कोरोना महामारी और फिर लॉकडाउन के कारण पूरी दुनिया थम सी गई थी। हम सभी उस दौर के गवाह हैं, जब हर कोई किसी न किसी समस्या से जूझ रहा था। बिजनेस, नौकरी सबकुछ ठप हो चला था। लेकिन उस दौर में भी कुछ लोग क्रिएटिविटी साथ आगे बढ़ रहे थे। आज हम आपको ओडिशा के एक ऐसे ही युवक की कहानी सुनाने जा रहे हैं, जो शरीर से तो दिव्यांग हैं, पर मन सुर हुनर में हम सबसे कई ज़्यादा सक्षम हैं। लॉकडाउन के दौरान उन्होंने अपने हुनर को तराशा और आज नारियल के खोल से एक से बढ़कर एक क्रॉफ्ट बनाकर बेच रहे हैं।
यह प्रेरक कहानी ओडिशा के बलांगीर जिला स्थित पुइंतला (Puintala) गांव के 29 वर्षीय सब्यसाची पटेल की है। सब्यसाची को बचपन से ही रीढ़ की हड्डी में दिक्क्त है, जिससे वह ज्यादा समय खड़े नहीं रह सकते हैं और न ठीक से चल पाते हैं। लेकिन आज सब्यसाची नारियल की खोल से कप, गिलास, रथ सहित 15 तरह के सजावटी सामान बनाकर कमाई कर रहे हैं।
सब्यसाची ने द बेटर को बताया, “मुझे बचपन से आर्ट और क्रॉफ्ट का शौक रहा है। इस साल लॉकडाउन में मैंने यूट्यूब के जरिए नारियल की खोल से सजावटी सामान बनाना सीखा। वैसे तो उस समय मैं शौक के लिए यह सब सीख रहा था। लेकिन आज वही शौक मेरा बिजनेस बन गया है।”
सब्यसाची ने बताया कि उन्होंने अपनी बनाई वस्तुओं की तस्वीरों को जब फेसबुक पर अपलोड करना शुरू किया, तो शानदार प्रतिक्रिया आने लगी। उन्हें कुछ ऑडर्स मिलने लगे और फिर यहीं से उनका रोजगार का रास्ता खुल गया।
हुनर के धनी हैं सब्यसाची
सब्यसाची के पिता किसान हैं और खुद की एक एकड़ जमीन में खेती करते हैं। उनकी माँ गृहिणी हैं और एक छोटा भाई भी है। उन्होंने विज्ञान विषय से बारहवीं पास करने के बाद, साल 2010 में कोलकाता SIHM (स्टेट इंस्टिट्यूट होटल मैनेजमेंट) से फ़ूड प्रोडक्शनिंग में डिप्लोमा किया। कोर्स के साथ, उन्होंने होटल में छह महीने की ट्रेनिंग भी की थी।
सब्यसाची कहते हैं, “ मेरे एक चचरे भाई होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई के बाद मालदीव में काम कर रहे हैं। उन्होंने ही मुझे इस कोर्स को पूरा करने की सलाह दी थी। दरअसल उस समय डिप्लोमा के बाद रेलवे में IRCTC फ़ूड कैटरिंग विभाग में सरकारी नौकरी मिल जाती थी। मुझे क्रॉफ्ट का शौक था, इसलिए मैंने कोर्स के दौरान फ़ूड कार्विंग की अलग से ट्रेनिंग भी ली थी। जिसमें मुझे फल और सब्जियों पर सुंदर नक्काशी करना सिखाया गया था। सच कहूं तो मुझे पूरी उम्मीद थी की दिव्यांग कोटा में मुझे सरकारी नौकरी जरूर मिल जाएगी।”
लेकिन कहते हैं न कि कई बार आप जो सोचते हैं, वह नहीं हो पाता है। सब्यसाची के साथ भी यही हुआ। कुछ तकनीकी कारणों से, उन्हें नौकरी नहीं मिली। उन दिनों को याद करते हुए वह कहते हैं, “सच कहूं तो मैंने केवल नौकरी की चाहत में कोर्स किया था। दिव्यांग होने की वजह से मैं ज्यादा देर खड़ा नहीं रह सकता हूं, इसलिए होटल में नौकरी करना मेरे बस की बात नहीं थी। कोर्स के दौरान मैंने छह महीने की ट्रेनिंग बड़ी मुश्किल से पूरी की थी। लेकिन यह मेरा दुर्भाग्य था कि मुझे नौकरी नहीं मिली।”
वापस घर आकर शुरू किया नया काम
सब्यसाची ने पिता के कहने पर होटल में नौकरी करने के बजाय घर वापस आने का फैसला किया। उन्होंने घर आकर ग्रेजुएशन की पढ़ाई शुरू कर दी। ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने एक किराना दुकान खोली। लेकिन क्रॉफ्ट के शौकीन सब्यसाची, अपने शौक से हमेशा जुड़े रहे। वह समय मिलने पर शादी या अन्य किसी समारोह में थर्मोकॉल, बर्फ और फल-सब्जियों की कार्विंग का काम भी करते थे।
उनके गांव में हर कोई उनके इस हुनर से वाकिफ है, इसलिए उन्हें हमेशा ऑडर्स मिलते रहते थे। लेकिन पिछले साल लॉकडाउन के दौरान जब संक्रमण से बचने के लिए समारोह के आयोजनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, तब उन्हें काम मिलना भी बंद हो गया। उस वक्त भी सब्यसाची निराश नहीं हुए और कुछ नया सीखने की तैयारी करने लगे।
खाली समय में सीखी नई कला
सब्यसाची कहते हैं कि लॉकडाउन के दौरान, उनकी एक भांजी ने अपने स्कूल प्रोजेक्ट के लिए नारियल से गणेश बनाने को कहा। इसके लिए वह यूट्यूब पर वीडियो खोजने लगे, जिसमें नारियल से गणेश बनाना सीखाया गया हो। इस तरह उन्हें नारियल से और उसके खोल से बनने वाले क्रॉफ्ट के बारे में पता चला।
सब्यसाची के घर के पास ही एक शिव मंदिर है। शुरुआत में मंदिर से वह नारियल लाते और फिर उससे शौक से सामान बनाने लगे। उन्होंने सबसे पहले चाय पीने के लिए कप बनाया, फिर धीरे-धीरे दूसरी चीज़ें भी बनाने लगे।
वह कहते हैं, “पिछले साल लॉकडाउन की वजह से मंदिर बंद होने के बावजूद भी, लोग सावन महीने में मंदिर के बाहर ही नारियल रखकर चले जाया करते थे। मैंने बलांगीर लोकनाथ मंदिर के पुजारी से संपर्क किया और वहां से नारियल की खोल लाने लगा और उससे सजावटी चीजें बनाने लगा।”
इस साल अगस्त महीने में उन्होंने अपनी बनाई वस्तुओं की तस्वीरों को फेसबुक पर अपलोड करना शुरू किया। वेस्ट से बेस्ट की तर्ज पर बने उनके प्रोडक्ट्स को ऑनलाइन कई लोगों ने पसंद किया। तक़रीबन पांच दिन बाद ही उन्हें कटक की एक लड़की ने वाइन गिलास और कप बनाने का आर्डर दिया। इसके एवज में उन्हें 300 रुपये मिले थे।
हुनर बन गया नया बिज़नेस
हालांकि जब वह इन प्रोडक्ट्स को बना रहे थे तब उनके दिमाग में इसके बिज़नेस का कोई आईडिया नहीं था। लेकिन उन्हें मात्र दो महीने में फेसबुक के माध्यम से ही 10 ऑर्डर्स मिल गए। कुछ ऑर्डर्स तो लोकल थे जबकि दो तीन ऑडर्स कटक से मिले जिसे उन्होंने कूरियर के माध्यम से भेजा। सब्यसाची कहते हैं कि उनके जिले में इस तरह के प्रोडक्ट्स और कोई नहीं बनाता था इसलिए कई लोकल न्यूज़ चैनल में उनके बारे में बात होने लगी।
इसके बारे में सब्यसाची कहते हैं, “लोकल न्यूज चैनलों पर जब मेरे आर्ट और क्रॉफ्ट की बातें होने लगी तब ओडिशा के अमेज़न कंसल्टेंट सुधीर भोई ने मुझसे संपर्क किया और मुझे अमेज़न पर सेलर बनने के लिए प्रेरित किया।”
जब द बेटर इंडिया ने इसके बारे में सुधीर से बात की तो उन्होंने बताया, “हम ज्यादा से ज्यादा सेलर को अमेज़न पर रजिस्टर करने के लिए काम करते हैं। सब्यसाची अपने प्रोडक्ट्स को बहुत ही कम कीमत पर बेच रहे थे। जिससे उन्हें ज्यादा फायदा नहीं हो रहा था। जबकि वह यदि ऑनलाइन इस तरह के सामान बेचते हैं तो उनके द्वारा बनाए गए एक कप या गिलास की कीमत 500 रुपये हो सकती है, जबकि वह अपने प्रोडक्ट को केवल 100 या 150 रुपये में बेच रहे थे। इसलिए हमने पहले उन्हें ‘सब्यसाची क्रॉफ्ट’ के नाम से रजिसर्टड करवाया। फिलहाल हम उनके GST नंबर इंतजार कर रहे हैं जो आने वाले कुछ दिनों में हो जाएगा। जिसके बाद जल्द ही लोग उनके प्रोडक्ट्स अमेज़न पर खरीद पाएंगे।”
सब्यसाची कहते हैं, “अमेज़न पर काम शुरू होने के बाद मैं जूट के प्रोडक्ट्स भी बनाकर बेचना शुरू करूंगा। मुझे पूरी उम्मीद है कि आने वाले दिनों में इससे मुझे अच्छा मुनाफा होगा।”
भले ही अभी वह फेसबुक के जरिए ही अपने आर्ट-क्रॉफ्ट को बेच रहे हैं लेकिन इसके बावजूद उन्हें ऑर्डर मिल रहे हैं। उनकी कला को लोग पसंद कर रहे हैं। सब्यसाची को उम्मीद है कि आने वाले समय में जब उनकी बनाई चीजें अमेजन पर आएंगी तो उनका रोजगार बढ़ेगा और उनकी कमाई भी बढ़ेगी।
सब्यसाची की कहानी यह बात साबित करती है कि कोई भी हुनर कभी बेकार नहीं जाता।
यदि आप सब्यसाची के बनाए सजावटी सामान को देखना चाहते हैं तो उनसे सोशल मीडिया (https://www.facebook.com/sabyasachi.patel) पर संपर्क कर सकते हैं।
संपादन- जी एन झा
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