यह कहानी है एक ऐसी महिला वैज्ञानिक की जिसने कैंसर से लड़ते हुए न सिर्फ अपनी पीएचडी पूरी की बल्कि 11 अंतरराष्ट्रीय शोध पत्र भी लिखें।
1952 में एक रूढ़िवादी परिवार में जन्मी, विजयलक्ष्मी ने लड़की होने पर लगने वाले शिक्षा पर प्रतिबंधों को पार किया और शिक्षा सहित जीवन के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता हासिल की। तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली के सीतालक्ष्मी रामास्वामी कॉलेज से ग्रेजुएट होने के बाद, उन्होंने 1974 में मद्रास विश्वविद्यालय से पीएचडी करने के लिए थ्योरोटिकल फिजिक्स डिपार्टमेंट में प्रवेश लिया।
जब विजयलक्ष्मी पीएचडी कर रही थीं, उस दौरान उन्हें अपने पेट में कैंसर होने का पता चला, लेकिन एक बार भी उन्होंने बीमारी के चलते अपने जीवन की शैक्षणिक महत्वाकांक्षाओं को खत्म नहीं होने दिया।
विजयलक्ष्मी के प्रोफेसर और सहसंरक्षक रहे टी आर गोविंदराजन बताते हैं कि विजयलक्ष्मी शक्ति और दृढ़ संकल्प की सच्ची प्रतिक थीं।
उन दिनों को याद करते हुए जब विजयलक्ष्मी ने खुद को कैंसर होने की बात उजागर की थीं, भारत के महिला वैज्ञानिकों के जीवनी संग्रह ‘लीलावतीज डॉटर्स’ में रंगराजन ने लिखा हैं कि एक बार, जब वह अपने काम के बारे में चर्चा कर रहे थे, तब विजयलक्ष्मी ने कुछ असुविधा व्यक्त की तो उन्होंने इसके बारे में पूछा। विजयलक्ष्मी ने उनकी ओर देखा व जवाब में कहा कि उन्हें पेट का कैंसर है। वह कुछ पलों के लिए चौंक गए और अवाक रह गए थे।
वह कहते हैं, “बाद में उसने मुझे बताया कि उसका प्रमुख उद्देश्य कुछ महत्वपूर्ण शोध पूरे करना और एक भौतिकी वैज्ञानिक के रूप में पहचाना जाना था। साथ ही उसे कुछ हो, उससे पहले वह अपनी पीएचडी पूरी करना चाहती थीं।”
खुद को कैंसर होने की बात बताते हुए वह रुक पड़ी और भौतिकी के जटिल सिद्धांतों पर ग्यारह अंतरराष्ट्रीय पत्र लिखने के सफर पर निकल पड़ी। उन्होंने गोविंदराजन के साथ ऐसे विभिन्न क्षेत्रों में काम किया, जिसके माध्यम से उच्च स्पिन सिद्धांतों का निर्माण किया जा सके। बाहरी विद्युत चुम्बकीय और गुरुत्वाकर्षण क्षेत्रों में भी उनका काम काफी सराहनीय है।
विजयलक्ष्मी को पहली सफलता तब मिली जब उन्होंने द्रव्यमान कणों और विद्युत चुम्बकीय सिद्धांत के मोनोपोल के बीच एक दोहरा संबंध स्थापित किया। उनके काम ने न केवल उनके साथियों के बीच बल्कि बाहर भी बहुत प्रशंसा बटोरी। 1980 में, आईआईटी-मद्रास में परमाणु ऊर्जा विभाग के द्विवार्षिक उच्च ऊर्जा भौतिकी संगोष्ठी में उनके वक्तव्य ने खूब तालियां बटोरी।
विजयलक्ष्मी की दुनिया में मद्रास विश्वविद्यालय में बुनियादी सुविधाओं में सुधार भी शामिल था। वह विश्वविद्यालय में एसोसिएशन ऑफ रिसर्च स्कॉलर्स की एक सक्रिय सदस्य थीं, जहां उन्होंने फैलोशिप, अपर्याप्त लैब उपकरण और छात्रों के लिए आकस्मिक अनुदान जैसे मुद्दों को उठाया था।
इस सब के बीच, वह अपने जीवन साथी टी जयरामन से मिली, जिनसे उन्होंने 1978 में शादी की। जयरामन ने उन्हें चुनौतीपूर्ण काम करने के लिए हमेशा प्रोत्साहित किया। आधुनिक सोच रखने वाले सास-ससुर ने भी विजयलक्ष्मी का पग-पग पर बहुत साथ दिया।
अपने शोध को पूरा करने के लिए अधिक मेहनत और बढ़ते कीमोथेरेपी सेशन के बीच कैंसर उनके पैरों और कूल्हों तक फैल गया, जिसके चलते उन्हें व्हीलचेयर पर निर्भर होना पड़ गया।
विजयलक्ष्मी ने अपने कीमोथेरेपी सत्रों के बीच शोध पत्र लिखना जारी रखा और 1982 में पीएचडी पूरी की। इस युवा वैज्ञानिक ने 12 मई 1985 को वैज्ञानिक समुदाय और अपने प्रियजनों को पीछे छोड़, इस दुनिया से अलविदा कह दिया। उनके सम्मान में, दूरदर्शन ने उनके जीवन पर एक डाक्यूमेंट्री जारी की, जिसका शीर्षक था- विजयलक्ष्मी : द स्टोरी ऑफ ए यंग वुमन विद कैंसर।
विजयलक्ष्मी के जोश और जज्बे को सलाम!
मूल लेख – गोपी करेलिया
संपादन – मानबी कटोच