आज़ादी के महज़ 15 महीनो बाद, देश, चाचा नेहरू का जन्मदिन बाल दिवस के रूप में मना रहा था। इसी दिन यानी 14 नवंबर 1948 को, पिंपरी मेघे, वर्धा गाँव के एक गरीब भैंस चराने वाले अभिमान साठे के घर एक बच्ची का जन्म हुआ। किसी को नहीं पता था कि बाल दिवस के दिन पैदा हुई ये लड़की एक दिन हज़ारो बच्चों की माई (Sindhutai Sapkal) बन जायेगी।
हज़ारों अनाथ बच्चों को अपनाने वाली सिंधुताई सपकाल (Sindhutai Sapkal) को 25 जनवरी 2021 को पद्म श्री सम्मान के लिए चुना गया। आइए पढ़ते हैं उनकी प्रेरणात्मक कहानी।
आज़ादी के महज़ १५ महीनो बाद, देश, चाचा नेहरू का जन्मदिन बाल दिवस के रूप में मना रहा था। इसी दिन यानी १४ नवंबर १९४८ को, पिंपरी मेघे, वर्धा गाँव के एक गरीब भैंस चराने वाले अभिमान साठे के घर एक बच्ची का जन्म हुआ। किसी को नहीं पता था कि बाल दिवस के दिन पैदा हुई ये लड़की एक दिन हज़ारो बच्चों की माई बन जायेगी।
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ये वो दौर था जब लड़की का पैदा होना, वो भी एक गरीब के घर, किसी अभिशाप से कम नहीं माना जाता था। ये बच्ची भी एक अनचाहे अभिशाप की तरह थी, इसीलिए इसका नाम रखा गया, ‘चिंदी’- मतलब एक फटे हुए कपडे का टुकड़ा।
घर के हालात कुछ ऐसे थे कि पिता की लाड़ली होने के बावजूद चिंदी को भैंसे चराने जाना पड़ता। इसी काम में से कुछ वक़्त निकालकर वह स्कूल भी जाने लगी। पढ़ने में उसका बड़ा मन लगता पर उसके मन की कब किसने सुनी थी। किसी तरह चिंदी ने चौथी पास की। उसके पिता उसे और पढ़ाना चाहते थे पर उसकी रूढ़िवादी विचारो वाली माँ ने ये होने न दिया।
आईये इस वीडियो में देखिये माई का अब तक का सफ़र!