बढ़ती उम्र का यह मतलब नहीं कि आप अपने शौक और हुनर को छोड़ दें। इसका जीता-जागता उदाहरण हैं 100 साल की दादी, जो इस उम्र में भी एक सफ़ल बिज़नेस चला रही हैं।
हम बात कर रहे हैं पद्मावती नायर की। साल 1920 में जन्मी पद्मावती आज भी रोज़ाना तीन घंटे काम करती हैं। वह साड़ियाँ पर हाथ से पेंटिंग करतीं हैं और उन्हें अपने काम से बहुत प्यार है। उनका कहना है, “व्यस्त रहो और दूसरों की ज़िंदगी में दखलअंदाजी मत करो।”
हर दिन वह अपने काम का टारगेट पूरा करती हैं। दादी का मानना है कि इंसान को एक्टिव रहना चाहिए और कुछ न कुछ करते रहना चाहिए। “मुझे इसमें बहुत मजा आता है और आत्म-संतुष्टि भी मिलती है,” उन्होंने बताया।
सुबह साढ़े पांच से साढ़े छह के बीच उठने वाली पद्मावती सुबह चाय और ब्रेकफ़ास्ट के साथ अख़बार पढ़ती हैं। उनकी बेटी, लता बताती हैं, “इसके बाद, वह लगभग 10:30 बजे तक अपनी डेस्क पर काम के लिए बैठ जाती हैं और दोपहर 1 बजे के बाद ही उठती हैं।”
साड़ी डिज़ाइन करना बहुत मेहनत का काम है और इसमें काफी वक़्त भी लगता है। लेकिन दादी अपने काम को बहुत बारीकी से करती हैं। आज भी वह साड़ी के लिए लेआउट बनाती हैं और फिर उसमें रंग भरती हैं। उनकी बेटी और बहुएं उनके लिए साड़ी लाती हैं, जिस पर वह काम करती हैं।
उन्हें यह तो याद नहीं कि अब तक उन्होंने कितनी साड़ियां तैयार की हैं पर हर रोज़ वह इस काम में लगी रहतीं हैं। एक साड़ी पूरा करने में उन्हें कम से एक महीना लगता है। लता बताती हैं कि दादी इस काम से कमाए हुए पैसे कभी भी अपने पास नहीं रखती हैं बल्कि अपने नाती-पोतों के लिए खर्च करती हैं।
दादी को अपनी पहली कमाई के बारे में धुंधला सा याद है कि वह शायद 60 की उम्र से ऊपर थी, जब उन्हें पहली कमाई मिली थी। वह एक साड़ी तैयार करने के लिए 11 हजार रुपये लेती हैं, जिसमें साड़ी की कीमत भी शामिल है और दुपट्टे के लिए 3,000 रुपये।
दादी बताती हैं कि उनकी ज़िन्दगी बहुत अच्छी है। उनके 5 बच्चे और 4 नाती-पोते उनसे बहुत प्यार करते हैं और उनका सम्मान करते हैं। केरल में जन्मी पद्मावती की शादी 1945 में केके नायर से हुई थी और फिर वह मुंबई आ गईं, जहां उनके पति फोर्ड कंपनी में काम करते थे। उन्हें हमेशा से ही सिलाई-कढ़ाई का शौक रहा।
अपने बच्चों के लिए वह खुद कपड़े सिलतीं थीं। वक़्त के साथ उनके हाथ का हुनर और गहराता गया। दादी याद करते हुए बतातीं हैं कि वह पहले बहुत ही कम पेंट करतीं थीं। पर उनकी बेटी, जो डिज़ाइनर है, उसने उन्हें बहुत प्रेरित किया और उनकी बहुएं भी हमेशा उनकी सराहना करतीं और आगे बढ़ने को कहतीं।
60 साल की उम्र के बाद उन्होंने अपने शौक को व्यवसाय बनाया। वह कहतीं हैं कि अगर मैं 100 की उम्र में कुछ कमा सकती हूँ तो क्या बुरा है।
दादी नए जमाने के रंगों में खुद को रंग रही हैं। स्मार्ट फ़ोन से लेकर सोशल मीडिया तक, वह सभी कुछ इस्तेमाल करतीं हैं। उनकी बेटी कहती हैं कि 100 की उम्र में भी दादी किसी पर निर्भर नहीं हैं।
उन्होंने अपने बच्चों को भी आत्म-निर्भर रहने की शिक्षा दी है। दादी की सीख हर किसी के लिए यही है, “व्यस्त रहें, ऐसी कोई चीज़ करें जो आपको अच्छी लगती है और कोशिश करें कि आप दूसरों की ज़िन्दगी में दखलअंदाजी न करें।”
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