Site icon The Better India – Hindi

17 कीमी का सफ़र तय कर, रोज़ 10 घंटे तक करती है सरबजीत कौर सीमा से सटे अस्पताल में मरीजों की मदद !

म कई बार दवाईयां लेने जाते है, फार्मासिस्ट (दवाईयां देने वाले) हमे हज़ारो दवाईयों में से ढूंड कर, बिलकुल ठीक दवाईयां देते भी है पर हम इस काम को कोई बड़ी बात नहीं समझते। अक्सर एक डॉक्टर को जितनी अहमियत दी जाती है उतनी  एक फार्मासिस्ट को नहीं दी जाती। पर क्या कभी आपने सोचा है कि ये फार्मासिस्ट नहीं होते तो डॉक्टर की लिखी हुई दवाईयों की सिर्फ पर्ची का हम क्या करते?

40 वर्षीया सरबजीत कौर भी पेशे से फार्मासिस्ट है। और इस फार्मासिस्ट की ख़ास बात सिर्फ ये नहीं है कि ये बीमारों को सही दवाई ढूंड कर देती है बल्कि ये जो कर रही है वो इंसानियत और बहादुरी की एक बहुत बड़ी मिसाल है।

10 साल पहले अपने पति को खो चुकी, सरबजीत अपनी दोनों बच्चियों और माँ के साथ अमृतसर से 45 कीमी दूर, अटारी गाँव में रहती है। इसी गांव से 17 कीमी की दूरी पर है, नौशेरा ढल्ला गाँव जहां के सरकारी अस्पताल में सरबजीत काम करती है। ये अस्पताल सीमा से महज़ 200 मीटर की दूरी पर है।

Image for representatiom only. Source

हाल ही में हुए उरी के दुखद हमले और भारतीय सेना द्वारा किये गए सर्जिकल स्ट्राइक के बाद यहाँ माहौल बेहद खराब है। इस अस्पताल के एकमात्र डॉक्टर को कैंपो में बसाए गए गांववालों के इलाज के लिए भेज दिया गया है और इस वक़्त सरबजीत, आस-पास के तीन गाँवों के 11,500 आबादी वाले इलाके के मरीजों की देखभाल अकेले कर रही है।

सरबजीत हर रोज़ अपने स्कूटर पर 17 कीमी का सफ़र तय कर के अस्पताल पहुंचती है और करीब 10 घंटो तक लगातार मरीजों की मदद करने बाद ही घर वापस जाती है।

नौशेरा ढल्ला इस वक़्त हाई अलर्ट पर है और ज़्यादातर लोगो को यहाँ से सुरक्षित निकाल लिया गया है। इसलिए पिछले सप्ताह के बाद से यहाँ लोगो की संख्या बहुत कम हो गयी है।

सरबजीत ने हिन्दुस्तान टाइम्स को बताया, “पिछले हफ्ते तक दिन में करीब 30 मरीज़ आ जाया करते थे पर हाई अलर्ट के बाद अब ज्यादा से ज्यादा 10 मरीज़ आते है। मुझे अभी तक कोई भी गोली से घायल हुआ व्यक्ति या कोई गंभीर हालत में नहीं मिला। ऐसा कुछ होता है तो मैं तुरंत 108 पर फ़ोन कर के एम्बुलेंस बुला लुंगी और मरीज़ को बड़े अस्पताल ले जाउंगी।”

सरबजीत की मदद के लिए एक 60 वर्षीया अस्पताल कर्मचारी भी है। इन दोनों महिलाओं को बुधवार दोपहर के बाद ये हिदायत दी गयी थी कि अब उन्हें 6 घंटे की बजाये 10 घंटे काम करना होगा ताकि गांववालों को आपातकालीन स्थिति में समय पर मदद मिल सके। इसके अलावा अब इन्हें साप्ताहिक छुट्टी भी नहीं दी जाएगी। इन्हें कैंप में भेजे गए गांववालों की सहायता के लिए रात में भी आना पड़ सकता है।

स्थिति खराब होने के बावजूद कई गांववालों ने अपने परिवार के कम से कम एक सदस्य को घर पर ही रखा है ताकि वो खेतो और बाकी कीमती सामान की रखवाली कर सके। सुरविंदर कौर भी इन्ही में से एक है। उनका सारा परिवार अमृतसर में एक रिश्तेदार के घर चला गया है पर वे नहीं गयी। गाँव खाली होने के बाद चोरियों की भी बहुत वारदाते होती है और इसलिए सुरविंदर अपने घर की रखवाली करना चाहती है।

सरबजीत कहती है, “ये कोई पहली बार नहीं है कि हम ये सब देख रहे है। कारगिल के वक़्त भी ठीक ऐसा ही माहौल था। चारो ओर खतरा था पर मेरे परिवार ने गाँव छोड़ने से इनकार कर दिया था।”

अपने दोनों बच्चो का एकमात्र सहारा सरबजीत ही है। सरबजीत  ने अपने बच्चो वादा किया है कि कोई भी खतरा महसूस होने पर वो तुरंत उनके पास वापस चली आएगी।

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें contact@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter (@thebetterindia) पर संपर्क करे।

Exit mobile version