Site icon The Better India – Hindi

पुराने अखबारों से बैग बना खड़ा किया व्यवसाय, विदेशों में जाते हैं उत्पाद

लगभग सभी के घरों में पुराने अखबारों का छोटा-बड़ा ढेर रहता ही है। जिसे महीने के अंत में किसी रद्दी वाले को बेच दिया जाता है। लेकिन, क्या आपको पता है कि इन अखबारों से आप घर बैठे बिजनेस भी शुरू कर सकते हैं? आज हम आपको एक ऐसी ही महिला की कहानी सुनाने जा रहे हैं जो अखबार के पुराने पन्नों से इको-फ्रेंडली बैग (Newspaper Bag) बना रही हैं।

यह कहानी केरल के कोचीन में रहने वाली दिव्या तोमस की है। जिन्होंने साल 2008 में ‘पेपरट्रेल इंडिया’ की शुरुआत की और इसे साल 2012 में रजिस्टर कराया। उनके काम की शुरुआत पुराने अखबारों के बैग बनाने से हुई थी और तब मात्र 5 महिलाएं उनके साथ काम करती थीं। लेकिन आज 75 महिलाएं उनके साथ काम कर रही हैं और लगभग 500 महिलाओं को वह अखबार से बैग बनाने की ट्रेनिंग दे चुकी हैं। साधारण पेपरबैग के अलावा, अब वह गिफ्ट पैकेजिंग बॉक्स, लैंटर्न्स, गिफ्ट कार्ड, बायोडिग्रेडेबल बैग (स्वाभाविक तरीके से सड़नशील बस्ता) जैसे 100 से ज्यादा तरह के इको-फ्रेंडली उत्पाद बना रही हैं। इससे उनकी सालाना कमाई लाखों में हो रही है। 

अपने इस सफर के बारे में दिव्या ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैंने 20 साल पहले बेंगलुरु में पेपरबैग बनाने को लेकर आयोजित एक वर्कशॉप में हिस्सा लिया था। वर्कशॉप के बाद ही मुझे इस सेक्टर में काम करने का खयाल आया। उस वक्त मैं केवल योजना ही बनाती रह गई लेकिन, इस पर काम नहीं किया। यह विचार मन में ही कहीं रह गया।”

दिव्या अपनी कर्मचारियों के साथ

मंदी के दौर में की नई शुरुआत:

यह साल 2008 था, जब देश-दुनिया में आर्थिक मंदी का दौर था। बहुत से लोग मुश्किल हालातों का सामना कर रहे थे। दिव्या कहती हैं, “एक दिन मैं अपनी एक दोस्त के घर गई और उससे चाय बनाने को कहा। चाय का नाम सुनकर, वह थोड़ा उदास हो गई और कहा कि दूध नहीं है, तो काली चाय चलेगी? मैंने कहा कि हाँ, कोई बात नहीं। मुझे लगा कि जैसे कभी-कभी हमारे घर पर भी दूध खत्म हो जाता है, वैसे उसके यहाँ भी हो गया होगा। मुझे चाय देने के बाद वह बोली कि दूध खत्म नहीं हुआ है, हमारे पास इतने पैसे ही नहीं है कि दूध खरीदकर ला सकूं। तब उसने बताया कि कैसे उसका काम बिल्कुल नहीं चल रहा है और अपने छोटे बच्चों को छोड़कर, वह पूरे दिन की नौकरी नहीं कर सकती है।”

दिव्या कहती हैं कि उस रात, उन्होंने अपने पेपरबैग के आइडिया पर काम करने की ठानी। उन्होंने अपनी दोस्त से बात की और पूछा कि अगर घर पर ही रहकर कुछ कमाने का मौका मिले तो क्या वह ऐसा करेंगी? इसके बाद, उन्होंने अपनी दोस्त की ही तरह और चार जरूरतमंद महिलाओं को अपने काम से जोड़ा। उन्हें अखबारों से बैग बनाने की ट्रेनिंग दी। इसके बाद, अपने मोहल्ले में घर-घर जाकर पुराने अखबार इकठ्ठा किये। वह बताती हैं कि सुबह 10 बजे से सभी महिलाएं तीन घंटे तक अपने-अपने घरों में पेपरबैग बनाती थीं। 

पुराने अखबारों से बनाते हैं बैग

इन पेपरबैग को बेचने के लिए दिव्या ने कई स्थानीय दुकानदारों से बात की। उस समय एक पेपरबैग के दो रुपए मिलते थे। एक महिला तीन घंटे में 60 पेपरबैग बनाती थी, जिससे उन्हें दिन के 120 रुपये मिलते थे।

वह कहती हैं, “आज ये पैसे भले ही हमें कम लगे, लेकिन 12-13 साल पहले इतने पैसों में, कम से कम एक परिवार का पेट तो पल ही जाता था। धीरे-धीरे मैंने और काम बढ़ाने की सोची। मुझे लगा कि सिर्फ पेपरबैग के सहारे, उनकी आय नहीं बढ़ पाएगी। इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए, कुछ और भी ढूंढ़ना होगा।”

इसके बाद, उन्होंने दिल्ली तथा जयपुर जैसी जगहों पर रद्दी पेपर के उद्योगों का दौरा किया। वहां उन्होंने देखा और समझा कि वे लोग कैसे काम करते हैं। वे पेपरबैग के अलावा और कौन से उत्पाद बना सकते हैं। 

दिव्या कहती हैं कि देखते ही देखते, अगले चार सालों में उनका काम काफी बढ़ गया। कई अनाथ आश्रम, आश्रय गृह और यहाँ तक कि जेल में भी महिला कैदियों को उन्होंने पेपरबैग बनाने की ट्रेनिंग दी है। कोरोना माहमारी के दौरान हुए लॉकडाउन से पहले तक, वह जेल के कैदियों के साथ काम भी कर रहीं थीं। 

पर्यावरण के अनुकूल हैं उनके उत्पाद:

दिव्या कहतीं हैं कि उनके व्यवसाय को मिली सफलता का एक कारण यह भी है कि वह हाथों से बने तथा इको-फ्रेंडली उत्पादों पर काम कर रही हैं। अखबारों के बैग बनाने के अलावा, वह पैकेजिंग के लिए अलग-अलग आकार के इको-फ्रेंडली डिब्बे भी बनाती हैं, जिनमें शिल्पकारी किये हुए डिब्बे, चॉकलेट के डिब्बे, उपहार के डिब्बे आदि शामिल हैं। इन सब के अलावा, वह ऑर्डर के अनुसार डिजाइनर बैग भी बनाती हैं।

वह बताती हैं, “हम हर साल अखबार के लगभग दो लाख पन्नों को कचरे में जाने से रोकते हैं। पुराने अखबारों को ‘अपसाइकिल’ (फिर से प्रयोग) करने के साथ-साथ, हम अपने व्यवसाय को भी जीरो-वेस्ट बनाने में जुटे हैं।”

डिब्बे बनाने के बाद, जो भी अतिरिक्त पन्ने बचते हैं, उनसे वह और भी कई छोटे-छोटे उत्पाद जैसे टैग, कोस्टर (गर्म बर्तन आदि रखने की टिकली) और पेपर पैन आदि बनाती हैं, ताकि उनके यहाँ से कोई भी कचरा न निकले। वह कहती हैं, “हमारे उत्पादों की गुणवत्ता और इको-फ्रेंडली उत्पादों के प्रति लोगों की बढ़ती जागरूकता- इन दो वजहों से हमारे व्यवसाय को इतनी सफलता मिली है। घर से बेकरी का बिजनेस करने वाले और इवेंट प्लानिंग बिजनेस से जुड़े लोगों से हमें बहुत से ऑर्डर मिलते हैं। ये वो लोग हैं जो हर काम के लिए, कम से कम प्लास्टिक का इस्तेमाल करना चाहते हैं।”

इसके अलावा, दिव्या ने ‘बायोडिग्रेडेबल गार्बेज बैग’ (पर्यावरण के अनुकूल कचरा इकट्ठा करने वाले बैग) भी ग्राहकों के लिए उपलब्ध कराना शुरू किया है। वह कहती हैं, “जब केरल सरकार ने प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया, तब मुझे लगा कि हम इस क्षेत्र में भी काम कर सकते हैं। सब्जियों के स्टार्च (माड़) से बने ये बायोडिग्रेडेबल बैग मिट्टी में दबाने पर, मात्र 180 दिनों में डीकम्पोज (नष्ट/अपघटित) हो जाते हैं। हालांकि, इन बैग्स की कीमत प्लास्टिक के बैग से कहीं ज्यादा है। लेकिन धीरे-धीरे ही सही, अब इनका प्रचलन बढ़ रहा है। जैसे-जैसे मांग बढ़ेगी तो उत्पादन ज्यादा होगा और फिर इनकी कीमतें कम होती जायेंगी।” 

पर्यावरण-संरक्षण के साथ महिलाओं का उत्थान भी:

पेपरट्रेल में काम करने वाली एक महिला, आशा बताती हैं कि दिल का दौरा पड़ने से उनके पति का अचानक देहांत हो गया था। पति के जाने के बाद उनकी दोनों बेटियों की पढ़ाई और घर चलाने की जिम्मेदारी आशा पर आ गई थी। उस मुश्किल समय में, किसी ने उन्हें पेपरट्रेल के बारे में बताया। वह कहती हैं, “मेरे पति के देहांत के समय, हमारा घर भी बैंक में गिरवी था। लेकिन यहाँ काम करते-करते, मैंने अपना घर भी बैंक से छुड़ा लिया है। और मेरी बेटियां भी अच्छी जगह पढ़ रही हैं।”

अपनी एक अन्य सहयोगी प्रिया के बारे में दिव्या कहती हैं कि वह सुबह के समय कॉलेज जाती हैं और दोपहर बाद, उनके लिए बैग्स बनाती हैं। वह अकेली रहती हैं और हाल ही में, अपनी कमाई से उन्होंने अपने लिए चिकित्सा बीमा कराया है। प्रिया की तरह और भी बहुत सी महिलाएं हैं, जो अपने घरों से ही काम करके अपने परिवार के लिए अतिरिक्त आय कमा रही हैं। 

आज उनके उत्पाद भारत के अलावा, फ्रांस, दुबई और अमेरिका जैसे देशों में भी जा रहे हैं। दिव्या कहती हैं कि उन्हें सबसे ज्यादा खुशी इस बात की है कि अपने जिस व्यवसाय को उन्होंने महिलाओं के लिए शुरू किया था, आज उस ही व्यवसाय के जरिये वह पर्यावरण के लिए भी कुछ अच्छा कर पा रही हैं। 

दिव्या थॉमस से संपर्क करने के लिए आप उनके फेसबुक पेज पर मैसेज कर सकते हैं।

तस्वीर साभार: पेपर ट्रेल

संपादन- जी एन झा

यह भी पढ़ें: 500 रुपए से भी कम में, घर से शुरू कर सकते हैं ‘हैंडमेड ज्वेलरी’ बिजनेस, जानिए कैसे

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।

Eco-Friendly Newspaper Bag, Eco-Friendly Newspaper Bag, Eco-Friendly Newspaper Bag, Eco-Friendly Newspaper Bag, Eco-Friendly Newspaper Bag

Exit mobile version