केरल के ऐलप्पी (Alleppey) शहर स्थित मुहम्मा के रहने वाले 75 वर्षीय केवी दयाल, लगभग 30 वर्षों से पर्यावरण संरक्षण पर काम कर रहे हैं। पूरे केरल में जैविक खेती की अलख जगाने के साथ-साथ, उन्होंने अपने घर के चारों ओर एक घना जंगल (Forest home) खड़ा कर दिया है। यही वजह है कि दयाल को आज केरल में ‘फॉरेस्ट मैन’ के नाम से जाना जाता है। हालांकि, उनका जीवन सिर्फ इस जंगल तक सीमित नहीं है, बल्कि वह सैकड़ों युवा, महिलाओं और किसानों को जैविक खेती से जोड़ने में भी अहम भूमिका निभा रहे हैं।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया, “मैंने एमकॉम की डिग्री लेने के बाद अपना बिज़नेस शुरू किया। जिसके अंतर्गत मैं नारियल के रेशे से बने उत्पाद जैसे- कालीन, चटाई आदि बनाकर, विदेशों में एक्सपोर्ट करने लगा। हम अपने बिज़नेस के लिए ही नारियल के पेड़ उगा रहे थे। लेकिन फिर एक समय ऐसा आया, जब हमारे इलाके के नारियल के पेड़ किसी बीमारी के कारण खराब होने लगे। हमने इसे ठीक करने के लिए कई तरीके अपनाए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। फिर मुझे अखबार में छपी एक खबर से प्राकृतिक खेती के बारे में पता चला। साथ ही, एक प्रकृति प्रेमी प्रोफेसर जॉन्सी जेकब (Johncy Jacob) के बारे में भी पता चला। जो उन दिनों, बच्चों को प्रकृति से जोड़ने के लिए एक कैंप आयोजित कर रहे थे।”
दयाल ने इस कैंप के लिए, अपने दोनों बेटों का भी पंजीकरण करवाया और उनके साथ कैंप में गए। वह कहते हैं कि प्रोफेसर जेकब के साथ, वह पहली बार किसी जंगल में गए थे। और इस यात्रा ने उन्हें पूरी तरह से बदल दिया। इस दौरान, उन्हें प्रकृति को करीब से जानने का मौका मिला। इसके बाद, उन्होंने जापानी किसान मासानोबू फुकुओका (Masanobu Fukuoka) के प्राकृतिक खेती मॉडल के बारे में भी पढ़ा। वह कहते हैं कि जैसे-जैसे उन्होंने जैविक खेती, प्राकृतिक खेती और जैव-विविधता के बारे में जाना और समझा, इस क्षेत्र में उनकी दिलचस्पी बढ़ती गयी। इसके बाद, वह इन्हीं तरीकों से अपने घर के आसपास उपलब्ध खाली जमीन पर पेड़-पौधे (Forest home) लगाने लगे।
घर को बनाया जंगल:
दयाल कहते हैं कि प्रकृति के प्रति बढ़ते प्रेम ने उन्हें खुद एक जंगल लगाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने बताया, “मेरे पास डेढ़ एकड़ बंजर जमीन थी। शुरुआत में, मुझे भी नहीं पता था कि यहां पौधे लगाना संभव हो पायेगा या नहीं, लेकिन फिर भी मैंने एक कोशिश की। सबसे पहले, मैंने इस जमीन पर एक छोटा सा तालाब बनवाया और फिर इसके चारों ओर पौधरोपण किया। आज वही ज़मीन, एक घने जंगल के रूप में सबके सामने है।”
दयाल ने अपनी जमीन पर तरह-तरह के छांवदार, फलदार और घने पेड़-पौधे लगाए हैं। वह कहते हैं कि शुरुआत के कुछ साल उन्होंने कड़ी मेहनत की। इसके बाद, प्रकृति ने खुद ही सबकुछ किया। आज उनकी जमीन पर लगभग 250 किस्म के पेड़-पौधे हैं, जिनमें नारियल, कटहल, आम, सीताफल जैसे पेड़ शामिल हैं। इनके अलावा, उन्होंने चंदन के भी पौधे लगाए। वह कहते हैं, “यही प्रकृति का नियम है कि आप दो बीज लगाएंगे, तो वह खुद ही इनको चार और फिर आठ कर लेगी। इसी तरह, मेरे जंगल में आज हजारों पेड़-पौधे हैं। क्योंकि, मैंने अब तक जितने पौधे लगाए हैं, मेरे जंगल में आज उनसे कई ज्यादा पेड़ हैं।”
उनके जंगल में आज दो छोटे तालाब और सैकड़ों तरह के जीव-जंतु हैं। दयाल ने अपने घर के बाहर बने इस जंगल (Forest home) को ‘श्रीकोविल’ नाम दिया है। इस जंगल में सूरज की किरणें अब धरती पर नहीं पड़ती, बल्कि घने पेड़ों के बीच ही कहीं खो जाती हैं। वह कहते हैं कि पेड़ अपने पत्तों के जरिए, सूरज की रोशनी लेते हैं, जिससे उन्हें उर्जा मिलती है।
साल 2006 में उन्हें ‘वृक्ष मित्र अवॉर्ड’ से भी सम्मानित किया गया था। अपने घर को जंगल (Forest home) बनाने के अलावा, उन्होंने पूरे केरल में लोगों को जैविक कृषि से जोड़ने का अभियान भी चलाया है।
जैविक और प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग:
प्रोफेसर जेकब द्वारा शुरू किए गए अभियान, ‘जैविक कृषि समिति’ से भी दयाल जुड़े हुए हैं। उन्होंने लगभग छह-सात सालों तक केरल में, कृषि से संबंधित समस्याओं पर रिसर्च की और इनके समाधान भी ढूंढे। वह कहते हैं कि हानिकारक रसायनों के कारण कृषि पर जो नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, उसे सिर्फ जैविक तरीकों से ही सुधारा जा सकता है। इसलिए उन्होंने समिति के अन्य लोगों के साथ मिलकर, किसानों को जैविक खेती की ट्रेनिंग देना शुरू किया। आज बहुत से लोग उनके जंगल में प्रकृति को निहारने, समझने तथा उससे संबंधित बातों को जानने के लिए आते हैं।
उन्होंने बताया, “लेकिन, अपने अनुभव से मुझे समझ में आया कि हमें पारंपरिक ज्ञान और विज्ञान को साथ में लेकर काम करना होगा। इसलिए, 2009 में मैंने महात्मा गाँधी यूनिवर्सिटी से संपर्क स्थापित किया। यहाँ लोग मुझे मेरे काम की वजह से जानते थे, इसलिए यूनिवर्सिटी प्रशासन ने मेरी बात पर गौर किया। मैंने उनसे ‘जैविक खेती’ पर एक सर्टिफिकेट कोर्स शुरू करने के लिए कहा। अपने साथियों के साथ मिलकर, मैंने इस कोर्स को डिज़ाइन किया। इसके बाद, यूनिवर्सिटी द्वारा साल 2011 में यह कोर्स शुरू कर दिया गया।”
इस कोर्स की खासियत यह है कि इस कोर्स में, किसी भी उम्र, लिंग और पेशे के लोग दाखिला ले सकते हैं। दयाल खुद यहां पढ़ाते हैं और लोगों को उनके जंगल में घूमने और सीखने का मौका भी मिलता रहता है। इस कोर्स के अंतर्गत, अबतक 10 से ज्यादा बैच को पढ़ाया जा चुका है। वह कहते हैं कि इस कोर्स में 18 वर्ष की उम्र से लेकर, किसी भी उम्र तक के छात्र शामिल हो सकते हैं। उन्होंने अब तक कई डॉक्टर, इंजीनियर, ग्राम पंचायत के अध्यक्ष आदि को भी पढ़ाया है। सर्टिफिकेट कोर्स के बाद, अब यूनिवर्सिटी ने डिप्लोमा कोर्स भी शुरू किया है।
कुछ समय पहले, यूनिवर्सिटी ने एक नया सेंटर, ‘इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर ऑर्गेनिक फार्मिंग ऐंड सस्टेनेबल एग्रीकल्चर‘ भी शुरू किया है। दयाल कहते हैं, “इन कोर्स के जरिए, हमने केरल के बहुत से युवाओं और किसानों को जैविक खेती से जोड़ा है। केरल की एक मशहूर कंपनी ‘स्पाइसेज प्रोड्यूसर कंपनी’ के चेयरपर्सन जेमन राजप्पन भी हमारे छात्र रहे हैं। अब वह भी हमारे साथ इस अभियान से जुड़कर काम कर रहे हैं।” जैविक और प्राकृतिक खेती को अगली पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए दयाल ने और भी कई अभियान शुरू किए हैं।
वह कहते हैं, “जैविक और प्राकृतिक खेती के बारे में मैंने कई लोगों से सीखा है। लेकिन, मैं ‘जंगल’ को ही अपना सबसे बड़ा गुरु मानता हूँ। जंगल से मैंने सीखा कि जीवन में ‘सामंजस्य’ होना बहुत ज्यादा जरूरी है। जंगल में अलग-अलग प्रजाति के पेड़-पौधे तथा जीव-जंतुओं के बीच एक सामंजस्य होता है। जंगल के इस नियम से हम सबको सीखना चाहिए कि हम एक-दूसरे की मदद करते हुए, बहुत ही आसानी से एक स्वस्थ और खुशहाल जिंदगी जी सकते हैं।”
दयाल का काम और उनकी सोच सराहनीय है। उम्मीद है कि बहुत से लोग उनसे प्रेरणा लेकर प्रकृति के महत्व को समझेंगे।
संपादन- जी एन झा
तस्वीर साभार: Proletarian Eco Health Research Foundation
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Forest home
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