उत्तर प्रदेश सरकार के आंकड़ों के अनुसार देश की 28 लाख लड़कियाँ माहवारी के समय स्कूल जाना छोड़ देती हैं। उत्तर प्रदेश में 60 फीसदी लड़कियाँ माहवारी के समय स्कूल जाना छोड़ देती हैं और लगभग 19 लाख लड़कियाँ बीच में ही पढ़ाई छोड़ देती हैं।
उत्तर प्रदेश के गांव खौराही में भी जब ममता और प्रमिला के जैसे ही और भी लड़कियों ने माहवारी के कारण स्कूल जाना छोड़ दिया तो यह बात गांव के प्रधान हरी प्रसाद की नज़र में आयी। हरि प्रसाद जी को यह बिलकुल भी गंवारा नहीं था कि लड़कियों की शिक्षा माहवारी से जुड़े मिथक और शर्म की वजह से अधूरी रह जाये।
हरी प्रसाद ने इस समस्या के ख़िलाफ़ अपने गांव में एक मुहिम शुरू की।
टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक हरी प्रसाद घर-घर जाकर लड़कियों के माता-पिता से मिले और उन्हें बताया, “अगर लड़कियों और महिलाओं को माहवारी नहीं होगी तो कोई जन्म नहीं लेगा। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसमें कोई शर्माने वाली बात नहीं है।”
इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने लड़कियों की काउंसिलिंग के बाद उन्हें सैनिटरी पैड उपलब्ध करवाये। काउंसिलिंग में लड़कियों को माहवारी से संबंधित साफ-सफाई के बारे में बताया गया।
हरी प्रसाद का कहना है, “लड़कियाँ उससे शर्मिंदा होती हैं, जिसे जीवन का आधार माना जाता है।”
उनकी इस पहल को सफलता के पंख तब मिले जब वे यूनिसेफ के प्रोजेक्ट ‘गरिमा’ से जुड़े। इस प्रोजेक्ट के तहत मिर्जापुर, जौनपुर और सोनभद्र में माहवारी के प्रति महिलाओं और लड़कियों को जागरूक किया गया है।
उनके इसी सक्रीय दृष्टिकोण के कारण उन्हें ‘पैडमैन’ के नाम से बुलाया जाने लगा है। जिस पर वे कहते हैं,
“मुझे ‘पैडमैन’ के बारे में कुछ नहीं पता पर गांव के युवा मुझे पैडमैन बुलाते हैं।”
हम हरि प्रसाद की इस सोच की सराहना करते हैं और आशा करते हैं कि भारत में और भी गांवों के प्रधान व सरपंच उनसे प्रेरणा लेंगे।
( संपादन – मानबी कटोच )