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बेंगलुरु: शहर की आपाधापी के बीचों-बीच है बाँस और कार्डबोर्ड से बना यह प्राकृतिक स्कूल

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इटली शांति चाहता था। देश में हुई तबाही को पीछे छोड़कर वह सब कुछ नये सिरे से शुरू करने की कोशिश कर रहा था। इसी दौरान रेजियो एमिलिया शहर के आसपास बसे ग्रामीण इलाके में लोरिस मालागुजी नाम का एक शिक्षक आया, जिसने स्कूली शिक्षा के कठिन पाठ्यक्रम को काफी आसान बना दिया।

उनकी यह पहल रिसर्च पर आधारित थी, जिसमें हर बच्चा अपनी समझ के आधार पर अपने तरीके से चीजों को खुद सीख सकता था।

इस पद्धति को आज ‘रेजियो एमिलिया अप्रोच’ के नाम से जाना जाता है। भारत में भी इस पद्धति को कई स्कूलों ने अपनाया है, जिसमें बेंगलुरू स्थित प्री स्कूल ‘द एटलियर‘ भी शामिल है। मुरलीधर रेड्डी, आर्किटेक्ट अनुराग ताम्हणकर और बायोम एनवायरमेंटल सॉल्यूशंस की टीम ने इस स्कूल का निर्माण महज छह महीने में किया था।

स्कूल का डिज़ाइन बेहद अनोखा है और साथ ही टिकाऊ भी है। खास बात यह है कि बिना किसी तोड़ फोड़ के इसके कंस्ट्रकशन में कभी भी बदलाव किया जा सकता है।

ऐसा स्कूल जो लर्निंग एक्सपीरियंस को बढ़ाता है

द एटलियर के सह-संस्थापक, एजुकेटर और डायरेक्टर रिद्धम अग्रवाल ने 2016 में इस प्रोजेक्ट के लिए बायोम एनवायरमेंटल सॉल्यूशंस से संपर्क किया था।

आर्किटेक्ट अनुराग ताम्हणकर कहते हैं, “साइट की लोकेशन एक ऐसे क्षेत्र में थी, जहाँ चारों ओर कंक्रीट का जंगल बस रहा था और हमें बच्चों के लिए एक लर्निंग स्पेस तैयार करना था। सस्टेनबिलिटी को ध्यान में रखते हुए हम यहाँ एक ऐसा डिजाइन बनाना चाहते थे जो एजुकेशनल मॉडल की तरह ही हो।”

बायोम एनवायरमेंटल सॉल्यूशंस ने डिज़ाइन से लेकर निर्माण तक के काम में केवल उन चीजों का इस्तेमाल किया जिन्हें जरूरत पड़ने पर आसानी से अलग, डीकम्पोज़ या अपसाइकिल किया जा सके।

अनुराग ने कहा कि इस क्षेत्र में अधिकांश कंक्रीट की इमारतें ऐसी थी, जिसे तोड़कर फिर से बनाया जा रहा था। इससे पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंच रहा था। उन्होंने कहा, “हम कुछ अलग करना चाहते थे और पाठ्यक्रम की ही तरह परिवर्तनशील जगह बनाना चाहते थे। इसलिए हमने एक ऐसा स्कूल बनाया, जिसकी बिल्डिंग को बिना तोड़ फोड़ किए ही उसमें कभी भी बदलाव किया जा सकता है।”

क्या हैं डिजाइन की खास बातें

स्कूल की इमारत की नींव को स्थानीय चप्पड़ी ग्रेनाइड स्टोन से तैयार किया गया है जबकि पेवर ब्लॉक फ्लोरिंग, पेपर ट्यूब से दीवारें और बोल्टेड स्टील से छत को सहारा दिया गया। बाँस के मैट से सीलिंग का निर्माण किया गया। द एटलियर के पूरे स्ट्रक्चर को कभी भी तोड़ा जा सकता है और सामग्रियों को दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है। कंस्ट्रक्शन का फीचर कुछ इस तरह है कि जरूरत पड़ने पर स्कूल को आसानी से किसी अन्य जगह पर भी शिफ्ट किया जा सकता है।

डिजाइन की खासियत के बारे में अनुराग बताते हैं, “प्रत्येक मेटल स्ट्रक्चर को एक साथ बोल्ट से बांधा गया है ताकि इन्हें आसानी से निकाला जा सके और दोबारा से पहले की तरह इस्तेमाल किया जा सके। ढलान वाली छत को स्टील के सहारे बनाया गया है। यह गैल्वनाइज्ड आयरन (जीआई) की चादर होती है। बाँस के मैट प्लाईवुड से फॉल्स सीलिंग बनाई जाती है जो थर्मल और साउंड इंसुलेशन प्रदान करती है। इस स्ट्रक्चर को गर्मी, सुरक्षित लर्निंग स्पेस और शहरी क्षेत्रों के ध्वनि प्रदूषण को ध्यान में रखकर बनाया गया है।”

स्काई-लाइट डॉटेड छत के नीचे बना यह स्कूल रेजिगो एमिलिया के सिद्धांत पर आधारित है जहाँ छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों के बीच कोई अंतर नहीं होता है, इस पद्धति में सब एक समान हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए स्कूल को ग्राउंड लेवल पर ही बनाया गया है, इसमें कोई फ्लोर नहीं है। स्कूल कैंपस 15,000 वर्ग फीट फैला है, जबकि स्कूल की बिल्डिंग 10,000 वर्ग फुट को कवर करती है, जिसमें सेंट्रल लर्निंग स्पेस के अलावा दो प्ले स्पेस, एक इनडोर और आउटडोर और एक कैफे शामिल है।

चूंकि सामुदायिक जुड़ाव लर्निंग मॉडल के लिए एक जरूरी चीज है इसलिए कैफे सब लोगों के लिए मिलने जुलने की एक ख़ास जगह के रूप में भी कार्य करता है।

अनुराग कहते हैं, “यह एक गाँव या शहर के चौक के जैसा है, जहाँ लोग एक-दूसरे से बात करते हैं और एक दूसरे के अनुभव से सीखते हैं।”

प्रकृति से सीखना

यह लर्निंग मॉडल हर बच्चे को अपने तरीके से सीखने के लिए प्रेरित करता है, जिसके लिए एक पारदर्शी इंटीरियर डिजाइन की जरूरत होती है।

द एटलियर के सह-संस्थापक रिद्धम बताते हैं, “रेजियो एमिलिया अप्रोच के अनुसार बच्चों का विकास इस तरह से होना चाहिए कि वे पर्यावरण से लगातार सीखते रहें। पर्यावरण की तरह ही लर्निंग स्पेस में भी बदलाव होता रहे।”

इस आइडिया ने आर्किटेक्ट टीम को एक ऐसा स्ट्रक्चर बनाने के लिए प्रेरित किया, जहाँ बच्चे एक पेड़ के नीचे पढ़ाई करते हैं। इस स्कूल में पेपर ट्यूब पार्टिशन दीवारों की ऊंचाई अलग-अलग है और यह क्लासरूम और कॉमन स्पेस से जुड़ी हुई है।  इसके अलावा आठ मेटल कॉलम पेड़ की शाखाओं की तरह दिखते हैं जो छत को सपोर्ट करते हैं।

रिद्धम कहते हैं, “द एटलियर का अंदरूनी और बाहरी डिजाइन पेड़ की तरह है। छत में मिलने वाला मेटल कॉलम पेड़ की शाखा की तरह है जो इमारत को अनोखा बनाता है। यहाँ बच्चों को पढ़ते वक्त ऐसा अहसास होता है कि मानो वे पेड़ के नीचे बैठे हैं।”

इस स्ट्रकचर में कहीं भी बंद का अहसास नहीं होगा। इसमें खुलापन है। इसके चारों ओर छेद वाले मेटल शीट,पारदर्शी ग्लास, पाइनवुड, ऑपरेबल ब्लाइंड और स्लाइडिंग खिड़कियाँ लगी हैं, जिससे पर्याप्त हवा और रोशनी अंदर आती है। इसके अलावा ईंट मिट्टी से बने कंप्रेस्ड स्टेब्लाइज्ड अर्थ ब्लॉक (CSEBs) का इस्तेमाल किया गया है, जो मूल डिजाइन की फिलॉसफी पर आधारित है।

इसमें कुल चार क्लारूम है जिसमें एक एटलियर स्टूडियो और सेंट्रल पियाजा के पास एक चाइल्डहुड सिमुलेशन सेंटर है। इस इमारत की दीवारें उनके पाठ्यक्रम से मिलती जुलती बनाई गई हैं। यहाँ कुछ भी कंक्रीट नहीं है।

अनुराग बताते हैं, “यह एक ऐसी जगह है जो खासतौर से पर्यावरण के महत्व को बढ़ावा देती है और हमें सिखाती है। पर्यावरण के अनुकूल निर्माण सामग्री के इस्तेमाल के अलावा हमने 50,000 लीटर पानी की क्षमता वाला रेनवाटर हॉर्वेस्टिंग सिस्टम और वाटर ट्रीटमेंट सिस्टम लगाया है। इसके अलावा स्कूल से निकलने वाले पानी को गड्ढों में इकठ्ठा किया जाता है, जो मिट्टी को उपजाऊ बनाने का एक प्रभावी तरीका है।”

इस कैंपस में लगभग 60 बच्चे और परिवार हैं, द एटलियर भारत में शिक्षा के स्तर को रिडिफाइन करने की दिशा में काम कर रहा है।

रिद्धम कहते हैं, “चार साल बाद भी यह जगह हमें हर दिन प्रेरित करता है। सबसे अच्छी बात यह है कि यह बेहद खूबसूरती से बच्चों की जरूरतों को समेटे हुए है। इस जगह में बच्चे खुद को आजाद पाते हैं, मानो यह उनका अपना स्पेस हो।”

मूल लेख- Ananya Barua

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