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बंजर ज़मीन से घने जंगल तक: जानिए कैसे इस शख्स ने लगा दिए 1 करोड़ से भी ज्यादा पेड़-पौधे

यह कहानी एक ऐसे शख्स की है, जिन्होंने अपना पूरा जीवन प्रकृति के लिए समर्पित किया है। यह उनकी मेहनत और लगन का ही नतीजा है कि जहाँ कभी 100 एकड़ तक सिर्फ बंजर धरती थी, आज वहाँ हर तरफ हरियाली ही हरियाली दिखती है।

हम बात कर रहे हैं तमिलनाडु के डी.सरवनन की, जिन्होंने 25 सालों की मेहनत से एक अनोखा जंगल तैयार किया है। महात्मा गाँधी का कथन, “आप जो बदलाव दुनिया में देखना चाहते हैं, उस बदलाव की शुरूआत खुद से करें” मानो सरवनन के लिए ही है।

तमिलनाडु के पुथुराई गाँव में सरवनन के जंगल को ‘अरण्य वन’ और ‘अभयारण्य’ के रूप में जाना जाता है।

सरवनन की जिंदगी में जंगल के प्रति लगाव की शुरूआत साल 1994 में होती है, जब जॉस ब्रुक्स ने सरवनन को ओरोविल ग्रीन वर्क रिसोर्स सेंटर में बतौर टीचिंग असिस्टेंट ज्वाइन करने के लिए बुलाया था। ओरोविल की वनस्पति को सहेजने में ऑस्ट्रेलिया के जॉस का काफी योगदान है। जॉस को सरवनन के पर्यावरण के प्रति जुड़ाव के बारे में पता चला तो उन्होंने उनसे संपर्क किया।

उनके काम से प्रभावित होकर, AGWRC के सह-सदस्य, रऊफ अली और नेवी, जिन्होंने मूल रूप से अरण्य शुरू किया था, ने उन्हें जगह की देखभाल करने की जिम्मेदारी दी।

बेशक, सरवनन के लिए बहुत ही सम्मानजनक ज़िम्मेदारी थी लेकिन इसके साथ ही इस काम में चुनौती भी बहुत थी। इस जगह पर हरियाली का नामो-निशान तक नहीं था। ऐसा नही है कि किसी ने कोशिश नहीं की थी लेकिन यहाँ हरियाली उगाने में कोई सफल नहीं हो पाया। घास तक यहाँ उग नहीं रही थी।

तो फिर ऐसा क्या था जो 12वीं पास सरवनन ने इस चुनौती को स्वीकार किया और यहाँ पर इतना खूबसूरत और हर-भरा जंगल खड़ा कर दिया।

इस सवाल के जवाब में सरवनन कहते हैं कि यह भरोसा उन्हें उनके परिवार से आया। उन्होंने हमेशा से ही अपने घर में माता-पिता, चाचा आदि को उस विकास का विरोध करते हुए देखा जो पर्यावरण को नुकसान पहुँचाकर हासिल किया जाता है। “जब मैं पश्चिमी घाट की रैली को बचाने के लिए 100-दिवसीय मार्च में शामिल हुआ था तब मैं 14 वर्ष का था और हालाँकि मुझे ज्यादा समझ नहीं थी, पर मुझे पता था कि इस विकास के भी अपने नुकसान हैं। इसलिए जब मुझे ऑरोविल में बदलाव लाने का मौका मिला, तो मैंने इसे स्वीकार किया। दूसरों की विफलताओं ने मुझे नहीं रोका। उनकी गलतियों से मैंने सीखा,” 52 वर्षीय सरवनन ने आगे कहा।

यह उनके समर्पण की बदौलत ही है कि अब इस वन में एक करोड़ से अधिक वृक्ष हैं और स्वदेशी पौधों की 900 प्रजातियाँ हैं जैसे कि डायोस्पाइरस मेलानॉक्सिलीन, ग्लोरियोसा सुपरबा, मेमेकोलीन उम्बेलटम और डेरिस ओबिसफोलिया। इस जंगल में छह मानव निर्मित जल स्त्रोत और प्राचीन खड्ड हैं।

अब यहाँ पक्षियों की लगभग 240 किस्मों, 54 तितली प्रजातियों और सांपों की 20 प्रजातियां जंगल की सम्मोहक जैव विविधता को और बढ़ाती हैं। जंगल में दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियाँ जैसे फेलिस चाउस (जंगल कैट), विवरिकुला इंडिका (सिवेट्स), कैनिस ऑरियस (जैकाल), बुबो बुबो (ईगल उल्लू) और वरानस बेंगालेंसिस (मॉनिटर छिपकली) भी पाई जाती हैं।

सरवनन अपनी पत्नी वत्चला और बेटी नरचेलवी के साथ जंगल के प्रवेश द्वार पर बने एक घर में रहते हैं। फ़िलहाल, वह अरण्य वन और अभयारण्य के मानद वन्यजीव वार्डन हैं।

बंजर ज़मीन में भरी सांसे

सरवनन ने बहुत सावधानी से उन प्रजातियों को चुना जो बारिश के पानी और यहाँ के मौसम के हिसाब से जीवित रह सकें और ज़मीन को उपजाऊ बनाएं। जिससे कि अरण्य को हर-भरा बनाया जा सके। सरवनन के इस पहल के बारे राज्य सरकार के सिंचाई विभाग के पूर्व उप निदेशक डॉ. कृष्णन कहते हैं, “यहाँ पर वाटर टेबल 150 फीट की गहराई पर थी। इस वजह से कोई पौधा जीवित नहीं रह पाता था। इसलिए पानी सहेजने के लिए बाँध बनाने पर काम किया गया ताकि वर्षा जल संचयन हो। बाँध बनने से मिट्टी का कटाव भी रुक गया जिससे बारिश का पानी तालाबों और जलाशयों में जाए।”

स्थानीय होने के नाते कृष्णन एक स्वयंसेवक के रूप में सरवनन के इस पहल में शामिल होने वाले पहले कुछ लोगों में से एक थे।

उन्होंने 100 फुट गहरे बोरवेल खोदे और छह जलाशयों और एक चेक डैम का निर्माण किया जिसमें वर्षा के पानी की हर बूंद को सहेजा जाए ताकि शुरुआत में घास और मिलेट के लिए पानी मिल सके।

“घास उन पक्षियों को आकर्षित करने के लिए जो पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि वे कीड़े लाती हैं। पक्षी यहाँ जो गिराते हैं वह पौधों के लिए उर्वरकों का काम करता हैं। हमारी पहल काम कर गई और दो सप्ताह के भीतर हमारे यहाँ पक्षियों की आवाजाही बढ़ गई। इसके अलावा, भूमि उर्वरता बढ़ाने के लिए यहाँ मल्चिंग भी की गयी,” उन्होंने कहा।

बीज इकट्ठा करने के अपने अभियान के प्रति सरवनन बहुत ज़्यादा सख्त और जागरूक थे और इसलिए उन्हें यहाँ पेड़- पौधों के सर्वाइवल को बढ़ाना था। उन्होंने विभिन्न मौसमों के लिए एक बीज कैलेंडर बनाया और हर महीने किसानों से बीज लेने के लिए विभिन्न स्थानों की यात्रा करते हैं।

सरवनन के मुताबिक यह सबसे मुश्किल काम था क्योंकि कई बार बीज तैयार नहीं होता और कई बार किसान नहीं मिलते। इस तरह से कई बार यात्राएं करनी पड़ती थी।

वह बीज और पौधे इकट्ठा करने के लिए तमिलनाडु के लिए पुटपेट, ओरानी, ​​थंगल, अलापक्कम और बोहर, कुरुम्बारम स्क्रब जंगल, और जवाड़ी पहाड़ियों और इसके आसपास की जगहों की यात्रा कर चुके हैं। इकट्ठा करने के बाद सरवनन अपने घर की नर्सरी में इन्हें बड़ा करते हैं। इसके बाद, बारिश का मौसम आते ही वह और उनके साथी इन्हें जंगल में लगा देते हैं।

उन्होंने कहा, “हमने मानसून के मौसम को चुना क्योंकि इससे हमें पानी की बचत होती है और बारिश के पानी से वृक्षों का परिचय होता है। शुरुआत से ही हमने पौधों को सीमित पानी में जीवित रहने के लिए प्रशिक्षित किया है।”

अंतर्राष्ट्रीय स्वदेशी अनुसंधान केंद्र (IDRC) द्वारा हजारों स्वदेशी वृक्ष लगाने की तीन वर्षीय परियोजना को फण्ड मिला। उसके बाद, जंगल विकसित करने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों से मदद मिली।

चुनौतियां:

बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण परियोजना के बारे में ग्रामीणों को शिक्षित करना और उनका सहयोग प्राप्त करना सरवनन के लिए आसान नहीं था, भले ही वह उनमें से ही एक हैं। एक ही भाषा बोलते हैं फिर भी वह ग्रामीणों को एक बार में मना नहीं पाए। ग्रामीण इस बात से परेशान थे क्योंकि पहले उनके जानवर वहाँ आज़ादी से घूमते-फिरते थे।

इसलिए सरवनन ने एक कोशिश की और ग्रामीणों के साथ एक समझौता किया। जिसके मुताबिक ग्रामीण उनके साथ देंगे और बदले में, वह जंगल में एक जगह उनके जानवरों के लिए चारा उगाएंगे। इस बात पर ग्रामीण राजी हो गए और अब उन्हें जंगल से मुफ्त में चारा मिलता है और सरवनन को उनसे पौधों के लिए खाद।

जब जानवर और पक्षी इस नए तैयार जंगल में आने लगे कि तो कुछ शिकारियों ने फायदा उठाया और 2000 के दशक के मध्य में जानवरों के शवों का व्यापार शुरू कर दिया।

“अवैध शिकार ने पौधों और वनस्पतियों के स्वास्थ्य को प्रभावित किया। जानवरों के कम होने पर, हमने देखा कि पत्तियां तेजी से सूख रही थीं। चारों तरफ वायर लगाने के अलावा, मैंने ग्रामीणों को पारिस्थितिकी तंत्र और ग्लोबल वार्मिंग के बारे में शिक्षित करने में भी वक़्त दिया। आखिरकार, हमने अवैध शिकार को कम कर दिया,” सरवनन कहते हैं।

प्रभाव:

80 प्रतिशत की जीवित रहने की दर के साथ, जंगल में हर साल वनस्पतियों और जीवों की कई प्रजातियों का विकास होना शुरू हो गया और 2000 के दशक के मध्य तक वाटर टेबल की गहराई 150 से 40 फीट हो गई, जो एक बहुत ही सराहनीय उपलब्धि थी। यह जंगल पक्षी के घोंसले, दो दशक पुराने बरगद के पेड़, बोन्साई, लताएं, आदि के साथ, जंगल पर्यटकों को एक शानदार दृश्य प्रदान करता है।

स्थानीय लोगों के अलावा, सरकार और विभिन्न संगठन भी जंगल के सपोर्ट में हैं और स्वदेशी वृक्षारोपण का रखरखाव करते हैं। साल दर साल लोग इस बदलाव को देखने के लिए दुनिया भर से आते हैं। लोगों की दिलचस्पी ने सरवनन और वत्चला को बड़ों और बच्चों के लिए वर्कशॉप लेने के लिए प्रोत्साहित किया।

“कॉलेज और स्कूल के छात्र जैव विविधता का अध्ययन करने के लिए यहाँ आते हैं। मुझे जानकारी सहेजने और आने वाली पीढ़ियों को जागरूककरके ख़ुशी मिलती है,” वह कहते हैं।

हवा और पानी की गुणवत्ता में सुधार के साथ-साथ- हरियाली और नमी तापमान को 1-2 डिग्री तक कम बनाए रखते हैं – सरवनन ने व्यक्तिगत जीत हासिल की है। अब वह वन्यजीव अधिकारी या फोटोग्राफर जैसे विशेषज्ञों की तरह जानवरों को भी उनके क़दमों की आवाज़ से पहचान सकते हैं!

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मूल लेख: गोपी करेलिया 

संपादन: जी. एन. झा 


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