अक्सर ऐसा देखा जाता है कि 60 की उम्र पार करते ही लोग आराम की जिंदगी जीने लगते हैं। ऐसे लोगों का मानना होता है कि अब जीवन में आराम किया जाए लेकिन ऐसे भी लोग होते हैं जो रिटायरमेंट के बाद और ज्यादा सक्रिय होकर काम करने लगते हैं, ऐसे लोग जीवन के इस पड़ाव में हर पल खुशी की तलाश में रहते हैं। द बेटर इंडिया आज आपको दिल्ली की एक ऐसी ही महिला की कहानी सुनाने जा रहा है जो 65 की उम्र में अपने घर में ही जैविक खाद बना रही हैं और गार्डनिंग का शौक पूरा कर रही हैं।
दिल्ली के पश्चिम विहार इलाके में रहने वाली 65 वर्षीय रेखा मान पिछले 7 सालों से अपनी लाइफस्टाइल को सस्टेनेबल बनाने में जुटी हैं। इसकी शुरुआत उन्होंने अपने घर के गीले कचरे से खाद बनाने से की। वह बतातीं हैं कि पिछले कई वर्षों से वह अपने घर में पेड़-पौधे लगा रही हैं और गार्डनिंग के लिए वह सभी ज़रूरी पोषक चीजें और कीट प्रतिरोधक आदि घर पर ही तैयार करती हैं।
“मैं जिस उम्र हूँ, उसमें अक्सर महिलाएं अकेलेपन से ग्रस्त होने लगती हैं। बच्चे सेटल हो जाते हैं, उनकी अपनी दुनिया है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम कुछ नहीं कर सकते। इंसान को अपनी रिटायरमेंट के बाद की उम्र को समाज के लिए, पर्यावरण के लिए कुछ करते हुए जीना चाहिए। इससे हम व्यस्त भी रहते हैं और साथ ही कुछ अच्छा कर पाते हैं,” उन्होंने आगे कहा।
रेखा अपनी हाउसिंग सोसाइटी की अध्यक्ष भी हैं और उनकी कोशिश यही है कि वह लोगों को ज्यादा से ज्यादा पर्यावरण के अनुकूल गतिविधियों से जोड़ें। पिछले 7 सालों में उनकी यह मुहिम काफी तेज भी हुई है। वह कहती हैं कि पहले उन पर परिवार की काफी ज़िम्मेदारी होती थीं और तब वह कोई दो-चार पेड़-पौधे ही लगा पाती थीं। पर अब वह अपना पूरा वक़्त अपने गार्डन को और नई-नई चीजें सीखने में बिताती हैं। उन्होंने अपनी छत और आँगन में गार्डन लगाने के साथ-साथ दूसरों के घर भी गार्डन लगवाए हैं।
वह लोगों को सोसाइटी मीटिंग्स में गार्डनिंग, होम-कम्पोस्टिंग और सस्टेनेबल लाइफस्टाइल से जुड़ने के लिए प्रेरित करती हैं। बहुत से लोगों ने उनसे किचन वेस्ट से खाद बनाना सीखा और बहुत बार वह अपनी बची हुई खाद भी लोगों को उपहार स्वरूप उनके गार्डन के लिए दे देती हैं।
“हम सब जानते हैं कि घर पर बनी खाद को ‘काला सोना’ कहा जाता है क्योंकि यह पेड़-पौधों के लिए गोबर की खाद से भी ज्यादा फायदेमंद होता है। मैंने जब खाद बनाना शुरू किया तो मटके से शुरू की। फिर जब बार-बार खाद बनाने से मटके टूटने लगे तो मैंने ड्रम ले लिए और अब ड्रम में ही खाद बनाती हूँ,” उन्होंने कहा।
घर पर बनाई इस खाद को ही रेखा अपने गार्डन में लगी सब्जियों और फलों के पेड़ों में डालती हैं। उन्हें अपने गार्डन से स्वस्थ और पौष्टिक उपज मिलती है। रेखा कहती हैं कि वह कभी भी अपने गार्डन के लिए बाहर से कोई खाद या फिर अन्य उर्वरक नहीं खरीदती हैं। वह जो कुछ भी गार्डन में डालती हैं, सब घर पर ही तैयार होता है। उनका आधे से ज्यादा काम तो खाद ही कर देता है क्योंकि इसमें सभी तरह के मिनरल्स और पोषक तत्व होते हैं। इससे पौधों की ग्रोथ अच्छी होती है। सब्जियां और फल पौष्टिक होते हैं।
कैसे बनाती हैं खाद:
रेखा कहती हैं कि वह अपने किचन से निकलने वाले फल, सब्जियों के छिलकों को कभी नहीं फेंकती बल्कि एक साफ़ जगह पर स्टोर कर लेती हैं। एक-दो दिन बाद, इन्हें वह कम्पोस्टिंग के लिए रखती हैं।
- सबसे पहले आप कोई भी प्लास्टिक का बड़ा डिब्बा, बाल्टी या ड्रम लीजिये।
- इसमें किसी नुकीली चीज़ को गर्म करके नीचे तले में और साइड में कुछ छेद कर लीजिये ताकि ऑक्सीजन का अवागमन होता रहे।
- अब सबसे नीचे आप मिट्टी या सूखे पत्ते बिछा दीजिए।
- इन पर एक लेयर अब छिलकों की डालिए। अगर आप चाहें तो इसपर कोकोपीट की लेयर डाल सकते हैं, लेकिन अगर वह नहीं है तो आप सूखे-गले सड़े पत्ते ही डालिए।
- हर रोज़ आप इस डिब्बे में एक-एक लेयर गीले कचरे और सूखे पत्तों या फर मिट्टी आदि की डालते रहें।
- बीच-बीच में आप थोड़ी-सी पुरानी खाद या फिर छाछ का छिड़काव कर सकते हैं ताकि खाद बनने की प्रक्रिया जल्दी हो जाए।
- इस ड्रम को आपको छांव वाली जगह पर रखना है, जहाँ बारिश का पानी इस पर न पड़े।
- जब यह ड्रम भर जाए तो आप दूसरे किसी बर्तन या ड्रम में यह प्रक्रिया शुरू कर दीजिए।
रेखा के मुताबिक लगभग 40 दिनों में आपको आपकी खाद तैयार मिल जाएगी। बहुत से लोगों को यह करने में वक़्त भी लग सकता है क्योंकि खाद बनाने में एक बार में सफलता मिलना थोड़ा मुश्किल होता है। बहुत बार इसमें कीड़े वगैरा पड़ जाते हैं लेकिन आपको घबराना नहीं है क्योंकि यह ऐसी चीज़ है जो आपको करते -करते आएगी।
“मैंने हर महीने अपने घर में खाद बनाती हूँ। पेड़-पौधों का पॉटिंग मिक्स तैयार करते समय भी मिट्टी में इसी खाद को मिलाती हूँ। इससे मेरे गार्डन को पोषण तो मिलता ही है, साथ ही कचरे की समस्या भी हल हो रही है। इसलिए मैं चाहती हूँ कि ज्यादा से ज्यादा लोग यह करें,” उन्होंने आगे कहा।
रेखा मान कहती हैं कि खाद बनाने के साथ-साथ वह अपने घर में भी शैम्पू, लिक्विड वॉश और बायो-एंजाइम आदि बनाती हैं। इन सब कामों में उनका वक़्त कैसे कट जाता है उन्हें पता भी नहीं चलता। वह अपनी उम्र की हर महिला से इस तरह की गतिविधियों से जुड़ने के लिए कहती हैं क्योंकि उनका मानना है कि इससे मन को शांति मिलती है और शरीर भी तंदरुस्त रहता है।
“मेरा कहना खासतौर पर महिलाओं से है कि किसी और पर निर्भर होने की बजाय खुद अपना मन बहलाने के रास्ते तलाश करें। बुढ़ापा तन से हो सकता है मन से नहीं। अगर आप ही खुद को किसी काम में व्यस्त रखेंगी तो आप खुश रहेंगी। खाली बैठे रहने के बजाए अपने किसी शौक को पूरा किया जाए। या फिर कुछ ऐसा काम किया जाए जो दूसरों की भलाई का भी हो। फ़िलहाल, सबसे अच्छा है कि आप खुद अपनी सब्जियां उगाएं, खाद बनाएं, और तरह-तरह के सस्टेनेबल तरीकों से जुड़ें,” उन्होंने अंत में कहा।
द बेटर इंडिया, रेखा मान के हौसले, जज़्बे और सोच को सलाम करता है!
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