Site icon The Better India – Hindi

केले के तनों से शुरू किया बिज़नेस, लगभग 300 किसानों की बढ़ायी आमदनी

“हर 12 से 14 महीने में हमें अपने खेत खाली करने होते हैं। एक हेक्टेयर में लगभग पांच हजार केले के पेड़ लगते हैं और इनसे फसल लेने के बाद, इन्हें खेतों से हटाकर नयी फसल लगानी होती है। पेड़ों से केले की कटाई के बाद, तना और पत्तियां (agriculture waste) आदि बच जाते हैं। इन्हें हम पहले मजदूर की सहायता से कटवा देते थे। फिर, इन्हें कुछ दिन सुखाने के बाद किसी लैंडफिल में डलवाना पड़ता था। इन सभी कामों में, लगभग नौ से दस हजार रुपए खर्च हो ही जाते थे। लेकिन पिछले दो सालों से, मेरा यह ख़र्च एकदम जीरो हो गया है”, यह कहना है मध्य प्रदेश के एक किसान भाऊलाल कुशवाहा का। 

36 वर्षीय भाऊलाल कुशवाहा मध्य प्रदेश में बुरहानपुर के उन हजारों किसानों में से एक हैं, जो अपनी जमीन पर केले की खेती कर रहे हैं। दूसरे किसानों की ही तरह केले की कटाई के बाद खेत को खाली करने के लिए, उन्हें भी काफी साधन खर्च करने पड़ते थे। लेकिन, अब उन्हें इस बात की कोई चिंता नहीं है और इसका कारण एक 29 वर्षीय युवक है, जो न सिर्फ उनके बल्कि उनके जैसे लगभग 300 किसानों के खेतों से, केले की कटाई के बाद बचे हुए पेड़ों (agriculture waste) को हटवा रहे हैं। इससे किसानों की आमदनी बढ़ी है, क्योंकि उनकी लागत कम हो रही है। दिलचस्प बात है कि खेतों से निकलने वाले केले के पेड़ों (agriculture waste) को वह किसी लैंडफिल में नहीं पहुंचाते हैं, बल्कि अपने प्रोसेसिंग यूनिट पर लाते हैं। 

हम बात कर रहे हैं मेहुल श्रॉफ की, जो केले के तनों (agriculture waste) को प्रोसेस करके रेशा बना रहे हैं। वह केले के रेशे से, पर्यावरण के अनुकूल तरह-तरह के उत्पाद बनाते हैं। मार्केटिंग विषय में MBA, मेहुल ने पढ़ाई के दौरान ही तय कर लिया था कि वह अपना बिज़नेस करेंगे। इसलिए, उन्होंने नौकरी करने की बजाय, अपने इलाके में बिज़नेस के मौके तलाशे। 

Mehul Shroff

शुरू किया अपना बिज़नेस: 

मेहुल कहते हैं, “एमबीए करने के बाद, मैंने कई बड़े व्यवसाइयों से मुलाक़ात की और उनसे जाना कि अपना स्टार्टअप शुरू करने के लिए, किन बातों का ध्यान रखना पड़ता है। इसके बाद, बिज़नेस आईडिया के लिए मैंने अपने इलाके पर ही ध्यान दिया। क्योंकि, मैं अपने शहर और लोगों के लिए कुछ करना चाहता था। मैंने अपनी रिसर्च के दौरान इको फ्रेंडली बिज़नेस के बारे में भी काफी पढ़ा था। बुरहानपुर में 20 हजार हेक्टेयर से ज्यादा जमीन पर केले की खेती होती है। मैंने बचपन से ही देखा है कि हमारे इलाके में किसान केले की कटाई के बाद, खेतों को खाली करके दोबारा फसल लगाते हैं। पहली फसल से बचे केले के तने, उनके लिए कचरे (agriculture waste) के सामान होते हैं, जिन्हें वे लैंडफिल में पहुंचाते हैं। इसलिए, मैंने इन बेकार केले के तनों का सही उपयोग करने के बारे में सोचा।” 

उन्होंने आगे कहा कि वह अपने बिज़नेस के लिए किसी रिसर्च में जुटे थे, तब उन्हें जिला प्रशासन और नवसारी कृषि विश्वविद्यालय की तरफ से आयोजित एक वर्कशॉप में भाग लेने का मौका मिला। इस वर्कशॉप में बताया गया कि केले के पेड़ के बचे हुए तने (agriculture waste) से रेशे बनाकर, इन्हें कपड़ा, कागज और हेंडीक्राफ्ट इंडस्ट्री में काम में लिया जा सकता है। यहीं से मेहुल को अपने बिज़नेस का आईडिया मिला और उन्होंने तय कर लिया कि वह इसी क्षेत्र में आगे बढ़ेंगे। वह कहते हैं, “लेकिन जब मैंने इस आईडिया के बारे में रिसर्च की, तो पता चला कि इसमें बहुत से लोग असफल भी हुए हैं। इसलिए, मैंने शुरुआत करने से पहले अलग-अलग जगह से पूरी जानकारी इकट्ठा की। जैसे- इसके लिए कौन सी मशीनें चाहिये, रेशे से कौन-कौन से उत्पाद बन सकते हैं और कहाँ इन्हें मार्केट किया जा सकता है आदि।” 

His Processing Unit

इसके अलावा, वह बुरहानपुर के किसानों से भी जाकर मिले और उनसे अपने इस विचार पर बात की। उन्हें बहुत से किसानों से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली और साल 2018 में, मेहुल ने अपने स्टार्टअप ‘श्रॉफ इंडस्ट्रीज‘ की शुरुआत की। उन्होंने अपना प्रोसेसिंग यूनिट बुरहानपुर में ही लगाया है। साथ ही, अपने इस बिज़नेस से वह किसानों की मदद, महिलाओं को रोजगार और पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद बनाकर, प्रकृति के संरक्षण में अपना योगदान दे रहे हैं। 

कैसे होता है काम: 

मेहुल बताते हैं कि वह फ़िलहाल लगभग 300 किसानों से जुड़े हुए हैं। जब भी कोई किसान उन्हें बताता है कि उसके खेत को खाली करना है, तो मेहुल अपनी टीम को उस खेत पर भेजते हैं। उनकी टीम किसानों के खेतों से, केले के तनों (agriculture waste) को उनकी प्रोसेसिंग यूनिट पर लेकर आती है। तनों को काटने, खेतों को साफ करने और तनों को यूनिट तक लाने का खर्च मेहुल उठाते हैं। इस तरह, किसानों को अब खेतों को साफ करने में पैसे खर्च नहीं करने पड़ते और न ही अगली फसल लगाने के लिए इंतजार करना पड़ता है। 

यूनिट में जब केले के तने पहुँचते हैं, तो तीन-चार महिला कर्मचारी मिलकर इन्हें साफ करती हैं। इसके बाद, मशीन से इनके रेशे बनाए जाते हैं। एक केले के तने से लगभग 200 ग्राम रेशा मिलता है। रेशा बनने के बाद, इसे अलग-अलग जगह भेजा जाता है। मेहुल बताते हैं कि फ़िलहाल वह ‘बिज़नेस टू बिज़नेस’ (B2B) मॉडल पर काम कर रहे हैं। उन्होंने इको फ्रेंडली कागज और कपड़ा बनाने वाली कुछ कंपनियों के साथ टाई-अप किया है। इन कंपनियों को वह रॉ मटीरियल भेजते हैं और वहाँ इको फ्रेंडली कागज और कपड़ा तैयार होता है। 

From banana stem to banana fibre

इसके अलावा, वह कुछ महिला स्वयंसेवी समूहों के साथ भी काम कर रहे हैं। लगभग 50-60 महिलाओं को वह केले के रेशे देते हैं और इस रेशे से महिलाएं बत्ती, झाड़ू, टोकरी, पर्स, सैनिटरी नैपकिन जैसे उत्पाद बनाती हैं। मेहुल कहते हैं कि केले के रेशे का प्रयोग करके इको-फ्रेंडली सैनिटरी नैपकिन बनाए जा सकते हैं। ये सैनिटरी नैपकिन बायोडिग्रेडेबल होते हैं, जो दो से तीन महीने में डीकंपोज हो जाते हैं।

केले के रेशे से बने इन उत्पादों को भी वह दूसरे संगठनों को देते हैं, जो आगे इन्हें ग्राहकों को बेचते हैं। कुछ समय पहले, उन्होंने केले के रेशे से बागवानी के लिए ग्रो बैग और पलवार (मल्च) भी बनाये हैं। 

मेहुल बताते हैं कि उनके इस स्टार्टअप को भारतीय कृषि विभाग द्वारा संचालित राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (रफ्तार) के तहत, श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर (जयपुर) से इन्क्यूबेशन और 20 लाख रुपए की अनुदान राशि मिली है। इसके अलावा, उन्हें कृषि विज्ञान केंद्र, बुरहानपुर और जिला प्रशासन से भी सहयोग मिल रहा है। 

बुरहानपुर के कलेक्टर, IAS प्रवीण सिंह कहते हैं, “मेहुल की जो सोच है, वह कृषि क्षेत्र के विकास की दिशा में है। अपने बिज़नेस द्वारा वह समाज और पर्यावरण के लिए काम कर रहे हैं। इस इलाके में केले की खेती से बचने वाले कचरे को किसान अपने खेतों में सुखाकर जला देते हैं या फिर कहीं लैंडफिल में पहुंचाते हैं। ऐसा करना पर्यावरण की दृष्टि से ठीक नहीं है। लेकिन मेहुल के बिज़नेस से, न सिर्फ किसानों की लागत बच रही है, बल्कि पर्यावरण का भी भला हो रहा है। साथ ही, उन्होंने महिला स्वयंसेवी समूहों को रोजगार भी दिया है। इसलिए, मुझे लगता है कि इस तरह के इको फ्रेंडली बिज़नेस की लोगों को बहुत जरूरत है।” 

Eco friendly products

आगे की योजना: 

मेहुल कहते हैं, “अब तक हम B2B मॉडल पर काम कर रहे हैं। लेकिन आने वाले कुछ समय में, मेरी कोशिश B2C मतलब सीधा ग्राहकों तक पहुँचने की है। इसलिए, हम अपने उत्पादों की ब्रांडिंग करने में जुटे हुए हैं। केले के रेशे से हम बहुत सी चीजें बना सकते हैं। लेकिन, सभी चीजों पर एकदम काम करना सही नहीं है, इसलिए हम धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं।” 

अपना खुद का ब्रांड स्थापित करने के साथ-साथ, वह किसानों को उद्यमी (एग्रीप्रन्योर) बनाना चाहते हैं। उन्होंने कहा, “आज किसान के बच्चे किसानी नहीं करना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें इसमें फायदा नहीं दिखता। लेकिन, अगर हम किसानों को व्यवसाय से जोड़ें और उनके खेतों पर ही प्रोसेसिंग यूनिट बनाएं, तो उन्हें बहुत फायदा मिलेगा। इसलिए, आगे मेरी योजना है कि किसानों के खेतों पर, केले के तनों से रेशे बनाने की मशीनें लगाई जाएं, ताकि किसान खुद प्रोसेसिंग करें। फ़िलहाल, उनके लिए सिर्फ केले ही आजीविका का साधन हैं, लेकिन फिर केले के पूरे पेड़ को वह इस्तेमाल में ले पाएंगे।” 

अब तक मेहुल ने लगभग 12 टन केले का रेशा तैयार किया है और उनका सालाना टर्नओवर 10 लाख रुपए रहा है। वह कहते हैं कि अभी तो सिर्फ शुरुआत है, उन्हें बहुत आगे जाना है। ताकि, एक दिन वह बड़े से बड़े ब्रांड को रॉ मटीरियल सप्लाई कर सके। इतना ही नहीं, अगर मौका मिले तो वह खुद रेशे से कपड़े तैयार करने की भी चाह रखते हैं।

वह कहते हैं कि कपड़ा, कागज, सैनिटरी नैपकिन, ग्रो बैग या अन्य किसी हेंडीक्राफ्ट बिज़नेस से जुड़े लोग केले के रेशे का उपयोग करके अपने बिज़नेस को इको-फ्रेंडली बना सकते हैं। अपने स्टार्टअप को लेकर मेहुल बहुत ही सकारात्मक हैं और निरंतर मेहनत करके आगे बढ़ रहे हैं। 

अपने युवा साथियों के लिए वह सिर्फ यही संदेश देते हैं, “किसी एक का कचरा दूसरे के लिए आय का साधन बन सकता है। यह सिर्फ कहावत नहीं है, बल्कि सच्चाई है। जरूरत है तो सिर्फ अपना नजरिया बदलने की और अपने आईडिया पर काम करने की। इसलिए, अपने आसपास मौकों की पहचान करें और भारत को बेहतर बनाने में योगदान दें।” 

यकीनन, मेहुल श्रॉफ की कहानी हम सबके लिए एक प्रेरणा है और हमें उम्मीद है कि बहुत से लोगों को यह कहानी पढ़कर, आगे बढ़ने का हौसला मिलेगा। 

अगर आप उनके बारे में अधिक जानना चाहते हैं या उनसे संपर्क करना चाहते हैं तो उन्हें shroffindustries@yahoo.com पर ईमेल कर सकते हैं। 

संपादन- जी एन झा

तस्वीरें साभार: मेहुल श्रॉफ

यह भी पढ़ें: पढ़ाई के साथ, घर में शुरू की ‘ऑर्गेनिक चॉकलेट फैक्ट्री’, सालाना कमाई रु. 15 लाख

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।

Exit mobile version