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महिला ने ऑनलाइन बेचना शुरू किया वीगन कॉन्डम, लोगों ने कहा पति से करेंगे बात

कॉन्डम (Condom) का नाम सुनते ही हमारे जहन में क्या तस्वीर उभरकर आती है? कुछ कामुक विज्ञापन, जिन्हें हमारी संस्कृति और ‘संस्कारी’ समाज में अभद्रता और गलत चीजों को बढ़ावा देने वाला माना जाता रहा है। साल 2017 से सरकार ने इन विज्ञापनों पर सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक प्रतिबंध लगाया हुआ है। इस तरह के विज्ञापन और उन्हें लेकर उठाए गए कदम, गर्भनिरोध के तरीकों को लेकर हमारी सोच को दर्शाते हैं। 

दरअसल, आज भी सेक्स और गर्भनिरोध के तरीकों के बारे में हम बंद दरवाजों के पीछे गुपचुप तरीकों से बात करना पसंद करते हैं। खुलकर बात करना, हमारी सामाजिक मान्यताओं के खिलाफ हैं।

HIV के मामलों में भारत, दुनिया में तीसरे नंबर पर!

जब हमें पता चलता है कि HIV के मामलों में भारत, दुनिया में तीसरे स्थान पर है और अवांछित गर्भधारण करने वाली महिलाओं की संख्या भी 23 लाख तक पहुंचने वाली है। तब ये आंकड़े, हमें झकझोरकर रख देते हैं। लॉकडाउन के बीच तो गर्भनिरोधक की उपलब्धता ना के बराबर थी।

नई दिल्ली की 26 वर्षीया उद्यमी अरुणा चावला को कुछ साल पहले सर्वे करते हुए, इस तरह के आंकड़े मिले थे। कला और फैशन मामलों की कानूनी सलाहकार के रूप में काम करते हुए, उन्होंने पाया कि भारत में सिर्फ 5.6 पांच प्रतिशत लोग ही कॉन्डम (condom) का इस्तेमाल करते हैं। जबकि गर्भनिरोधक का यह तरीका, बाजार में काफी आसानी से उपलब्ध है।

कॉन्डम (Condom) खरीदने में आती है शर्म!

Aruna Chawala

द बेटर इंडिया के साथ बातचीत करते हुए अरुणा कहती हैं, “यह काफी बड़ा अंतर था। इसकी बिक्री के लिए और बहुत भी कुछ किए जाने की जरूरत थी। मैंने इसकी रिसर्च में पूरे दो महीने लगाए। फिर मुझे एहसास हुआ कि इस अंतर का कारण पैसा या फिर उपलब्धता नहीं, बल्कि कॉन्डम (condom) को लेकर सामाजिक स्वीकार्यता की कमी है।”

उन्होंने कहा कि दिल्ली जैसे बड़े शहर में भी लोग नहीं चाहते कि उन्हें कॉन्डम (condom) खरीदते हुए कोई देखे और जब बात ग्रामीण क्षेत्रों की हो, तो यहां तक आते-आते लागत इतनी बढ़ जाती है कि इसे खरीद पाना उन लोगों के लिए थोड़ा मुश्किल हो जाता है। दूसरा विकल्प यही बचता है कि आप इसे लेकर परेशान न हों और सुरक्षित यौन संबंध बनाने के बारे में कुछ ना करें। 

फैमिली प्लानिंग को लेकर गंभीर नहीं होते पुरुष

कहने की जरूरत नहीं है कि अनचाहे या अनियोजित गर्भधारण का बोझ महिलाओं पर ही पड़ता है। ‘इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वीमेन’ के एक अध्ययन में बताया गया कि बढ़ती जागरूकता के कारण ज्यादातर महिलाएं ही गर्भनिरोधक तरीके अपनाती हैं। पुरुष, जो वास्तव में अधिकांश घरों में निर्णय लेने वाले होते हैं, उन्हें या तो गर्भनिरोधक तरीकों की ज्यादा जानकारी नहीं होती या फिर वे फैमिली प्लानिंग के इच्छुक या ज्यादा गंभीर नहीं होते।

अरुणा ने अपने करियर की शुरुआत बतौर वकील की थी। लेकिन कुछ ही समय में उन्हें एहसास हो गया कि यह क्षेत्र उनके लिए नहीं है। वह कहती हैं, “रिसर्च के बाद मैंने अपने करियर का रुख दूसरी तरफ मोड़ने का निर्णय कर लिया था। मैं ऐसा सिर्फ फायदा कमाने के लिए नहीं कर रही थी, बल्कि इस समस्या के पीछे जो एक बड़ा सामाजिक कारण है उसके लिए कुछ करना चाहती थी।”

शोध जारी रखते हुए, उन्होंने देश भर के कॉन्डम निर्माता कंपनियों से संपर्क करना शुरू किया। वह कहती हैं कि किसी ऐसे व्यक्ति को ढूंढ़ना चुनौतीपूर्ण था, जो न केवल उसके मिशन को समझे, बल्कि एक महिला के रूप में भी उसके साथ सम्मान से पेश आए।

फिर शुरु किया ‘सलाद’

जून 2020 में अरुणा ने अपने स्टार्टअप ‘सलाद’ (Salad) को लॉन्च कर दिया। उनका यह स्टार्टअप ऑनलाइन वीगन, नॉन टॉक्सिक और पर्यावरण के अनुकूल कॉन्डम उपलब्ध कराता है। ये प्राकृतिक लेटेक्स से बने हैं। इनमें किसी भी तरह की गंध नहीं है और रीसाइकिलिंग पैकेजिंग के साथ आते हैं।

अरुणा ने बताया, “मैं किसी के सामने अपनी उम्र का खुलासा नहीं करना चाहती थी। क्योंकि तब वे मुझे गंभीरता से नहीं लेते। अपनी उम्र बताने पर उन्हें लगता कि 25 साल की यह लड़की अपना समय बर्बाद कर रही है। एक बात जो मैंने लगातार सुनी, वह थी, ‘आप अपने पति या पिता से हमारी बात क्यों नहीं करातीं? हम महिलाओं के साथ इन चीजों के बारे में बात नहीं करना चाहते हैं’ और निश्चित रूप से, मुझे अभी तक एक भी महिला निर्माता नहीं मिली है।”

वह कहती हैं, “महिलाएं देश की आबादी के 50 प्रतिशत हिस्से की जिम्मेदार हैं। फिर भी आप उन्हें गर्भनिरोधक तरीकों के बारे में बात करते समय गायब पाते हैं। कॉन्डम के विज्ञापन आमतौर पर पुरुषों को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं। महिलाएं इस संबंध में निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल नहीं होतीं।”

फिलहाल इस साल अरुणा को अपने प्रोडक्ट के लिए एक मैन्युफैक्चरर मिल गया है। 

प्रोडक्ट के बारे में खुलकर करते हैं बात

उन्होंने कहा, “कॉन्डम एक जरूरी चिकित्सा वस्तु है इसलिए ब्रांड, इस्तेमाल की गई सामग्री का खुलासा करने के लिए मजबूर नहीं है। फार्मास्युटिकल विभाग इसकी रिसर्च और कीमतों को नियंत्रित करता है। लेकिन अगर हम कॉन्डम को सामान्य बनाने और सुरक्षित सेक्स के बारे में बात करने जा रहे हैं, तो हमें जानना ही होगा कि परदे के पीछे क्या चल रहा है यानी इसको बनाने के लिए किन चीजों का इस्तेमाल हो रहा है और हमारे शरीर में क्या जा रहा है। अगर आप इस बारे में गूगल से सवाल करेंगे तो आपको बहुत सारी गलत जानकारियां मिलेंगी। इसलिए मैंने सोचा कि हमारे ब्रांड में कौन सी सामग्री है? इसके लिए बात करना और लोगों को बताना जरूरी है।”

‘सलाद’ की पैकेजिंग पर एक क्यूआर कोड होता है, जिसे स्कैन कर आप वेबसाइट के उस हिस्से पर पहुंच जाएंगे जहां प्रोडेक्ट को लेकर पूरी जानकारी है। मसलन कॉन्डम बनाने के लिए किन सामग्रियों का इस्तेमाल किया जा रहा है? उन्हें क्यों इस्तेमाल में लाया जा रहा है, इसके फायदे क्या हैं? और भी बहुत कुछ है, जो इस वेबसाइट पर मिल जाएगा। 

रीसाइक्लिंग पैकेजिंग

The condoms come in recyclable packaging (Source: Aruna Chawla)

जब वीगन होने की बात आती है, तो इसका मार्केटिंग या यूएसपी पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता है। वह बताती हैं, “कॉन्डम बनाने के लिए ज्यादातर पशु उप-उत्पाद कैसिइन (casein) का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन पिछले कुछ सालों से तकनीक में काफी सुधार आया है। आज हमें ऐसे कॉन्डम बनाने में महारत हासिल हो गई है, जिनमें जानवरों के उत्पाद की जरूरत नहीं पड़ती। ‘सलाद’ को कुछ ऐसे ही तरीके से तैयार किया जाता है।”

‘सलाद’ की शिपिंग और उसे ग्राहक तक पहुंचाने की पूरी प्रक्रिया पर्यावरण के अनुकूल रहे इसका खास ख्याल रखा जाता है। हफ्ते में सिर्फ दो ही बार ऑर्डर डिसपैच किए जाते हैं, ताकि परिवहन की लागत कम रखी जा सके और डिलीवरी कर्मियों का बोझ भी थोड़ा हल्का हो जाए। 

अरुणा कहती हैं, “वे प्रति बॉक्स का भुगतान करते हैं, इसलिए डिलीवरी कर्मियों की कमाई प्रभावित नहीं होती। उत्पाद का वजन कम से कम रखने की कोशिश की जाती है। बर्बादी को कम करने के लिए हम उपहार कार्ड या हैम्पर्स भी नहीं देते हैं।” सलाद के कॉन्डम की कीमत 91 रुपये है और उनकी वेबसाइट के जरिए पूरे भारत में इसकी डिलीवरी की जाती है।

फिलहाल उत्पादों को लेकर ऑनलाइन रिटेल प्लेटफॉर्म के साथ बातचीत चल रही है। अरुणा कहती हैं, “वह अपने मुनाफ़े का 15 प्रतिशत भारतीय स्कूलों और कॉलेजों में सेक्स-एड तक पहुंच को बेहतर बनाने में मदद करने के लिए दान करती हैं।”

मैं ब्रांड का चेहरा नहीं बनना चाहती 

वह कहती हैं, “चूंकि आप एक महिला हैं, तो आपके उठाए गए हर कदम पर बारीकी से नजर रखी जाती है। खासकर तब, जब आप व्यवसाय शुरू करने जा रही हों। एक युवा उद्यमी के रूप में, कई और चीजें दांव पर होती हैं। जब आप कोई व्यवसाय चलाते हैं, तो आपका नाम, आपके परिवार का नाम, यह सब जुड़ा होता है। इसलिए मैं ब्रांड का चेहरा बनने पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहती।”

जिस दिन ‘सलाद’ को लॉन्च किया गया था, उनके सोशल मीडिया एकाउंट पर अनचाहे संदेशों की बाढ़ आ गई। उन्हें ट्रोल भी किया गया। वह सोशल मीडिया पर ज्यादा रिएक्ट नहीं करती हैं। लेकिन धमकियों और हमलों के प्रति सचेत रहती हैं। 

वह कहती हैं, “मेरे उत्पाद सेक्स के बारे में बात करते हैं। और जरूरी नहीं कि वे केवल महिला उत्पाद हों। इसमें पुरुषों की भागीदारी भी उतनी ही होगी। मेरा ये व्यवसाय बहुत सारी धारणाओं को चुनौती देता है।”

अरुणा का कहना है कि उन्हें अभी लंबा रास्ता तय करना है। ‘सलाद’ नए उत्पादों को लॉन्च करने पर काम कर रहा है। हम सेक्स एजुकेटर्स के साथ सहयोग करने और कार्यशालाएं आयोजित करने की तरफ भी देख रहे हैं”

अधिक जानकारी के लिए आप ‘सलाद’ की वेबसाइट या उनके इंस्टाग्राम पेज पर जा सकते हैं।

मूल लेखः दिव्या सेतु

संपादन- जी एन झा

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