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आम जनता की अक्सर यह शिकायत रहती है कि पुलिस उसकी फ़रियाद नहीं सुनती, लेकिन इंदौर में पदस्थ पुलिस अधिकारी शैलेंद्र सिंह चौहान की चौखट पर आने वाला हर व्यक्ति एक उम्मीद के साथ वापस लौटता है, यहाँ तक कि बेज़ुबान भी उनके दर से खाली नहीं जाते।
पशु-पक्षियों के ख़िलाफ क्रूरता के मामलों को चौहान उतनी ही गंभीरता से लेते हैं, जितनी गंभीरता से लोगों के साथ हुए किसी अपराध को। उनका मानना है कि इंसान हो या बेज़ुबान, दोनों ही न्याय के हक़दार हैं और उन्हें न्याय दिलाना पुलिस की ज़िम्मेदारी है।
हाल ही में चौहान की पहल पर इंदौर के लगभग सभी थानों और शासकीय कार्यालयों में पक्षियों के लिए दाना-पानी की व्यवस्था की गई, ताकि चिलचिलाती धूप में उन्हें अपनी प्यास बुझाने के लिए यहाँ-वहाँ न भटकना पड़े।
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एक आला पुलिस अधिकारी का बेज़ुबानों के प्रति इतना संवेदनशील होना पशु-पक्षियों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने वालों के लिए किसी सौगात से कम नहीं है।
पुलिस स्टेशन और अन्य सरकारी कार्यालयों में हर रोज़ सैकड़ों लोगों का आना-जाना होता है, इसलिए पक्षियों के लिए दाना-पानी रखने के लिए इन जगहों को चुना गया, ताकि लोग यह देखकर प्रेरित हों और बेज़ुबानों के लिए अपने स्तर पर कुछ करें। चौहान के अनुसार, जब लोग यह देखते हैं कि सरकारी अधिकारी ऐसा कर रहे हैं तो उनके अंदर भी पशु-पक्षियों के लिए कुछ करने की प्रेरणा जागती है और यही हम चाहते हैं।
कम ही लोगों को पता है कि इंदौर का कनाडिया पुलिस स्टेशन देश का एकमात्र ऐसा थाना है जो पशु-पक्षियों के संरक्षण एवं पशु क्रूरता निवारण केंद्र के रूप में काम करता है।
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इस थाने को आकार देने से लेकर इसके सफल संचालन में शैलेंद्र सिंह चौहान की भूमिका बेहद ख़ास रही है। चौहान यह सुनिश्चित करते हैं कि जो भी शिकायत आती है, उस पर तत्काल कार्रवाई की जाए।
शैलेंद्र सिंह शुरुआत से ही जानवरों के लिए कुछ करना चाहते थे और पिछले साल अप्रैल में पशु क्रूरता निवारण के लिए कनाडिया थाना के अस्तित्व में आने से उनकी यह इच्छा पूरी हो गई। उन्हें यहाँ का नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया। इस नई ज़िम्मेदारी के साथ चौहान के सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी कि पहले से ही काम के बोझ से दबी पुलिस के दम पर बेज़ुबानों के हक़ की लड़ाई कैसे लड़ी जाए। लिहाजा, उन्होंने पशु कल्याण में लगे संगठनों-कार्यकर्ताओं को एक साथ लाना शुरू किया।
कनाडिया थाना ट्रिपल ‘C’ कम्युनिकेशन, कन्वेंस और कम्प्लेंट के सिद्धांत पर काम करता है। यानी पहले लोगों से संवाद स्थापित किया जाता है, फिर उन्हें समझाने का प्रयास किया जाता है और अंत में जब कोई विकल्प नहीं बचता तो फिर शिकायत की जाती है। थाने के लिए एक एम्बुलेंस की व्यवस्था भी की जानी है, लेकिन फंड की कमी के चलते यह अब तक संभव नहीं हो सका है।
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चौहान के मुताबिक, “टीम गठित होने के बाद हमने स्कूल-कॉलेजों का रुख किया, ताकि बच्चों को जागरूक किया जा सके। इसके बाद हमने मंडियों की जांच की, क्योंकि जानवरों पर अत्याचार के अधिकांश मामले वहीं देखने को मिलते हैं। उन पर ज़रूरत से ज्यादा बोझ लादा जाता है। हमने लोगों को समझाया कि जानवरों से कानूनन कितना भार उठवाया जा सकता है, साथ ही इसके उल्लंघन पर कार्रवाई भी की गई। जहाँ से डॉग लवर्स को परेशान करने की शिकायतें मिलीं, हमने वहाँ जाकर भी बात की और कानून की जानकारी देने वाले पैम्फलेट बांटे। यह काम अभी भी चल रहा है और आगे भी चलता रहेगा।”
एक नोडल ऑफिसर के तौर पर आपको किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?
इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा,“सबसे बड़ी चुनौती तो यही है कि लोगों में जागरूकता नहीं है। उन्हें लगता है कि जानवर खासकर कुत्ते इंसान के दुश्मन हैं, वे गंदगी करते हैं, काटते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। वे हमसे प्यार करते हैं, उन्हें बस थोड़ी देखभाल चाहिए। कोई भी जानवर तभी हिंसक होता है, जब वह भूखा हो, लिहाजा यदि हम इसका ध्यान रखें तो समस्या ही नहीं रहेगी। जानवर ख़ुद कभी हमला नहीं करता, वह केवल डिफेंड करता है। यदि आप किसी को उकसायेंगे तो प्रतिक्रिया स्वाभाविक है। शहरी इलाकों में ग़लती से दाखिल होने वाला तेंदुआ भी जानबूझकर किसी को निशाना नहीं बनाता। कुत्ते गाड़ियों के पीछे भागते हैं, यह सबको नज़र आता है, मगर उसके पीछे की वजह नज़र नहीं आती। कई बार कुत्ते गाड़ियों से कुचले जाते हैं। अब वे नंबर तो पढ़ नहीं सकते, इसलिए ट्रॉमा के चलते गाड़ियों के पीछे दौड़ने लगते हैं। मेरा मानना है कि यदि हम जानवरों के साथ प्यार से रहेंगे, तो हमें बदले में प्यार ही मिलेगा। कुत्ते तो वैसे भी मनुष्य के सबसे वफ़ादार साथी के रूप में पहचाने जाते हैं।“
शैलेंद्र ग्रामीण परिवेश से आते हैं और यही वजह है कि पशु-पक्षियों के प्रति उनके मन में शुरू से कोमल भावना रही है।
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वे कहते हैं, “गाँव में मेरा हर दिन जानवरों के बीच ही निकलता था, इसलिए मुझे उनका महत्व पता है और मैं उनकी पीड़ा को भी भली-भांति समझता हूं। डॉक्टर के यहाँ कभी जाना होता था तो घोड़ा या बैलगाड़ी ही विकल्प होते थे। हर जानवर किसी न किसी रूप में हमसे जुड़ा है और हमारे लिए काम करता है, लिहाजा हमारी भी उनके प्रति कुछ ज़िम्मेदारी बनती है।“
वह आगे कहते हैं,“प्रकृति हम सबसे मिलकर बनी है और सबका अपना-अपना महत्व है। मनुष्य नेतृत्व करता है और इस लिहाज से यह उसकी ज़िम्मेदारी है कि अपने साथ-साथ बेज़ुबानों का भी ख़याल रखे।“
शैलेंद्र सिंह चौहान डॉग लवर्स को सलाह देते हुए कहते हैं कि यदि आपको आवारा कुत्तों को खाना खिलाना है, तो वे जहाँ रहते हैं, वहीं जाकर खिलाएं, ताकि उनके आपके साथ आने से दूसरों को परेशानी न हो।
पीपल फॉर एनिमल्स (पीएफए) की इंदौर यूनिट हेड प्रयांशु प्रशांत जैन भी मानती हैं कि शैलेंद्र सिंह चौहान के आने के बाद से स्थितियाँ काफी हद तक बदली हैं।
वह कहती हैं,“जब पुलिस लोगों को समझाती है तो उसका प्रभाव अलग पड़ता है। पहले हमें पशु क्रूरता के मामले में पुलिस की सहायता लेने में काफ़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता था। पुलिसकर्मी कभी कानून की जानकारी न होने का हवाला देकर, तो कभी व्यस्तता की बात कहकर पल्ला झाड़ लेते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब वे हमारी शिकायत पर न केवल तुरंत कार्रवाई करते हैं, बल्कि ख़ुद भी जानवरों की हिफाजत करते हैं।“
जैन के मुताबिक, पीएफए ने पूर्व डीआईजी को पशु क्रूरता निवारण थाने का प्रस्ताव पेश किया था। इसके बाद जब शैलेंद्र सिंह चौहान बतौर एएसपी आये तो इस दिशा में काम तेजी से आगे बढ़ा और देश का पहला पशु-पक्षी संरक्षण और क्रूरता निवारण थाना आज इंदौर में संचालित है।
‘द बेटर इंडिया’ के माध्यम से पुलिस अफ़सर शैलेंद्र सिंह चौहान लोगों से जानवरों के प्रति प्रेम दर्शाने की अपील करते हैं। वह कहते हैं,“बेज़ुबान खासकर कुत्ते हमारे दुश्मन नहीं हैं, उन्हें मारकर या प्रताड़ित करके हम उन्हें अपना दुश्मन बनाते हैं। कुत्ते हमेशा से हमारे साथी रहे हैं और वे सिर्फ थोड़ा-सा प्यार चाहते हैं। हमारी-आपकी तरह उन्हें भी भूख-प्यास लगती है और कभी-कभी उन्हें भी गुस्सा आता है। भूखे-प्यासे होने पर जब मनुष्य आक्रामक हो सकता है, तो वे तो जानवर हैं। इसलिए उनसे नफरत करने के बजाए प्यार करें।“
यदि आप ऑफिसर शैलेंद्र सिंह चौहान और पीएफए के इस अभियान से जुड़ना चाहते हैं, तो आप इंदौर के कनाडिया थाने से 9479733971 पर या पीएफए इंदौर से 9479713971 पर संपर्क कर सकते हैं।
संपादन – मनोज झा
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