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बेस्ट ऑफ 2020: 10 IAS अधिकारी, जिन्होंने अपने प्रयासों से इस साल एक नई उम्मीद कायम की

“आप भारतीय सेवा के अग्रणी हैं और इस सेवा का भविष्य आपके कार्यों, आपके चरित्र और क्षमताओं सहित आपकी सेवा भावना के आधार से रखी नींव और स्थापित परंपराओं पर निर्भर करेगा।”

21 अप्रैल 1947 को दिल्ली के मेटकाफ हाउस में, जब देश आजादी से महज चार महीने दूर था और अभी इस विषय पर कोई निर्णय नहीं हुआ था, सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इन शब्दों को अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के पहले बैच को संबोधित करते हुए कहा था।

बेशक, आजादी के इतने वर्षों के बाद, आज प्रशासनिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार और लापरवाही अपने चरम पर है, लेकिन आज हम आपको कुछ ऐसे अधिकारियों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने अपनी पारदर्शिता, जिम्मेदार और अपनी जवाबदेही से व्यवस्था में एक नए विश्वास को कायम किया है।

साल 2013 में, आईपीएस दुर्गा ग्रेटर नोएडा के गौतम बुद्ध नगर में सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट के रूप में तैनात थीं।

इस दौरान, 2010 बैच की इस अधिकारी ने बड़े पैमाने पर रेत माफियाओं को उजागर किया था। 

अपनी कार्रवाई के दौरान आईपीएस दुर्गा ने 90 से अधिक भू खनन माफियाओं को सलाखों के पीछे भेजा था और 2 हफ्ते के अंदर, 150 करोड़ रॉयल्टी की भी वसूली की।

वह फिलहाल, केंद्रीय वाणिज्य विभाग में उप सचिव के रूप में तैनात हैं। आप उनकी पूरी कहानी यहाँ पढ़ सकते हैं।

मिजोरम का सइहा जिला, मिर्च की ‘बर्ड्स आई’ किस्म के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। मिर्च की इस प्रजाति के लिए जिले को जीआई टैग भी मिल चुका है। इस खास मिर्च का उपयोग औषधीय प्रक्रियाओं के लिए भी होता है। लेकिन, इन खूबियों के बावजूद यहाँ के किसानों को इससे कोई लाभ नहीं मिल रहा था।

गौरतलब है कि सइहा जिला देश के काफी दूर-दराज और दुर्गम जिलों में से एक है। ज़्यादातर जनसंख्या गाँवों में रहती है और कृषि या फिर मजदूरी पर आधारित है। यहाँ के किसानों की सबसे बड़ी समस्या बाजार से दूरी है, जिस वजह से वे अपनी फसल बिचौलियों के हाथों कम मूल्य में बेच देते हैं।

लेकिन, पिछले एक साल में यह तस्वीर बिल्कुल बदल गयी है। आज सइहा के किसानों को उनकी मेहनत का पूरा फायदा मिल रहा है और साथ ही, एक अलग पहचान भी। यह संभव हुआ है 2014 बैच के आईएएस भूपेश चौधरी के प्रयासों से।

उनके लिए उत्तर भारत से पूर्वोत्तर में तबादला किसी चुनौती से कम नहीं थी। लेकिन, कम ही दिनों में भाषा और संस्कृति की बाधाओं को पार करके भूपेश यहाँ के लोगों के जीवन को एक नया आयाम देने में कामयाब रहे।

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2016 बैच के आईएएस अंशुल गुप्ता फिलहाल मध्य प्रदेश के महू में एसडीएम के रूप में तैनात हैं। यहाँ उनकी तैनाती 2019 में हुई।

इसके बाद, उन्होंने अपने प्रयासों से इंडियन रेड क्रॉस हॉस्पिटल (आईआरसीएच) को बदहाली से उबारा।

उनके इस पहल के परिणामस्वरूप, आज अस्पताल में वैक्यूम सक्शन मशीन से लेकर सोलर पैनल तक की व्यवस्था है। फिलहाल, इस अस्पताल को कोविड-19 देखभाल केन्द्र के रूप में बदल दिया गया है। जिस पर उन्हें गर्व है।

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ओम प्रकाश कसेरा 2012 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। जिलाधिकारी के रूप में, उनकी तैनाती सितंबर, 2020 में, कोटा में हुई। 

कोटा, भारत का एक बड़ा एजुकेशनल हब है। लिहाजा, उन्होंने यहाँ  छात्रों की सुविधा के लिए प्रशासनिक स्तर पर कई सुधार के साथ अन्य सुविधाओं को भी दुरूस्त किया। 

लेकिन, कोरोना महामारी के दौर में, उनके सामने एक कठिन चुनौती थी। क्योंकि, उनके ऊपर स्थानीय लोगों के साथ-साथ दूसरे राज्यों के छात्रों की भी जिम्मेदारी थी।

इसलिए, उन्होंने स्थानीय लोगों को जागरूक करने के साथ ही, बच्चों को नकारात्मक विचारों से बचाने के लिए मनोवैज्ञानिकों की सहायता ली और मुश्किल हालातों में हजारों छात्रों को सकुशल घर पहुँचाने की व्यवस्था की। उनके इन प्रयासों की सराहना पूरे देश में हुई।

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2012 बैच की आईएएस अफसर हर्षिका सिंह ने जब मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ की कमान संभाली तो, उन्होंने पूरे जिले का ही कायापलट कर दिया।

बता दें हर्षिका की तैनाती जहाँ हुई थी, वह इलाका निरक्षरता और विषम लिंगानुपात से जूझ रहा था। आलम यह था कि यहाँ यदि बेटी पैदा होती थी, तो उसे मार दिया जाता था।

ऐसे में, हर्षिका ने कुछ अनूठा करने का फैसला किया और इसी के तहत उन्होंने ऑल-वुमेन स्कूल की शुरुआत की, जिसमें पढ़ाई छोड़ चुकी लड़कियों और अनपढ़ महिलाओं के लिए खास क्लास चलाई जाती है।

वह अब तक 35 स्कूल शुरू कर चुकी हैं और उनके इस प्रयास को लेकर महिलाओं और लड़कियों में काफी उत्साह देखा जा रहा। अब उनके स्कूलों में 20 से 30 महिलाएँ पढ़ने आ रही हैं। 

हर्षिका सिंह के इस कदम को ग्राम पंचायत से भी पूरी मदद मिली और उन्होंने कमरे उपलब्ध कराने से लेकर किताबों और अन्य संसाधनों की पूर्ति करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

टीकमगढ़ के नतीजे से उत्साहित, हर्षिका मंडला जिला में भी इसे दोहराने की योजना बना रहीं हैं, जहाँ उनकी नई पोस्टिंग हुई है।

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रमेश घोलप 2012 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। वह मूल रूप से महाराष्ट्र के सोलापुर के रहने वाले हैं। बचपन में ही पिता का साया उठने के बाद उनका भरण पोषण माँ ने किया। उनकी माँ चूड़ियां बेचकर घर चलाती थीं।

लेकिन, अपनी लगन और मेहनत से उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली। 

वह कहते हैं, “मेरा बचपन गरीबी में गुजरा, इसलिए मैं लोगों का दुख और दर्द समझता हूँ। मेरे लिए जितना संभव होता है, मैं लोगों की मदद करता हूँ। जब मैं झारखंड के खूंटी और बेरमो में एसडीएम के रूप में तैनात था, तभी से बाल मजदूरी के खिलाफ मुहिम चला रहा हूँ। कई बच्चों को इससे मुक्त कराया है, उनकी शिक्षा और उनके परिवार के जीविकोपार्जन की व्यवस्था की है।”

उनके अनुसार, ऐसे बेसहारा बच्चों के लिए कई सरकारी योजनाएं चल रही हैं। उन्हें सिर्फ निगरानी करनी होती है। जरूरत पड़ने पर वह खुद भी उनका भार उठाते हैं।

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आईएएस देवांश, फिलहाल अरुणाचल प्रदेश के चांगलांग के डिप्टी कमिश्नर हैं। उनके प्रयासों से यहाँ के 7 गरीब छात्रों को दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने का मौका मिल रहा है।

इन सात छात्रों में से एक, लोंगसम सपोंग, जिन्होंने अपनी 12वीं की परीक्षा में 89.4% अंक प्राप्त किए थे, लेकिन घर की स्थिति ठीक नहीं होने के कारण, वह आगे पढ़ाई करने में असमर्थ थे। लेकिन, देवांश के कोशिश के बाद, उन्हें अपने सपने को फिर से जीने का मौका मिला।

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आइएएस विक्रांत राजा ने पिछले साल पुदुचेरी के कराईकल में अपने प्रयासों से पूरी तरह से सूख चुके 178 जल स्रोतों को केवल 3 महीने के अंदर पुनर्जीवित कर दिया।

बारिश की कमी और कावेरी नदी से पानी की आपूर्ति न मिलने के कारण इस जिले को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया गया था। जिले में सूखे से परेशान किसान अपनी जमीन का केवल पाँचवां हिस्सा ही खेती के लिए प्रयोग करते थे।

ऐसे समय में विक्रांत राजा जिलाधिकारी बन कराईकल आते हैं और उन्होंने बिना कोई देर किए इस समस्या से निपटने की योजना बनाई। 

विक्रांत राजा को यह सब करने की प्रेरणा 9वीं शताब्दी के चोल राजवंश से मिली। 

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आदित्य रंजन, 2015 बैच के आईएएस अधिकारी है। झारखंड के पूर्वी सिंहघूम जिले के डीडीसी के रूप में, उन्होंने पूरे क्षेत्र में आँगनबाड़ी केन्द्रों का कायापलट कर दिया।

आदित्य रंजन ने एक ऐसे मॉडल को विकसित किया है, जहाँ बच्चों को बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और पोषण की सुविधा मिलती है। 

पिछले 2 वर्षों में उन्होंने ऐसे 650 से अधिक आँगनबाड़ी केन्द्रों को विकसित किया है। उनके इस पहल में, गैर सरकारी संगठन तितली की पूरी मदद मिली है, जिसने इन केंद्रों में महिलाओं को प्रशिक्षित करने में मदद की। 

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दिव्या देवराजन 2010 बैच की आईएएस अधिकारी हैं। 2017 में आदिवासी संघर्ष की घटनाएं सामने आ रही थी। इसी बीच दिव्या की पोस्टिंग तेलंगाना के आदिलाबाद में हुई और उन्होंने परिस्थितियों को बखूबी संभाला। 

यहाँ उन्होंने असंतुष्ट जनजातियों के समस्याओं के समाधान को खोजने के लिए कानूनी और संवैधानिक साधनों का उपयोग किया।

इसके अलावा, आदिवासी समुदायों की संस्कृति का सम्मान और संरक्षण करने के लिए, दिव्या ने आधिकारिक रूप से उनके मुख्य त्योहारों जैसे डंडारी-गुसाड़ी और नागोबा जात्रा का समर्थन करने और एक वृत्तचित्र के रूप में उनकी परंपराओं का दस्तावेजीकरण करने की भी कोशिश की।

आलम यह है कि यहाँ के लोगों ने दिव्या के सम्मान में अपने गाँव का नाम “दिव्यगुड़ा” रखा है। हालाँकि आदिलाबाद से दिव्या का तबादला हो चुका है। फरवरी 2020 में दिव्या की नियुक्ति महिला, बाल, विकलांग और वरिष्ठ नागरिकों के लिए सचिव और आयुक्त के रूप में हुई है। 

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मूल लेख – गोपी करेलिया 

संपादन – जी. एन. झा

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