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IAS का कमाल, कार्बन क्रेडिट से 50 लाख रूपये कमाने वाला देश का पहला शहर बना इंदौर

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आज दुनियाभर में जलवायु संकट का खतरा दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है, इससे निपटने के लिए सरकारें पेट्रोल-डीजल से चलने वाली कारों पर रोक लगाते हुए वैकल्पिक साधनों को अपना रही है, ताकि कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद मिले।

हालांकि, पर्यावरण के अनुकूल समाधान को अपनी प्रारंभिक लागतों के कारण अव्यावहारिक माना जाता है। खासकर, जब बात करदाताओं के पैसे को खर्च करने की हो।

लेकिन, मध्य प्रदेश के इंदौर की एक आईएएस अधिकारी ने परियोजनाओं के लिए अर्जित कार्बन क्रेडिट को बेचने के बाद, इससे 50 लाख रुपए का राजस्व हासिल कर, ग्रीन प्रोजेक्ट को मोनेटाइज करने का तरीका खोज लिया है।

बता दें कि कार्बन क्रेडिट विभिन्न देशों या कंपनियों के द्वारा ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करने के बाद प्राप्त किया गया प्रमाण-पत्र है, जिसे सर्टिफाइड उत्सर्जन कटौती या कार्बन क्रेडिट कहा जाता है।

स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट की मुख्य कार्यकारी अधिकारी अदिति गर्ग ने द बेटर इंडिया को बताया, “यह पहला मौका है, जब देश के किसी स्मार्ट शहर ने अपने सस्टेनेबल प्रोजेक्ट के जरिए इस ढंग से राजस्व अर्जित करने में सफल हुआ।”

ग्रीन प्रोजेक्ट से लाखों का राजस्व

इंदौर के कबीट खेड़ी स्थित बायोमिथेनेशन प्लांट

“पर्यावरण के अनुकूल परियोजनाओं को आर्थिक रूप से अव्यावहारिक समझा जाता है, क्योंकि इसमें काफी निवेश की जरूरत होती है। ऐसी परियोजनाओं को अक्सर सामाजिक या पर्यावरणीय तौर अपनाया जाता है। पर्यावरण और जलवायु, कोई लाभ की वस्तु नहीं है। इसलिए, मैं, कम लेकिन महत्वपूर्ण पैसे कमाकर इस धारणा को चुनौती देना चाहती थी,” अदिति कहती हैं।

वह आगे बतातीं हैं, “इंदौर लगातार चार वर्षों से भारत का सबसे स्वच्छ शहर है और 10 महीने पहले, इंदौर स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट लिमिटेड (ISCDL) द्वारा संयुक्त राष्ट्र का जलवायु परिवर्तन पर फ्रेमवर्क कन्वेंशन के सत्यापित कार्बन मानक (VCS) कार्यक्रम के तहत तीन परियोजनाओं को शुरू किया गया – एक बायो-मेथनेशन प्लांट, एक कम्पोस्ट प्लांट और 1.5 मेगावाट सोलर प्लांट।”

इन परियोजनाओं ने शहर में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को 1.7 लाख टन कम करने में मदद की। 

अदिति बताती हैं, “एक टन कार्बन डाइऑक्साइड एक कार्बन क्रेडिट के बराबर होता है। इसका भुगतान 0.05 डॉलर प्रति टन की दर से किया गया था।”

प्रक्रियाओं के बारे में अदिति कहती हैं, “एजेंसियों के साथ परियोजनाओं को पंजीकृत करने के बाद, इसका डाक्यूमेंटेशन करना पड़ता है। इसके बाद, एजेंसी द्वारा परियोजना की विश्वसनीयता और क्षमता की पुष्टि करने के बाद कार्बन क्रेडिट के साथ प्रमाण-पत्र जारी किए जाते हैं। बाद में, इन प्रमाणपत्रों के जरिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में कारोबार किया जा सकता है।”

चुनौतीपूर्ण था कार्बन क्रेडिट बेचना

इंदौर के छोइतराम मंडी में लगा बायोमिथेनेशन प्लांट

अदिति बताती हैं, “कार्बन क्रेडिट को बेचना काफी चुनौतीपूर्ण कार्य था और इस दौरान काफी सीखने के लिए मिला। जैसा कि हम इस परियोजना को लेकर देश में अग्रणी थे, इसलिए हमारे पास अनुसरण करने का कोई खाका नहीं था। आरंभ में, खरीदारों को आश्वस्त करना काफी कठिन था, क्योंकि इंदौर, वैश्विक खरीदारों के लिए कोई मेट्रो सिटी नहीं है।” 

वह कहती हैं, “हमने विशेषज्ञों की तलाश की और कार्बन क्रेडिट के लिए बोली लगाने की प्रक्रिया सीखी। कुछ शोधों के बाद, हमने अधिक बोली लगाने का फैसला किया और कार्बन क्रेडिट के बड़े हिस्से को छोटे-छोटे खंडों में विभाजित किया, ताकि खरीदार आसानी से मिल जाएं।”

अदिति कहतीं हैं कि अन्य विक्रेताओं के साथ तुलना के बाद, उन्हें कार्बन क्रेडिट के लिए अच्छी कीमत मिल रही है। इस तरह, उन्होंने कुल लागत का 1.5% रिटर्न अर्जित किया, जबकि उम्मीद 1% से भी कम की थी।

अन्य ग्रीन प्रोजेक्ट को बढ़ावा

यह सफलता इस बात का उदाहरण है कि पर्यावरण परियोजनाओं की लागत को कैसे कम किया जा सकता है।

इंदौर नगर निगम का ट्रेंचिंग ग्राउंड।

अदिति बतातीं हैं, “इस राजस्व का इस्तेमाल दूसरे स्मार्ट, ग्रीनर, सस्टेनेबल और एनर्जी-इफिसिएंट परियोजनाओं में किया जाएगा। हमने सौर ऊर्जा संयंत्र के लिए एक परियोजना का प्रस्ताव दिया है, जहाँ इस धन का इस्तेमाल किया जा सकता है।”

शहरी विकास मंत्रालय ने अदिति के इस उपलब्धि का संज्ञान लेते हुए, एक प्रेजेंटेशन माँगी है और इसे दोहराने के लिए केस स्टडी को साझा किया है।

अदिति ने कहा, “हमारा अगला कदम पर्यावरण परियोजनाओं को व्यक्तियों और निजी संस्थानों को जोड़ते हुए, उन्हें मोनेटाइज करने का होगा। क्योंकि, उनके पास सौर ऊर्जा संयंत्र, या कंपोज़िटिंग यूनिट या अन्य ग्रीन सॉल्यूशंस हैं। हम उन्हें बड़ी परियोजनाओं में शामिल करेंगे और आर्थिक लाभ कमाने में मदद करेंगे।”

इस कड़ी में, अर्बन प्लानर प्रिया कंचन का कहना है, “कार्बन उत्सर्जन की भरपाई करना काफी फायदेमंद है और इसके आर्थिक तौर पर, अव्यावहारिक होने की धारणा गलत है। इस परियोजना से जमीन की काफी बचत होने के साथ पर्यावरण को भी लाभ हुआ। यह एक ऐसा उदाहरण है, जिससे सरकारी एजेंसियों को प्रेरणा मिलनी चाहिए कि ग्रीन प्रोजेक्ट्स से भी राजस्व मिल सकते हैं।”

द बेटर इंडिया स्मार्ट सिटी इंदौर की आईएएस अधिकारी अदिति गर्ग की इस अनोखी पहल की सराहना करता है।

मूल लेख:

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संपादन: जी. एन. झा

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