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तमिलनाडु: 2000 साल पुराने इस बाँध से आज भी होती है खेतों की सिंचाई

क्या आपको पता है कि विश्व का सबसे प्राचीन बांध भारत में है? आज से करीब 2 हजार साल पहले कावेरी नदी पर कल्लनई बांध का निमार्ण कराया गया था, जो आज भी न केवल सही सलामत है बल्कि सिंचाई का एक बहुत बड़ा साधन भी है। आज द बेटर इंडिया आपको इसी अनोखे बांध की कहानी सुनाने जा रहा है।

तमिलनाडु में तिरुचिरापल्ली जिला स्थित कावेरी नदी पर बने ‘कल्लनई बांध’ का इतिहास 2000 साल पुराना है। इस बांध को ग्रैंड एनीकट के नाम से भी जाना जाता है और यह सिर्फ देश के ही नहीं बल्कि दुनिया के सबसे पुराने बांधों में एक है।

इस बांध का निर्माण चोल काल में राजा करिकल चोल ने करवाया था ताकि कावेरी नदी की धारा के प्रभाव को मोड़ा जा सके। कावेरी नदी की जलधारा बहुत तीव्र गति से बहती है और बरसात के मौसम में डेल्टा क्षेत्रों में बाढ़ का कारण बनती थी। इस वजह से इस पर बांध का निर्माण कराया गया ताकि इसके पानी को सिंचाई के कार्यों के लिए काम में लिया जा सके।

यह बांध भले ही पुराना है लेकिन आज भी काफी मजबूत है। तमिलनाडु में आज भी इस बांध को सिंचाई कार्यों के लिए उपयोग में लिया जा रहा है। इस बांध को अपनी निर्माण शैली के कारण आर्किटेक्चर और इंजीनियरिंग के बेहतरीन कौशल के रूप में देखा जाता है। पूरी दुनिया के लिए इसे एक प्रेरणा स्त्रोत माना जाता है और हर साल अनगिनत संख्या में टूरिस्ट इस बांध को देखने आते हैं।

Kaveri River

पानी की तेज धार के कारण इस नदी पर किसी निर्माण या बांध का टिक पाना बहुत ही मुश्किल काम था। उस समय के कारीगरों ने इस चुनौती को स्वीकार किया और और नदी की तेज धारा पर बांध बना दिया जो 2 हजार वर्ष बीत जाने के बाद आज भी ज्यों का त्यों खड़ा है।

कावेरी नदी, श्रीरंगम में दो अलग धाराओं में बंटती है- उत्तरी धारा को कोल्लिदम कहते हैं और दक्षिणी धारा का नाम कावेरी ही है। जैसे-जैसे यह नीचे की तरफ बढ़ती हैं, दोनों धाराएँ फिर एक साथ आती हैं। कल्लनई बांध को कावेरी नदी की दक्षिणी धारा पर बनाया गया है, जहाँ यह कोल्लिदम के पास आती है।

बांध से कावेरी की धारा चार भागों में बंट गई- कोल्लिदम, कावेरी, वेंनारू और पुठु अरु। चोल राजा ने न सिर्फ यह बांध बनवाया बल्कि यहाँ से किसान अपने खेतों में पानी इस्तेमाल कर सकें इसके लिए कैनाल भी बनवाईं। इन चार धाराओं से डेल्टा क्षेत्रों में अच्छी सिंचाई होने लगी और देखते ही देखते यहाँ पर सूखे और अनाज की कमी की समस्या खत्म हो गई। कहते हैं किसी जमाने में तंजावुर को बाहर से अन्न खरीदना पड़ता था लेकिन अब यहाँ चावल का अच्छा उत्पादन होता है।

बांध के निर्माण के समय बड़े-बड़े पत्थरों को नदी के तल पर लगाए गए, जिनसे नदी की धारा की दिशा बदली गई। उस समय यह बाँध 329 मीटर लंबा, 29 मीटर चौड़ा और 5.4 मीटर ऊँचा था। चोल काल के बाद ब्रिटिश शासन के दौरान इस बांध में हल्का-सा बदलाव हुआ।

Kallanai Dam (Source)

साल 1804 में एक मिलिट्री इंजीनियर, कैप्टेन काल्डवेल को डेल्टा क्षेत्र में सिंचाई के निरिक्षण के लिए नियुक्त किया गया था। उन्होंने जब बांध का निरीक्षण किया तो उन्हें समझ में आया कि अगर बांध की ऊंचाई बढ़ा दी जाए तो लोगों को और ज्यादा पानी सिंचाई के लिए मिल सकता है।

काल्डवेल के मार्गदर्शन में बांध की ऊंचाई को पत्थरों का उपयोग करके 0.69 मीटर बढ़ाया गया। इससे बाँध की पानी को सहेजने की क्षमता भी बढ़ गई। आज यह बांध करीब एक हजार फीट लंबा और 60 फीट चौड़ा है।

पहले जहाँ इस बांध से 69 हज़ार एकड़ ज़मीन की सिंचाई होती थी, वहीं अब लगभग 10 लाख एकड़ जमीन की सिंचाई होती है।

साल 1829 में ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त सर आर्थर टी कॉटन ने कल्लनई बांध की तकनीक को इस्तेमाल करते हुए ही इस क्षेत्र में और भी बांध बनवाए। उन्होंने ही इस बांध को ‘ग्रैंड एनीकट’ नाम दिया गया और उन्होंने इसे ‘वंडर्स ऑफ़ इंजीनियरिंग’ कहा

कैसे पहुंचे यहाँ तक:

यदि आप भारत की इस अमूल्य तकनीकी विरासत कल्लनई बांध के दर्शन करना चाहते हैं तो आपको तमिलनाडू के तिरूचिरापल्ली जिले में आना होगा। मुख्यालय तिरूचिरापल्ली से इसकी दूरी महज 19 किलोमीटर है। यहाँ से सबसे पास तिरुचिरापल्ली एअरपोर्ट है जो 13 किमी दूरी पर है। रेलवे मार्ग की बात करें तो यहाँ सबसे नजदीक लालगुडी रेलवे स्टेशन है जो मात्र 4 किमी की दूरी पर है!

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मूल लेख: श्रेया पारीक


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