“साल 2020 मेरे लिए बहुत मुश्किल भरा समय रहा है। मेरा खुद पर से विश्वास हटने लगा था और लगता था कि मेरे जीवन में कुछ अच्छा नहीं हो रहा है। इसलिए मैं बहुत ज्यादा तनाव में रहने लगी थी। मुझे लगता था कि अब मैं कुछ नहीं कर पाऊंगी और तब मैंने साइकिलिंग करना शुरू किया,” यह कहना है महाराष्ट्र में जलगांव की रहनेवाली 45 वर्षीया कामिनी धांडे का। अक्टूबर 2020 से साइकिलिंग शुरू करनेवाली कामिनी, आज अपने साइकिलिंग ग्रुप में कई रिकार्ड्स भी बना चुकी हैं। साथ ही, पहले से ज्यादा खुश, स्वस्थ और फिट हैं।
बी.कॉम ग्रैजुएट कामिनी ने लगभग 25 साल तक एक स्थानीय स्कूल में अपनी सेवाएं दी हैं। द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया, “मुझे हमेशा से ही बच्चों को पढ़ाने का शौक रहा है और मेरा अपना कोई बच्चा नहीं है, तो मेरा ज्यादातर समय इन बच्चों के साथ ही बीतता था। लेकिन पिछले साल अचानक मुझे कुछ कारणों से स्कूल छोड़ना पड़ा और इसके बाद जिंदगी एकदम बदल गयी। क्योंकि, मुझे लगने लगा था कि अब मेरे जीवन में कुछ भी नहीं बचा है। मेरे पति भी तब दूसरे शहर में रहकर नौकरी कर रहे थे।”
नौकरी छोड़ने के बाद, कामिनी को बहुत अकेलापन लगने लगा था और इसी बीच कोरोना महामारी का प्रकोप बढ़ने लगा। वह बताती हैं कि पहले उन्हें और उनके पति को कोरोना हुआ और फिर उनके पिता, भाई और भाभी को। इस महामारी में उन्होंने अपने पिता को खो दिया। “वह समय बहुत मुश्किल था। क्योंकि जब भाई अस्पताल में एडमिट थे। उनकी तबियत भी सही नहीं थी। घर पर मेरी माँ भी लकवाग्रस्त है। ऐसे में, पिताजी का अंतिम संस्कार, माँ की देखभाल और अस्पताल की भाग-दौड़ में लगी रही। लेकिन इन सबका असर मेरे मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ा। मैं किसी को शब्दों में भी बयां नहीं कर सकती कि वह वक्त कितना मुश्किल था,” उन्होंने कहा।
साइकिलिंग में ढूंढ़ा सहारा
इन विपरित परिस्थितियों में कामिनी ने कुछ अलग करने का फैसला किया। उन्होंने बताया कि वह जलगांव साइकिलिस्ट ग्रुप से जुड़ी हुई हैं। लेकिन पहले वह कहीं नहीं जाती थीं। पिछले साल अक्टूबर में उन्होंने फैसला किया कि वह साइकिलिंग करेंगी। उन्होंने अपने लिए कुछ समय निकालने का फैसला किया। हालांकि शुरुआत आसान नहीं थी। उन्होंने बताया कि उनके ग्रुप में ज्यादातर सभी के पास गियर वाली साइकिल है। लेकिन उनके पास सामान्य साइकिल थी, जिस पर वह साइकिलिंग के लिए जाती थी।
उन्होंने पहले छोटी-छोटी दूरी साइकिल से तय की। लेकिन धीरे-धीरे उन्हें इसमें मजा आने लगा। वह नियमित रूप से साइकिलिंग के लिए जाने लगीं। वह कहती हैं कि उनके ग्रुप के लोगों ने उन्हें काफी सपोर्ट किया और आगे बढ़ने का हौसला देते रहे। उन्होंने बताया कि पहले वह सिर्फ कुछ किलोमीटर ही साइकिल चलाती थीं। लेकिन फिर उन्होंने देखा कि उनके ग्रुप के लोग 100 किमी साइकिलिंग करने के लिए जा रहे हैं। उन्हें लगा कि उन्हें भी एक बार ट्राई करना चाहिए।
उन्होंने अपनी सामान्य साइकिल पर ही यह रिकॉर्ड पूरा किया। हालांकि, 95 किमी पूरे होने के बाद उनकी साइकिल पंचर हो गयी थी। ऐसे में, बाकी पांच किमी उन्होंने दूसरी साइकिल से पूरा किया। वह कहती हैं, “उस दिन मुझे ग्रुप के सदस्यों के काफी सराहा और कहा कि आप और भी रिकॉर्ड बना सकते हैं। खासकर कि हमारे शहर के डिस्ट्रिक्ट प्लानिंग अफसर, प्रताप राव पाटिल जी हमेशा मेरा हौसला बढ़ाते हैं। वह भी ग्रुप से जुड़े हुए हैं। उस दिन मुझे सम्मानित भी किया गया। तब से मेरे अंदर बहुत कुछ बदल गया। मुझे एक बार फिर खुद पर भरोसा होने लगा और मुझे लगा कि जिंदगी में सिर्फ एक ही चीज नहीं होती है। आपको सब तरफ अपनी ख़ुशी और सकारात्मकता ढूंढ़ने की कोशिश करनी चाहिए।”
दूसरी महिलाओं को भी कर रही हैं प्रेरित
कामिनी अब हर दिन 40 किमी से ज्यादा साइकिलिंग करती हैं। उन्होंने बताया कि नियमित साइकिलिंग करने से उनका वजन भी लगभग आठ किलो तक घटा है और मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। अब वह पहले की तरह खुद को कम नहीं आंकती हैं। वह कहती हैं कि हर सुबह पांच बजे वह घर से निकल जाती हैं और आठ बजे तक वापस आकर अपने सभी काम शुरू करती हैं। इससे उनका पूरा दिन अच्छा जाता है।
उन्होंने बताया, “मैं लगातार अपने इस सफर के बारे में फेसबुक पर पोस्ट करती हूं। मेरी पोस्ट को देखकर मुझे कई महिलाओं ने पूछा कि क्या वे भी साइकिलिंग कर सकती हैं? कई महिलाओं के जब मैसेज आये तो मैंने एक व्हॉटसऐप ग्रुप बनाया ‘जलगांव वीमेन ऑन व्हील्स।’ आज इस ग्रुप से लगभग 70 महिलाएं जुड़ गयी हैं। कइयों की उम्र तो 50 से ऊपर है तो कई पहली बार साइकिल चलाना सीख रही हैं।” कामिनी कहती हैं कि अगर किसी कारणवश वह सुबह साइकिलिंग के लिए नहीं निकल पाती हैं तो शाम या रात के समय जाती हैं। उन्होंने हर दिन कम से कम पांच किमी साइकिल चलाने का नियम बनाया हुआ है।
उनका कहना है कि किसी भी चीज में स्थिरता जरुरी है। आप दो दिन छोड़कर दो दिन साइकिल चलाये इससे बात नहीं बनेगी। आपको इस काम में नियमित होना होगा। आप भले ही एक-दो किमी साइकिल चलाएं लेकिन नियमित रूप से चलाएं। फिर देखिएगा आप न सिर्फ अपने वजन पर काम कर पाएंगे बल्कि तनाव और अवसाद से भी बाहर आ सकते हैं।
अंत में वह कहती हैं, “अक्सर लोग इस बात पर ध्यान देते हैं कि उनके जीवन में क्या कमी है? लेकिन हमें इस बात पर फोकस करना चाहिए कि हमारे जीवन में क्या अच्छा है और हम इसे और अच्छा कैसे कर सकते हैं। जब मैं साइकिल चलाती हूं तो सभी तरह के नकारात्मक ख्याल मेरे मन से चले जाते हैं और मेरे अंदर एक नई ऊर्जा आती है। सभी महिलाओं को दिन में कम से कम एक घंटा अपने लिए निकालना चाहिए ताकि वे स्वस्थ और खुश रहें। इसलिए ज्यादा सोचिये मत बस शुरू हो जाइये।”
कामिनी धांडे का हौसला और जज्बा काबिल-ए-तारीफ है और हमें उम्मीद है कि बहुत से लोग उनसे प्रेरणा लेकर आगे बढ़ेंगे।
संपादन- जी एन झा
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