मध्य-प्रदेश: लाखों की नौकरी छोड़ बने किसान; बिचौलियों से मुक्त करा रहे है किसानों को!

प्रतीक शर्मा का जन्म मध्य प्रदेश में भोपाल के नजदीक एक गांव में किसान परिवार में हुआ था। भोपाल से पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें कोटक महिंद्रा बैंक में नौकरी मिली। 10 साल बैंकर के तौर पर काम करने के बाद उन्होंने जैविक खेती करना शुरू किया।

प्रतीक शर्मा का जन्म मध्य प्रदेश में भोपाल के नजदीक एक गांव में किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने 10 साल की उम्र में अपने परिवार के साथ खेती करना शुरू किया। लेकिन उच्च शिक्षा के लिए कक्षा 8 के बाद भोपाल चले गए। कुछ साल बाद, प्रतीक को कोटक महिंद्रा बैंक के मैनेजर की नौकरी मिली।

बैंकिंग के 10 वर्ष काम करने के चलते उनका जीवन बहुत आरामदायक था। उन्होंने कोटक बैंक में ही काम करने वाली प्रतीक्षा से शादी की।

प्रतीक शर्मा अपनी पत्नी प्रतीक्षा के साथ

लेकिन, प्रतीक को कॉर्पोरेट जीवन नहीं भाया क्योंकि उसका दिल हमेशा खेती में ही था।

“जब मैं 20 साल बाद अपने गांव गया तो मुझे एहसास हुआ कि हर कोई गांव से बाहर जा रहा है लेकिन कोई भी वापस नहीं आ रहा। शहर तीव्र गति से विकास कर रहे हैं, लेकिन गांव वहीं है जहां यह 20 साल पहले था,” प्रतीक ने बताया।

सप्ताह के बाकी दिन एक बैंकर के तौर पर काम करने वाले प्रतीक ने वीकेंड पर अपने गांव धाबा खुर्द में अपनी 5 एकड़ जमीन में काम शुरू किया।

2015 के अंत तक, प्रतीक ने विदेशी और ऑफ सीजन सब्जियां उगाने के लिए अपने खेत पर एक पॉली हाउस बना लिया था। प्रतीक ने सोचा कि जब खेती से पर्याप्त कमाई होने लगेगी तो वह बैंक की नौकरी छोड़ देगा। लेकिन खेती से एक स्थायी कमाई करना बहुत मुश्किल है।

उन्हें अहसास हुआ कि खेती में लगने वाली लागत कमाई से अधिक है। जिसका एक मुख्य कारण है किसानों का सीधा वैल्यू  चैन में शामिल न होना, जिससे वे स्वयं अपनी फसल का दाम तय नहीं कर सकते।

प्रतीक ने बताया,

“यदि कुछ 10 रूपये में बेचा जा रहा है तो उसकी लागत 6 रूपये है, जो कि बहुत ज्यादा है। इसके अलावा कीटनाशकों पर भी खर्चा होता है। मैंने टमाटर की खेती के लिए 26000 हज़ार रूपये सिर्फ पेस्टीसाइड पर खर्च किये।”

प्रतीक के अनुसार, किसानों को भी मंडी में अपनी सब्जियों और अनाज के परिवहन के लिए भुगतान करना पड़ता है। और जब वह व्यापारी के पास किसानों को कीमत तय करने की अनुमति नहीं है। उन्हें बाजार मूल्य के आधार पर फसल बेचनी पड़ती है ना कि उसकी लागत के अनुसार, जो कि अधिकतर समय बहुत ज्यादा  है। दूसरी ओर व्यापारी अपनी तय कीमत पर फसल बेचता है और उसे लाभ होता है।

“जब मैं पहली बार अपने टमाटरों को मंडी लेकर गया तो मुझे ट्रांसपोर्ट के 900 रूपये अपनी जेब से देने पड़े। इसके अलावा मेरे अत्यधिक गुणवत्ता वाले टमाटरों को 1.25 रूपये/किलोग्राम के हिसाब से बेचा गया। तब मुझे लगा कि यह मॉडल किसानो के लिए लाभकारी नहीं है। किसानों के लिए अपनी एक वैल्यू चैन होना बहुत आवश्यक है,” प्रतीक ने द बेटर इंडिया को बताया।

किस्मत से प्रतीक की मुलाकात एक और शिक्षित किसान विनय यादव से हुई। उनके भी विचार बिलकुल यही थे। दोनों ने बिचौलियों को छोड़कर अपनी खुद की वैल्यू चैन शुरू करने और अपनी सब्जियां और अनाज को बेचने का फैसला किया। उनके द्वारा उगाई गयी सब्ज़ियां काफी नहीं थी, इसलिए दोनों ने किसानों का एक  समूह बनाने का फैसला किया।

“किसी भी ग्राहक को सम्पर्क करने के लिए उचित मात्रा में अलग-अलग प्रकार की सब्जियां आपके पास होने चाहियें। जो सिर्फ दो लोगों के लिए उगाना मुमकिन नहीं था। इसलिए हमें 10-12 जैविक किसानों को इकट्ठा करने में 5-6 महीने लग गए।”

अगले कुछ महीनों में उन्होंने पूरे देश में सभी सफल कृषि मॉडल का अध्ययन किया और यहां तक ​​कि अभिनव किसान क्लब, पुणे से भी प्रशिक्षण लिया। एक बार योजना तैयार हो जाने के बाद, समूह को कल्पवल्ली ग्रीन्स प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड के नाम से एक किसान निर्माता संगठन (एफपीओ) के रूप में पंजीकृत कराया गया।

सभी सदस्यों ने एफपीओ को एक एकड़ जमीन व एक गाय दी। इसके अलावा बैंक से फण्ड लिया गया। हालाँकि, पहले साल वे असफल रहे, क्योंकि कई किसान सिर्फ अनाज की खेती करते थे। सब्जियां उगाने का वह उनका पहला मौका था। इसके अलावा मुख्य कारण था उनका फ़र्टिलाइज़र से हटकर आर्गेनिक खेती करना।

प्रतीक ने कहा, “जब आप केमिकल से आर्गेनिक पर जाते हो तो इसका मतलब है किसी को आईसीयू से बाहर लाना। इसके लिए आपको इंतज़ार करना पड़ता है। पहले आप उसे पोषण दीजिये फिर वह कोई काम कर पायेगा।”

प्रतीक  सरे नुकसान की जिम्मेदारी ली। बाकी किसानों को फसल का उचित दाम दिया गया। दूसरी बार जब जमीन पर आर्गेनिक खेती की गयी तो वह सफल रही। एफपीओ को दूसरे साल फायदा हुआ।

अपनी दूसरी फसल के साथ टीम का विश्वास बना रहा।

साल 2016 के अंत में आखिरकार प्रतीक ने अपनी नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह से खेती पर ध्यान देना शुरू किया।

प्रतीक की पत्नी ने कोटक के साथ काम जारी रखा और प्रतीक के फैसले में उनका साथ दिया। प्रतीक को मार्केटिंग का अच्छा-खासा अनुभव था। जिसे उन्होंने अपने उत्पादन के लिए इस्तेमाल किया।

उनका मॉडल बहुत कम लागत का है- प्रतीक अपनी कार से हर एक फार्म में जाकर सब्जियां इकट्ठी कर भोपाल लेकर आते हैं। उन्हें धोकर, उनकी पैकिंग कर ग्राहकों तक पहुंचाया जाता है।

व्हाट्सअप ग्रुप्स के चलते दोस्त, परिवार व सहयोगियों से आर्डर लेना आसान हो गया है।

“16 नवंबर 2016 को मैं भोपाल में पहली बार बहुत सी सब्ज़ियां लेकर आया। अभी तक मैं अकेले ही अपनी कार में सब्जियां बेचता हूँ। मैं स्वयं ग्रहकों तक सब्जियां पहुंचता हूँ। ताकि उन्हें भी खेतों से जोड़ा जा सके।”

अब उपज बढ़ रही है तो प्रतीक सप्ताह में दो बार मंडी में सब्जियां ले जाते हैं।

“लोग जैविक चीज़ों की कीमत के चलते उसे नहीं खरीदते हैं। हमारा उद्देश्य सब्जियों की कम से कम कीमत रखना है ताकी अधिक लोगों को पौष्टिक आहार मिले,” प्रतीक ने कहा।

टीम के पास अब 300 से अधिक ग्राहक हैं और अधिक किसान एफपीओ में शामिल होने के लिए तैयार हैं।

ऐसे किसान जिन्हें अपनी जैविक उपज के लिए अच्छी कीमत नहीं मिल रही थी, उन्हें अब एफपीओ द्वारा मदद की जा रही है। टीम को अपने ग्राहकों से ऑफर भी मिलते हैं कि वे उनके खेत इस्तेमाल कर सकते हैं। उन्होंने अब सब्जियों के साथ अनाज और दालों की आपूर्ति शुरू कर दी है। जल्द ही वे देसी गायों से दूध की आपूर्ति करने की भी योजना बना रहे हैं। प्रतीक्षा ने भी अपनी नौकरी छोड़ दी है और जल्द ही वह एफपीओ के लिए काम करेंगीं।

हाल ही में टीम ने धाबा खुर्द और नाथ्रुला गंज में दो किसान संसाधन केंद्र शुरू किए हैं, जहां से जैविक खेती में रूचि रखने वाला किसान मुफ्त प्रशिक्षण ले सकता है और अपने उत्पादन को बेचने के लिए कल्पवल्ली ग्रीन्स के साथ एग्रीमेंट कर सकता है। यह केंद्र जैविक खेती के लिए आवश्यक सभी संसाधन भी प्रदान करता है।

प्रतीक ने बताया,

“मैं अपने गांव वापस आया था क्योंकि खेती मेरा पहला प्यार था। जब मैं अपने गांव गया थक तो मैंने कभी सोचा नहीं था कि मैं सामुदायिक खेती करूँगा। लेकिन मुझे एहसास हुआ कि किसानों के लिए यह समय की आवश्यकता है। हमारे मॉडल का यूएसपी यह है कि इसमें लागत शून्य है। हम सभी जैविक खाद स्वयं तैयार करते हैं। कोई बिचौलिया नहीं है। अब किसान अपनी लागत का दुगना कमा रहे हैं।”

जब उनसे पूछा गया कि क्या वे अपने कॉर्पोरेट जीवन को याद नहीं करते। उनका जबाव ना था। लेकिन उन्होंने बताया कि कॉर्पोरेट में सीखी गयी चीज़ों ने उनके काम में बहुत मदद की है। हालाँकि वे कॉर्पोरेट से बहुत कम कमा रहे हैं लेकिन समाज को स्वास्थ्य खाना देने की संतुष्टि उनके लिए काफी है। उनके लिए कृषि से ज्यादा कुछ भी संतोषजनक नहीं है।

आप Prateek1sharma@gmail.com पर प्रतीक से संपर्क कर सकते हैं या 7987621152 पर कॉल कर सकते हैं।

मूल लेख: मानबी कटोच 


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