भारत में आप कभी ऐसे किसी किसान से मिले हैं जो अपने बच्चों को किसान बनाना चाहता हो? अगर नहीं, तो चलिए आज ऐसे एक किसान से हम आपकी भेंट करवाते हैं। अशोक रामेश्वर पंवार, जी हाँ, अशोक चाहते हैं कि एक दिन उनका बेटा उनसे भी अच्छा और सफल किसान बनें।
मध्य-प्रदेश के देवास ज़िले के रिजगांव से ताल्लुक रखने वाले अशोक एक किसान हैं। उन्हें हमेशा से खेती करना पसंद था और इसीलिए उन्होंने दसवी के बाद स्कूल छोड़ दिया और अपने पिता के खेतों की जिम्मेदारी उठा ली।
31 वर्षीय अशोक ने मात्र 16 साल की उम्र में खेती करना शुरू किया था। उन्होंने अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए रसायनों का उपयोग कर सोयाबीन, चने, गेहूं और कपास की पारंपरिक खेती की।
“हालांकि, मेरे बड़े भाई हैं, पर फिर भी मैंने खेती करना पहले शुरू कर दिया था। मेरा कृषि की तरफ झुकाव था और मैं पढ़ाई पर ध्यान नहीं लगा पाता था,” उन्होंने बताया। आगे उन्होंने बताया, “मेरे पिता भी बहुत पढ़े-लिखे नहीं थे, कोई भी किसान शिक्षित नहीं था उस समय। उन्होंने मिट्टी, पर्यावरण और हम पर उनके दुष्प्रभाव को जाने बिना ही रसायनों का उपयोग करना शुरू कर दिया था। फिर यह जरूरी हो गया क्योंकि रासायनिक उर्वरकों ने हमें ज्यादा उपज मिल रही थी।”
दो साल पहले, अशोक को विनय यादव से मिलने का मौका मिला। जिन्होंने ‘वरदा किसान’ क्लब नामक एक किसान-निर्माता कंपनी शुरू की है, जहां किसानों को जैविक खेती करने की ट्रेनिंग मिलती है।
विनय ने अशोक को जैविक खेती के महत्व को समझने के लिए पद्म पुरस्कार से सम्मानित सुभाष पालेकर द्वारा प्रशिक्षण दिलवाया।
“इस प्रशिक्षण ने हमारी आँखे खोल दी। हमें रासायनिक खेती के खतरों के बारे में पता चला। उन्होंने हमें दो बर्तन दिखाए जहां वे टमाटर उगाते थे। एक में उन्होंने रासायनिक उर्वरक डाले थे, और दूसरे में गाय का गोबर और प्राकृतिक उर्वरकों से पोषित कर उगाये थे। तब उन्होंने हमसे पूछा कि हम कौन से टमाटर खाना पसंद करेंगे; जवाब काफी स्पष्ट था,” अशोक ने बताया।
अशोक के पास 18 एकड़ जमीन है और वे मानते हैं कि लोग किसानों पर आँखें मूंदकर भरोसा करते हैं। इसलिए एक किसान अपने उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य के लिए ज़िम्मेदार है।
“मेरे अनुसार, अगर देश को स्वस्थ भोजन नहीं मिल रहा है, तो फिर किसानों की ज़रूरत ही क्या है,” वे पूछते हैं।
प्रशिक्षण ख़त्म होने के बाद वापस आकर, उन्होंने 1000 वर्ग मीटर क्षेत्र में एक नेट-हाउस बनाया और तापमान को बनाए रखकर ऑफ-सीजन सब्जियों और फूलों को व्यवस्थित रूप से उगाया। उनके गांव के दस और किसानों ने प्रशिक्षण पूरा किया और उनके जैसे ही ऑफ-सीजन सब्जियां उगायीं। वे विनय यादव द्वारा शुरू किए गए एफपीओ (किसानों की कंपनी) में शामिल हो गए और जैविक उपज में योगदान दिया।
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एफपीओ कल्पवल्ली ग्रीन्स प्रोड्यूसर कंपनी से जुड़ा हुआ है, जो इन सब्जियों को मार्किट में बेचती है।
“एक व्यक्ति रात में हमारे खेतों से सब्जियां इकट्ठा करता है। शहरी क्षेत्रों में हर घर में देने से पहले उन्हें छांटने और साफ़ करने के बाद पैक किया जाता है। सब्जियों का आर्डर व्हाट्सएप के माध्यम से लिया जाता है,” उन्होंने कहा।
अशोक मानते हैं कि जैविक खेती शुरू में बेशक लाभदायक न रहे, पर लम्बे समय के लिए यह अच्छी है। यह मिट्टी को स्वस्थ और अधिक उपजाऊ बनाती है।
“यदि आज आप मेरे खेतों की जाँच कराते हैं, तो आपको जैविक खेती वाले खेतों और रासायनिक खेतो के बीच का अंतर् पता चलेगा। खेतों की मिट्टी इतनी मुलायम हो गयी है कि आप चलेंगे तो आपके पैर मिट्टी में धंस जाते है,” अशोक बताते हैं।
अशोक ने न केवल खेती में उर्वरक बदले बल्कि खेती करने का तरीका भी बदला। जब भी मौका मिलता वे किसानों के लिए हो रहीं वर्कशॉप में हिस्सा लेते और वहां से जो भी आधुनिक तकनीक सीखते, उसे अपने खेतों में प्रयोग करते।
किसानों को उन्होंने धीरे-धीरे रासायनिक उर्वरक कम करने की सलाह दी।
ये कुछ तकनीकें, वे फार्म में इस्तेमाल करते हैं –
1. नियमित तापमान बनाए रख कर ऑफ-सीजन में सब्जियों का उत्पादन करने के लिए नेट हाउस
2. सोलर पंप, जिससे बिजली की बचत होती है और साथ ही, बिजली न होने पर भी यह काम करते है
3. पानी बचाने के लिए ड्रिप सिंचाई
4. पलवार फसल (मल्चिंग)
5. वर्मी-कम्पोस्ट और जैव गैस संयंत्र का एक दोहरा मॉडल
अशोक फसल के बाद खेत के अवशेषों को कभी नहीं जलाते है। वह उन्हें वर्मीकंपोस्ट प्लांट में रखते हैं और इसे उर्वरक के रूप में उपयोग करते हैं। स्लरी का उपयोग बायो-गैस संयंत्र में किया जाता है जो पूरे परिवार के लिए खाना पकाने के लिए पर्याप्त ईंधन उत्पन्न करता है।
“मैंने पिछले पांच महीनों से अपने खेत में यह प्लांट लगाया है और मेरे घर की महिलाएं इससे बेहद खुश हैं। क्योंकि उन्हें धुआंरहित व गंधरहित ईंधन मुफ्त में मिल रहा है,” उन्होंने कहा।
6. जैविक खेती में उपयोग किए जाने वाले जीवामृत को साफ़ करने के लिए खुद से बनाया हुआ एक फ़िल्टर
“शुरू में जीवामृत बनाना बहुत ही थका देने वाला काम था। क्योंकि इसे तीन बार छानना पड़ता है। इसलिए मैंने यह आसान सा यंत्र बनाया, जिससे मैं एक ही साथ तीन बार इसे साफ़ कर सकता हूँ।”
“मैं हमेशा अपने पढ़े-लिखे दोस्तों को देखकर छोटा महसूस करता था। लेकिन अब अन्य राज्यों से भी कृषि छात्र और यहां तक कि उच्च अधिकारी मेरे खेतों में दौरे पर आते हैं। जिन तकनीकों का मैं उपयोग करता हूँ, उनके बारे में जानते हैं। इससे मुझे लगता है कि हमारे जैसे किसान भी महत्वपूर्ण हैं। अन्य किसानों की तरह, मैं भी नहीं चाहता था कि मेरे बेटे किसान बनें, भले ही उन्हें खेती पसंद क्यूँ न हो। लेकिन अब, मैं उसे अच्छी तरह से पढ़ाई करने के लिए कहता हूँ ताकि वह बेहतर तकनीक का उपयोग कर सके जो मैं नहीं कर सकता क्योंकि मैं अंग्रेजी नहीं पढ़ सकता। उसके बाद, मैं चाहता हूँ कि वह एक सफल किसान बनें,” अशोक मुस्कुराते हुए कहते हैं।
अशोक चाहते हैं कि हर किसान जैविक तरीके से खेती करे। जहां भी अशोक को बुलाया जाता है, वे वहां जाकर किसानों को मुफ्त में प्रशिक्षित करते हैं। साथ ही वे किसानों से अपील करते हैं कि वे उन्हें फोन करके बुला सकते हैं या फिर उनके खेत पर आ सकते हैं। उन्हें प्रशिक्षण निःशुल्क प्रशिक्षण देने में अशोक को बहुत ख़ुशी होगी।
आप +91 9977111532 पर अशोक पंवार से संपर्क कर सकते हैं।