ मदद की, जिसका मतलब है कि उन्हें चार महीने के लिए थोड़ी राहत मिल जाएगी।”

शिवाजी जैसे दर्जनों मामले

केशव कहते हैं, “शिवाजी का मामला ऐसे कई मामलों में से केवल एक है। ड्राइवरों के लिए यह समस्या और अधिक गंभीर हो जाती हैं, क्योंकि उन्हें बैंक से राहत विकल्पों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती है।”

इससे निपटने के लिए उन्होंने यूट्यूब पर वीडियो बनाना शुरू कर दिया है, ताकि अधिक से अधिक ड्राइवरों को जागरूक किया जा सके। इस चैनल का नाम बघतोय रिक्शावाला है।

वह अंत में कहते हैं कि शिवाजी का जो वीडियो वायरल हुआ, वह एक उदाहरण है कि कैसे एक असहाय व्यक्ति को समाज में खलनायक के रूप में पेश किया जाता है। ठीक वही लोग, शिवाजी की सच्चाई को समझने और मदद करने की कोशिश कर सकते थे, जिससे उन्हें अपनी परिस्थितियों को सुधारने में मदद मिल सकती थी।

मूल लेख –

संपादन – जी. एन झा

यह भी पढ़ें – अमेरिका से लौट, हजारों देशवासियों के आँखों को दी नई रोशनी, मिला 3 मिलियन डॉलर का पुरस्कार

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।

Community Comes Together, Community Comes Together, Community Comes Together, Community Comes Together,Community Comes Together

Exit mobile version