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3000 पेड़-पौधे लगाकर, इस प्रिंसिपल ने बंजर जमीन को बना दिया ‘फ़ूड फॉरेस्ट’

“अगर कहीं बाहर बैठकर अपने दोस्तों या करीबियों के साथ समय बिताना हो तो अक्सर हम कोई पार्क या हरी-भरी जगह ही तलाशते हैं। दरअसल हरियाली से भरी जगह पर सुकून मिलता है। हमारे आसपास ज्यादातर घने छायादार पेड़ बहुत पुराने हैं। शायद इन्हें हमसे पहले की पीढ़ी ने लगाए होंगे, जिनकी छाया आज हमें, हमारे बच्चों को मिल रही है। लेकिन सवाल यह है कि क्या हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए ऐसी हरी-भरी विरासत छोड़ रहे हैं,” यह कहना है पुदुचेरी में रहने वाले डॉ शशिकांत दाश का। 

डॉ. शशिकांत पुदुचेरी के टैगोर सरकारी कॉलेज के प्रिंसिपल हैं। पिछले 20 वर्षों से भी ज्यादा समय से शिक्षा क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रहे शशिकांत की एक और पहचान है और वह है ‘ग्रीन मैन’ के रूप में। शशिकांत को जानने वाले ज्यादातर लोग उन्हें इसी नाम से पुकारते हैं। इसका कारण है उनका प्रकृति के प्रति लगाव। बचपन से ही हरियाली के बीच पले-बढ़े शशिकांत को बंजर और सूखी जगहें रास नहीं आती हैं। इसलिए अगर उनके आसपास कोई खाली जगह उन्हें दिखती है तो वह उसे हरियाली से भरना शुरू कर देते हैं। 

द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया, “मैं मूल रूप से उड़ीसा से हूं और बचपन से ही मुझे प्रकृति से लगाव रहा है। इसके बाद, अपनी पढ़ाई के लिए अलग-अलग जगहों में रहा। पढ़ाई के दौरान भी मैं वृक्षारोपण करता था। पढ़ाई पूरी होने के बाद शिक्षण कार्य से जुड़ गया। पहली नौकरी अरुणाचल प्रदेश में मिली। वहां भी मैंने शिक्षक की जिम्मेदारियां निभाते हुए हरियाली के लिए काम किया। अलग-अलग कॉलेजों में बच्चों को पढ़ाते हुए साल 2010 में पुदुचेरी पहुंचा।” 

डॉ. शशिकांत दाश

साल 2010 से लेकर अब तक, शशिकांत पुदुचेरी में ही तीन अलग-अलग कॉलेज के प्रिंसिपल रह चुके हैं। टैगोर कॉलेज में नियुक्त होने से पहले उन्होंने दो और कॉलेज में अपनी सेवाएं दी। उन कॉलेजों में भी उन्होंने जरूरत के हिसाब से पर्यावरण की दिशा में काम किया। लेकिन उन्हें अपने हरित कार्यों पहचान टैगोर कॉलेज से मिली। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि अपने छोटे-छोटे लेकिन दृढ़ अभियानों से उन्होंने इस कॉलेज की तस्वीर ही बदल दी है। साल 2017 तक 15 एकड़ जमीन पर फैला यह कैंपस एकदम वीरान लगता था। लेकिन आज यह किसी जंगल से कम नहीं है। 

अपनाई ‘एकला चलो रे’ की नीति

शशिकांत ने बताया, “साल 2017 में जब मेरा ट्रांसफर इस कॉलेज में हुआ तो कुछ दिनों के लिए बहुत निराश रहा। क्योंकि मैंने देखा कि इस कॉलेज में काफी ज्यादा खाली जगह है लेकिन पेड़-पौधे नाममात्र हैं। बच्चों के लिए भी कक्षाओं के बाहर बैठने की व्यवस्था नहीं है। पेड़-पौधे न होने के कारण गर्मी भी खूब रहती है। पहले तो लगा कि कहां आ गया हूं? लेकिन फिर सोचा कि जो अब तक करता आया हूं, वही करता हूं। और मैंने एक बार फिर नए उत्साह के साथ पौधरोपण अभियान शुरू कर दिया।” 

उनकी सबसे अच्छी बात है कि वह बहुत ही धैर्य के साथ काम करते हैं। उन्होंने कहा कि वह दूसरों से आशा करने से पहले खुद किसी भी काम की शुरुआत करते हैं। अगर उन्हें अकेले भी मेहनत करनी पड़े तो वह पीछे नहीं हटते। “मैंने देखा कि खुली जगह होने के कारण बहुत से जानवर भी यहां घूमते रहते थे। मैंने उन्हें बाहर रखने के लिए सबसे पहले एक बाड़ लगवाई। इसके बाद मैंने जगह-जगह पर पौधरोपण करना शुरू किया मुझे इस बात से कभी हिचक नहीं हुई कि मैं खुद बाल्टी में पानी भरकर पौधों को पानी दूं या फिर कॉलेज में शाम के समय एक घंटा एक्स्ट्रा रुककर नए-नए पौधे लगाऊं। मैंने अकेले ही शुरुआत की और धीरे-धीरे जब बच्चों ने और दूसरे शिक्षकों ने देखा कि हरियाली बढ़ रही है तो वे भी साथ जुड़ गए,” उन्होंने कहा। 

चार सालों में बदल दी तस्वीर

शशिकांत ने पहले ऐसे पेड़ लगाए जिन्हें ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं पड़ती है। जैसे तुलसी, नीम, बरगद आदि उन्होंने लगाए। कई बार पौधों के लिए पानी टैंकरों से मंगवाया गया और खाद की भी व्यवस्था की गयी। इस पूरे काम में ज्यादातर फंडिंग उन्होंने खुद अपनी जेब से की। उनका कहना है, “मैंने कभी इस बात का हिसाब नहीं रखा कि मेरा कितना पैसा इस काम में खर्च हुआ है। क्योंकि मैं समझता हूं कि जब इंसान इस दुनिया से जाता है तो अपने साथ कुछ नहीं ले जाता है। लेकिन दुनिया को देकर बहुत कुछ जा सकता है। इसलिए हम सबको कुछ ऐसा काम करना चाहिए कि केवल अपने तक सीमित न रहे और सार्वजनिक हित में हो। हमारे जाने के बाद आने वाली पीढ़ियों के लिए लाभदायक रहे।” 

3000 छोटे-बड़े पेड़-पौधे लगा बनाया फ़ूड-फॉरेस्ट

आज कॉलेज के लगभग आठ एकड़ जमीन पर 3000 पेड़-पौधे लगे हुए हैं। इनमें बरगद, नीम के साथ-साथ कटहल, चीकू, अमरुद, केला, नारियल, अनार जैसे फलों के भी सैकड़ों पेड़ हैं। इसके अलावा कुछ औषधीय पौधे जैसे तुलसी, अश्वगंधा भी हैं। उन्होंने बताया, “जहां प्रकृति होती हैं वहां अपने आप जैव विविधता बढ़ने लगती है। जैसे-जैसे पेड़-पौधे बढ़ने लगे तो हमारे कैंपस में पक्षी, तितलियां और दूसरे जीव भी दिखने लगे। पक्षियों के लिए मैंने कुछ जगह पर बाजरा भी लगाया हुआ है। इसके अलावा अब हमारे कॉलेज में साग-सब्जियां भी लगती हैं। इन्हें कभी कॉलेज में सफाई करने वाली दीदियों को, कभी कॉलेज कैंटीन को तो कभी कॉलेज में आने वाले मेहमानों को बांटा जाता है।”

पौधरोपण के साथ-साथ उन्होंने खाद बनाने पर भी ध्यान दिया। उन्होंने बताया, “मैंने कैंपस में ही छोटे-छोटे गड्ढ़े खुदवाये और पेड़ों से गिरने वाले सभी जैविक कचरों को इन गड्ढ़ों में डाल दिया जाता है। कुछ महीनों में ही अच्छी खाद बनकर तैयार हो जाती है। इसलिए अब हमें अपने बगीचे के लिए कहीं बाहर से खाद नहीं ख़रीदनी पड़ती है। साथ ही, कचरे का भी अच्छा प्रबंधन हो रहा है।” खाद के साथ-साथ उन्होंने बारिश के पानी को इकट्ठा करने के लिए भी कैंपस में एक छोटा सा तालाब खुदवाया है। 

जल संरक्षण पर भी काम

उनका कहना है कि हर साल बारिश के मौसम में लगभग 12 लाख लीटर पानी इस तालाब में इकट्ठा होता है। यह पानी पक्षियों की प्यास बुझाने और भूजल स्तर को बढ़ाने में काफी मददगार साबित हो रहा है। अपने इस जंगल में पेड़-पौधों के बीच में उन्होंने बैठने के इंतजाम भी किये हैं। जिस कारण अब छात्र अपनी कक्षा खत्म होने के बाद प्रकृति के बीच समय बिता सकते हैं। पहले जो छात्र ब्रेक में कॉलेज के बाहर जाते थे। अब वे सभी इन जगंल में बैठकर अच्छा समय व्यतीत करते हैं। साथ ही, अब वे खुद अपने जन्मदिन पर और पौधे लगाते हैं और इनकी देखभाल करते हैं। 

कॉलेज की एक शिक्षिका, डॉ. बीना मारकस कहती हैं, “मैं साल 2014 से कॉलेज में पढ़ा रही हूं। पहले कॉलेज हर तरफ बंजर ही दिखता था लेकिन पिछले चार सालों में शशिकांत सर ने कॉलेज की तस्वीर बिल्कुल बदल दी है। उनकी वजह से न सिर्फ हरियाली आई है बल्कि हम सबको भी अपनी जिम्मेदारियों का अहसास हुआ है। इस बदलाव को देखकर यही लगता है कि अगर हम ठान लें तो क्या नहीं कर सकते हैं। आज हमारे कॉलेज में हर तरफ खुशनुमा माहौल रहता है और बच्चों को भी कॉलेज में समय बिताना अच्छा लगता है।” 

छात्रों के लिए ग्रीन कैंपस 

“अगर आप चाहते हैं कि आज के युवा प्रकृति की कदर करें। पेड़-पौधों से और जानवरों से उन्हें लगाव हो और उनमें करुणा हो तो जरुरी है कि हम उन्हें वैसा माहौल दें। जब मेरे छात्रों ने देखा कि मैं सुबह शाम पौधों की देखभाल करता हूं तो उन्हें भी एक जिम्मेदारी का अहसास हुआ और मेरे बिना कहे ही वे भी इस अभियान में जुट गए। अब हमारे कैंपस के अंदर का तापमान बाहर के तापमान से लगभग ढाई डिग्री कम रहता है। इससे छात्रों को एक सुकून भरे और आरामदायक माहौल में पढ़ने का मौका मिल रहा है, जो उनका अधिकार भी है,” उन्होंने कहा। 

लगाया फ़ूड फॉरेस्ट

शशिकांत कहते हैं कि लॉकडाउन के दौरान भी उन्होंने हर दिन कॉलेज आकर पेड़-पौधों की देखभाल की है। आज उनके इस कैंपस में आपको मधुमक्खी, बत्तख और खरगोश भी दिखेंगे। बाहर के लोग भी अब कॉलेज कैंपस घूमने आते हैं। शासन-प्रशासन के लोगों से भी इस कॉलेज को सराहना मिल रही है। उन्होंने बताया, “पुदुचेरी की पूर्व गवर्नर किरण बेदी जी भी हमारे कैंपस में आईं थी और उन्होंने हमारे काम की तारीफ करते हुए काफी हौसला बढ़ाया। अब हम बीच-बीच में कोशिश करते हैं कि अपनी मीटिंग्स या बच्चों के साथ कोई मंत्रणा हो तो इस जंगल में करें।” 

उन्होंने पुदुचेरी के दो गांवों को भी अब गोद लिया है और इन्हें हरा-भरा करने के लिए भरसक प्रयास कर रहे हैं। बेशक शशिकांत का काम काबिल-ए-तारीफ है। हमें उम्मीद है कि लोग उनसे प्रेरणा लेकर अपने आसपास के बंजर इलाकों को हरियाली से भरने की कोशिश करेंगे।अगर आप डॉ. दाश से संपर्क करना चाहते हैं तो उन्हें dashsasikanta@yahoo.co.in पर ईमेल कर सकते हैं।

संपादन- जी एन झा

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