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"मैं हमेशा से इस बात को लेकर सजग थी कि जब भी अपना घर बनवाऊंगी, तो वह ज्यादा से ज्यादा प्रकृति के अनुकूल होगा। इसलिए मैंने सस्टेनेबल घरों पर काफी रिसर्च भी की। फिर जिस इलाके में मैंने जमीन ली, वहां पर क्या साधन उपलब्ध हैं, इस बात पर ध्यान दिया," यह कहना है हरियाणा के फरीदाबाद में रहनेवाली वीना लाल का। हमेशा से पर्यावरण के प्रति संवेदनशील रहने वाली वीना, पिछले कई बरसों से सामाजिक क्षेत्र में काम कर रही हैं। साल 1997 से, वह एक केयर होम चला रही हैं और इसके साथ-साथ, एक संगठन के जरिए कपड़े और प्लास्टिक के कचरे के प्रंबधन पर भी काम कर रही हैं।
घर से लेकर उनके पेशे तक, हर जगह उनकी कोशिश यही है कि वह प्रकृति के अनुकूल काम करें। उन्होंने बताया कि साल 1997 में, उन्होंने 'कर्म मार्ग' केयर होम की शुरुआत की थी। यह फरीदाबाद में स्थित है और फिलहाल, अलग-अलग उम्र के 50 बच्चे इस घर में रह रहे हैं। इसके अलावा, उन्होंने 2003 में 'जुगाड़' नाम से एक संगठन की शुरुआत की। 'जुगाड़' के द्वारा कपड़े, पेपर, प्लास्टिक और अन्य बेकार कचरे से बहुत ही रचनात्मक वस्तुएं बनाई जाती हैं, जिनकी बाजार मे बिक्री होती है। इन उत्पादों की बिक्री के जरिए यह संगठन युवाओं और आस पास के गांवों की महिलाओं को रोजगार के अवसर और कमाई का जरिया प्रदान करता है।
वीना कहती हैं, "मैंने जब अपना खुद का घर बनवाने का तय किया, तो सोचा कि इसे केयर होम के पास ही बनाया जाए। ताकि मैं इन बच्चों के करीब रहकर काम कर सकूं।" लगभग एक साल पहले ही, उनका अपना घर बनकर तैयार हुआ, जिसे उन्होंने न सिर्फ प्रकृति के अनुकूल तरीकों से बनवाया है, बल्कि उनकी जीवनशैली भी प्रकृति के अनुकूल है।
वीना ने बताया कि घर का डिज़ाइन बनाते समय, उन्होंने तय किया कि उन्हें सिर्फ इतना ही निर्माण करना है, जितनी की उनकी जरूरत है। क्योंकि, सिर्फ रहने के लिए घर चाहिए न कि दिखावे के लिए। उनके घर में दो कमरे, एक रसोई, एक ड्राइंग रूम और बरामदा है। बाथरूम और वॉशरूम को भी उन्होंने कमरों में अटैच नहीं बनवाया है। वीना कहती हैं कि उन्होंने शुरू में ही फैसला कर लिया था कि वह घर में 'ड्राई टॉयलेट' बनवाएंगी। ताकि कम से कम पानी इस्तेमाल हो और बागवानी के लिए पोषण से भरपूर खाद मिल जाए। "इसके अलावा, घर की जगह से जो भी मिट्टी निकली, उससे हमने ईंटें बनवायी। ज्यादातर हमने इन्हीं ईंटों का इस्तेमाल किया है। बहुत ही कम हुआ कि हमें बाहर से ईंट खरीदनी पड़ी," उन्होंने कहा।
घर के निर्माण में ज्यादातर मिट्टी का ही प्रयोग हुआ है। उन्होंने सीमेंट का उपयोग न के बराबर किया है। उनके घर पर प्लास्टर भी मिट्टी का ही किया गया है। घर के फर्श के लिए उन्होंने स्थानीय इलाकों में मिलने वाले पत्थर का इस्तेमाल किया है। वहीं, घर की छत के लिए आरसीसी की जगह 'गाटर-पत्थर' तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। उन्होंने बताया कि छत बनाने के लिए यह बहुत पुरानी तकनीक है। हरियाणा के गांवों में ज्यादातर घरों की छत इसी तकनीक से बनी हुई मिलेंगी। इस तकनीक में लोहे के 'गाटर' और स्थानीय पत्थरों का इस्तेमाल होता है। यह आरसीसी से ज्यादा मजबूत और लंबे समय तक चलने वाली तकनीक है।
"इसके अलावा, मैंने सबसे ज्यादा ध्यान रसोई और बाथरूम के पानी की निकासी पर दिया है। बाथरूम और रसोई में पानी का काफी इस्तेमाल होता है। लोग इस बात पर ध्यान ही नहीं देते कि इस पानी को बाहर नालों में बहने की बजाय हम बागवानी या भूजल स्तर को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल में ले सकते हैं। मेरे घर में रसोई और बाथरूम के सभी पाइप इस तरह से लगाए गए हैं कि यह पानी बाहर न जाकर हमारे बागवानी वाली जगह में जाए और वहां पर केले के पौधे लगाए गए हैं, क्योंकि इनकी जड़ें गंदे पानी को फ़िल्टर कर देती हैं," उन्होंने आगे बताया।
सौर ऊर्जा से बचा रहे बिजली और गैस भी
वीना कहती हैं कि सबसे पहले उन्होंने केयर होम के लिए सौर सिस्टम लगवाया था। इससे उन्हें केयर होम के बिल में भी काफी बचत हो रही है। उन्होंने बताया, “पहले केयर होम का बिजली बिल महीने में 10 से 15 हजार रुपए तक आता था लेकिन अब सौर ऊर्जा इस्तेमाल करने के कारण यह मात्र तीन-चार हजार रुपए ही आता है। केयर होम के अलावा, मेरा अपना घर भी सौर ऊर्जा से ही रौशन हो रहा है। मुझे अपने घर में एसी या कूलर इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं पड़ती है।”
उन्होंने बताया कि गर्मी के मौसम उनका पूरा परिवार रात में छत पर ही सोता है, जिस वजह से पंखे आदि की जरूरत नहीं पड़ती है। कमरे में भी बिजली संबंधी उपकरणों का कम इस्तेमाल होता है। वह खाना भी सौर कुकर में ही पकाती हैं।
उन्होंने बताया, "हमारे घर में ज्यादातर खाना सौर कुकर में ही पकता है। दाल, चावल, और दूसरी चीजें जैसे बेकिंग के लिए भी, सौर कुकर बहुत फायदेमंद है। इसमें न तो आपका लगातार खाने को देखने की जरूरत होती है और न ही इसमें खाना जलता है। लेकिन गैस से आपकी नजर जरा सी हटी और आपका खाना बर्बाद। सौर कुकर में धीरे-धीरे खाना पकने के कारण इसका पोषण भी ज्यादा होता है।" वह कहती हैं कि पहले जो गैस सिलिंडर सिर्फ एक महीने चलता था, अब वह लगभग दो महीने आराम से चल जाता है।
खुद उगाती हैं फल-सब्जियां
वीना न सिर्फ अपने कीचन के लिए, बल्कि केयर होम के लिए भी सब्जी और फल ज्यादातर खुद ही उगाती हैं। वीना कहती हैं कि उन्होंने अपनी जमीन पर ज्यादा जगह बागवानी के लिए छोड़ी हुई है। इस जगह पर फलों और सब्जियों के पेड़-पौधों के अलावा कुछ घने और छांवदार वृक्ष जैसे पीपल, बरगद, नीम आदि भी हैं। "प्रकृति के लिए बेहतर घने और छांवदार पेड़ों को आजकल लोगों ने लगाना ही छोड़ दिया है। अपने घरों में ज्यादातर लोग छोटे पेड़-पौधे ही लगाते हैं। लेकिन हमने कैंपस में हर तरह के पौधे लगाए हैं," उन्होंने बताया।
इसके अलावा, सब्जियों के लिए उन्हें बाजार पर निर्भर नहीं होना पड़ता है। फल भी बच्चे ज्यादातर अपने कैंपस में लगे पेड़ों के ही खाते हैं। वीना कहती हैं कि बागवानी के लिए वह रसोई और बाथरूम के पानी को फिर से इस्तेमाल में ले रही हैं। लेकिन इसके लिए उन्होंने अपनी बहुत सी आदतों में बदलाव किया है। जैसे रसोई में बर्तन धोने के लिए हानिकारक रसायन युक्त डिशवॉश की जगह बायोएंजाइम और रीठा पाउडर का इस्तेमाल होता है। बाथरूम में नहाने और कपड़े धोने के लिए भी प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल किया जाता है।
उन्होंने बताया, "आप जितनी प्राकृतिक चीजें इस्तेमाल करेंगे, पानी उतना ही कम प्रदूषित होगा और इस पानी को आसान तरीकों से फ़िल्टर करके फिर से इस्तेमाल करना भी आसान रहेगा। इसलिए हमारे घर में और केयर होम में भी किसी भी तरह के हानिकारक रसायन युक्त क्लीनिंग एजेंट नहीं आते हैं।" साथ ही, उनके घर से कोई कचरा बाहर नहीं जाता है। सभी तरह के जैविक कचरे से खाद बनाई जाती है। वीना कहती हैं कि फिलहाल वह 'परमाकल्चर' विधि पर काम कर रही हैं ताकि आने वाले समय में उन्हें किसी पर भी निर्भर न होना पड़े।
वीना लाल की जीवनशैली और उनका घर हम सबके लिए प्रेरणा है। लेकिन यह भी सच है कि बहुत से कारणों के चलते सब लोगों के लिए इस तरह के बदलाव कर पाना मुमकिन नहीं होता है। इसलिए वह लोगों को सिर्फ एक सलाह देती हैं, "अगर आप घर का निर्माण कर रहे हैं तो कोशिश करें कि आपके बाथरूम और रसोई से निकलने वाले पानी की निकासी किसी नाले या सीवेज में न होकर, आपके अपने बगीचे या किसी सार्वजानिक बगीचे में हो। या फिर आप सोखता गड्ढ़ा बनवा सकते हैं ताकि यह पानी भूजल स्तर बढ़ाने में काम आए। मैं हर किसी से यही कहती हूं कि आप अपने घर में ज्यादातर प्राकृतिक चीजें इस्तेमाल करें।"
संपादन- जी एन झा
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