आज हम आपको एक ऐसी महिला की कहानी सुनाने जा रहे हैं, जिन्होंने जीवन के हर मोड़ पर केवल और केवल संघर्ष किया लेकिन कभी हार नहीं मानी। आज वह उम्र के जिस पड़ाव पर हैं, वहाँ पहुँचकर हर कोई बस आराम करना चाहता है लेकिन वह आज भी सक्रिय हैं और खुद मास्क बनाकर जरूरतमंद लोगों को बांटती हैं।
यह कहानी महाराष्ट्र के सांगली में रहने वाली 69 वर्षीया सरला देवी की है। उन्होंने लॉकडाउन के दौरान 2000 से भी ज्यादा मास्क बनाकर ज़रुरतमंदों को बांटे और अभी भी मास्क बनाने का यह सिलसिला जारी है। उनका कहना है कि दुनिया में लोग इतना कुछ कर रहे हैं, वह तो बहुत छोटा काम कर रही हैं।
सरला देवी ने द बेटर इंडिया को बताया, “जीवन में संघर्ष तो रहा ही, लेकिन कभी हार नहीं मानी। बच्चों को पढ़ाया-लिखाया, आगे बढ़ाया। अब लगता है कि जो जीवन है, उसमें दूसरों के लिए कुछ कर लें।”
लगभग एक साल पहले दिल का दौरा पड़ने से उनके पति का निधन हो गया। उनके और उनके पति का साथ पूरे 50 बरसों का था।
सरला देवी अपने पति को याद करते हुए कहतीं हैं, “इंसान यदि किसी बीमारी में थोड़ा ठहरकर जाए तो फिर भी शायद उतनी पीड़ा न हो लेकिन किसी चलते-फिरते इंसान का अचानक से चंद पलों में चले जाना आपको तोड़ देता है। खासतौर पर, वह इंसान जो आपके हर दुःख-सुख का साथी रहा हो। अब पिछले एक साल से ज़िंदगी भारी सी लगने लगी थी क्योंकि एक साथी की कमी कोई पूरी नहीं कर सकता।”
सरला देवी मूल रूप से बिहार के भागलपुर जिले से हैं। उन्होंने बचपन से ही परिस्थितियों से लड़ना सीखा। मात्र सातवीं कक्षा पास करके उन्हें अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी क्योंकि उनकी माँ की तबियत काफी ज्यादा खराब रहती थी। फिर जैसा कि अक्सर होता है कि घर की बेटी को घर की ज़िम्मेदारियाँ सम्भालनी पड़ती है। सरला देवी ने अपने मायके के बाद अपने ससुराल में भी सभी ज़िम्मेदारियों को बखूबी निभाया। वह कहतीं हैं कि जब उनके बच्चे थोड़े बड़े हुए तो उनके पति को दिल की बीमारी डिटेक्ट हुई।
“उनको दिल की बीमारी थी और इलाज के लिए मुंबई जाना था। और कोई नहीं था जो उनके साथ जा पाता। इसलिए मैं खुद उनके साथ गयी, उनका इलाज कराया। बच्चों को मैंने उनके भाई के यहां छोड़ा। वह मुश्किल वक़्त था पर काट लिया। अब सोचती हूँ तो लगता है कि जब वह मुश्किल वक़्त पार कर लिया तो अब तो फिर भी हमारे पास बहुत कुछ है,” उन्होंने कहा।
उनके बच्चे अपने पैरों पर खड़े हैं। कोई दिल्ली तो कोई बेंगलुरू में रहता है। उनकी बेटी सीमा बतातीं हैं, “मैंने कभी भी माँ को खाली नहीं देखा। वह हमेशा कुछ न कुछ करती रहती हैं। घर के सभी काम करते हुए भी वह कुछ और भी करने का वक़्त निकल लेती हैं। वह सिलाई करती हैं। वह कढ़ाई भी बहुत सुंदर करतीं हैं।”
सरला देवी कहतीं हैं कि उन्होंने कभी कोई सिलाई-कढ़ाई या फिर चित्रकारी की ट्रेनिंग नहीं ली। आज अपनी ढलती उम्र में वह इन्हीं हुनर के सहारे अपने जीवन को संवार रही हैं। सिलाई-कढ़ाई के साथ-साथ वह पिछवाई पेंटिंग भी करतीं हैं। पिछवाई पेंटिंग बनाने के लिए वह बाज़ार से अलग-अलग पेंटिंग के कट-आउट लातीं हैं और फिर अपनी कलाकारी से इन्हें रंग-बिरंगे मोतियों और रंगों से सजातीं हैं।
“पिछवाई कला करना मैंने काफी पहले शुरू किया था। धीरे-धीरे हाथ बैठ गया और मैं थोड़ा-बहुत करने लगी। जब कोई भी पेंटिंग शुरू करतीं हूँ तो लगता है कि अरे कैसे करुँगी, कैसे पूरा होगा। लेकिन फिर जैसे-जैसे करतीं हूँ, अपने आप डिज़ाइन समझ में आने लगती है,” वह अब तक लगभग 100 फ्रेम दूसरों को मुफ्त में बाँट चुकी हैं। इसके साथ ही, वह अपने घर में गार्डनिंग भी करतीं हैं। तुलसी, एलोवेरा, गुलाब आदि के पेड़-पौधे लगाने का उन्हें शौक है।
मास्क बनाने की मुहिम के बारे में वह बतातीं हैं, “जब लॉकडाउन हुआ तब मैं बेंगलुरू में बेटे के घर में थी। एक दिन मेरी बेटी ने एक वीडियो भेजा कि कैसे लोग घरों पर ही मास्क बना रहे हैं। इसके बाद ही मैंने मास्क बनाना शुरू किया।”
जब तक वह बेंगलुरू में रहीं तो वहाँ पर हाथ से ही मास्क बनाकर सफाई कर्मचारी, सब्ज़ीवालों, चौकीदार आदि को बांटतीं रहीं। लॉकडाउन के बाद वह सांगली लौट आईं। यहाँ भी अपने सभी काम करते हुए उन्होंने मास्क बनाना ज़ारी रखा। यहाँ पर वह अपनी सिलाई मशीन से मास्क बनाती हैं। उन्होंने अब तक 2000 से भी ज्यादा मास्क बांटे हैं।
“अब तो मेरे जीवन का उद्देश्य यही है कि मैं दूसरों की सेवा कर पाऊं। किसी ज़रूरतमंद के लिए कुछ करूँ, इससे ज्यादा और क्या चाहिए? बाकी मेरे बच्चे और उनके बच्चे हमेशा मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते रहते हैं। ढलती उम्र में अक्सर यही लगता है कि कुछ करने के लिए नहीं है लेकिन यह सिर्फ एक मिथक है। कभी भी यह नहीं सोचें कि अब आप कुछ नहीं कर सकते, अब जितनी सांसे मिली हैं, कम से कम उनमें तो किसी के लिए कुछ करने की कोशिश कर ही सकते हैं,” उन्होंने कहा।
द बेटर इंडिया सरला देवी के जज्बे को सलाम करता है। उनकी यह कहानी हमें प्रेरित करती है।
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