आज भी ग्रामीण इलाकों में मिट्टी के चूल्हे पर खाना पकाया जाता है, जिसका खामियाजा सबसे अधिक घर की महिलाओं को उठाना पड़ता है। गांव-घर में महिलाओं को पहले चूल्हे के लिए ईंधन इकट्ठा करना पड़ता है और फिर खाना बनाते समय धुएं को झेलना पड़ता है, जिसका सीधा असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है। लेकिन आज हम आपको राजस्थान के झुंझुनू जिला स्थित पीपली गांव में रहने वाली भतेरी देवी से मिलवाने जा रहे हैं, जिन्हें न तो ईंधन की चिंता है और न ही चूल्हे के धुएं की।
एक किसान परिवार से संबंध रखने वाली भतेरी देवी के घर में बायोगैस प्लांट लगा हुआ है, जो सीधा उनके रसोई घर से जुड़ा हुआ है। उन्होंने द बेटर इंडिया को बताया, “मैंने गांव-घर में महिलाओं को हमेशा ही चूल्हे पर काम होते हुए देखा था। मैं भी पहले चूल्हे पर ही काम करती थी। इसमें परेशानी काफी होती थी। वहीं दूसरी ओर गैस सिलिंडर को लेकर मन में कई तरह का भय में बना रहता था। एक तो खर्च ज्यादा तो दूसरी ओर यह भी डर बना रहता था कि अगर कभी गैस खुली रह गयी और आग लग गयी तो?”
लेकिन आज भतेरी देवी के घर की स्थिति साफ अलग है। उनकी रसोई के सभी काम गैस पर ही होते हैं और उन्हें गैस सिलिंडर के लिए कहीं नहीं भागना पड़ता है। क्योंकि बायोगैस प्लांट से उन्हें सीधी सप्लाई मिलती है। उन्होंने बताया कि पिछले 10 वर्षों से वह बायोगैस का ही इस्तेमाल कर रही हैं। इसके रहते हुए उन्हें न तो चूल्हे पर धुएं में खाना बनाना पड़ता है और न ही अब तक उन्हें गैस सिलिंडर लेने की जरूरत पड़ी है।
बायोगैस ने खत्म की परेशानी
सालों पहले जिले में पूसा संस्थान, दिल्ली के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. जेपीएस डबास ने बायोगैस प्लांट लगवाने का प्रोजेक्ट शुरू किया था। डॉ. डबास ने द बेटर इंडिया से बात करते हुए बताया, “हमने जब प्रोजेक्ट शुरू किया तो लोगों को बायोगैस प्लांट पर ज्यादा भरोसा नहीं था। ऐसे में, हमने पीपली गांव के कुछ किसानों को जागरूक किया कि कैसे वे बायोगैस प्लांट से न सिर्फ घर में गैस की बल्कि खेतों के लिए अच्छी खाद की समस्या को भी हल कर सकते हैं।”
डॉ. डबास की बातों से प्रभावित होकर गांव में सबसे पहले दो बायोगैस प्लांट लगे। जिनमें से एक भतेरी देवी के परिवार ने बनवाया। उनके परिवार के एक सदस्य, जय सिंह बताते हैं, “हम दो भाई हैं और आज दोनों घरों में बायोगैस प्लांट लगे हुए हैं। एक प्लांट तीन घनमीटर की क्षमता का है तो दूसरा चार घनमीटर की क्षमता का। हमारे घर में 10 मवेशी हैं और इनके गोबर से ये दोनों प्लांट चलते हैं।”
शुरुआत में, बहुत से लोगों ने उन्हें मना किया कि बायोगैस प्लांट का कोई फायदा नहीं होता है। लेकिन भतेरी देवी के परिवार ने वैज्ञानिकों की बात पर भरोसा करके बायोगैस प्लांट लगवा लिए। इसके बाद से उनकी ज़िंदगी बिल्कुल बदल गयी। भतेरी देवी कहती हैं कि पिछले 10 सालों में उन्हें किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं हुई है। चूल्हे पर खाना अब तभी बनता है, जब बच्चे चूल्हे पर सिकी रोटियां खाने की इच्छा जताते हैं। अन्यथा सभी काम बायोगैस से ही हो रहे हैं।
“पहले तो खाना बनाना भी मुश्किल हुआ करता था। क्योंकि चूल्हा आंगन में ही होता है और गर्मियों में सुबह ही सूरज चढ़ आता है, जिससे रोटियां बनाते समय बहुत परेशानी होती थी। सर्दियों में खुले आंगन में बैठकर खाना बनाने में ठंड बहुत लगती है। बारिश में तो स्थिति और खराब हो जाती है,” उन्होंने कहा।
अब बायोगैस की वजह से भतेरी देवी को ऐसी कोई परेशानी नहीं हो रही है। अब वह अपनी सहूलियत के हिसाब से काम कर लेती हैं। वह कहती हैं, “मेरी ननद भी बार-बार गैस सिलिंडर भराने से बहुत परेशान थीं। मैंने उन्हें भी कहा कि एक बायोगैस प्लांट लगवा लें। इससे गोबर को इकट्ठा करके उपले पाथने की समस्या भी खत्म हो जाती है और गैस की भी। रसोई के साथ-साथ यह खेतों के लिए भी अच्छा है। क्योंकि इससे खाद भी मिलती है।”
कीनू के बाग में काम आ रही है बायोगैस प्लांट की खाद
डॉ. डबास ने आगे कहा कि महिलाओं के लिए बायोगैस प्लांट बहुत फायदेमंद साबित हुआ और साथ ही, किसानों के लिए भी। “झुंझुनू जिले के लिए बायोगैस प्लांट बहुत ही अच्छी तकनीक है। क्योंकि उस इलाके की मिट्टी रेतीली है। जिस पर अगर गोबर को रखा जाए तो यह इसमें से नमी को सोख लेती है। इस कारण गोबर गल-सड़ नहीं पाता है। अगर गोबर सही से न गले-सड़े तो खाद तैयार नहीं होगी और इससे किसानों को नुकसान होता है,” उन्होंने आगे कहा।
लेकिन बायो गैस प्लांट में यह अच्छे से खाद में परिवर्तित हो जाता है। जिसे किसान अपने खेतों के लिए आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं। जय सिंह बताते हैं कि बायोगैस प्लांट में वह पहले गोबर और फिर पानी डालते हैं। इसमें से एक पाइप से बायोगैस उनके घर की रसोई में जाती है और दूसरी जगह से इसमें गोबर की स्लरी निकलती है। जिसे खेतों में खाद के रुप में इस्तेमाल किया जाता है।
उन्होंने बताया कि किसान परिवारों के लिए यह सिर्फ घर में गैस का नहीं बल्कि खेतों में खाद के खर्च को भी काफी हद तक बचा लेता है। लगभग 20 बीघा जमीन पर खेती करने वाले जय सिंह बताते हैं कि उनकी गेहूं, सरसों आदि की खेती में यह खूब काम आता है।
इसके अलावा, एक-डेढ़ साल पहले उन्होंने कीनू का बाग़ भी लगाया है। उन्होंने बताया कि उन्होंने कीनू के लगभग 100 पौधे लगाए थे। इनमें से ज्यादातर पौधे जीवित हैं और बायोगैस प्लांट से मिलने वाली खाद से पौधों को फायदा पहुंच रहा है। “इस बार हमें उम्मीद है कि कुछ फलों का उत्पादन भी मिलने लगेगा। इसलिए अब हम सबको बायोगैस प्लांट लगवाने की सलाह देते हैं। क्योंकि इससे किसानों को फायदा ही फायदा है। आपको बस इसकी थोड़ी-बहुत देख-रेख करनी होती है कि इसमें गोबर सूखे नहीं। बाकी इससे आपको फायदा ही मिलेगा,” उन्होंने आगे कहा।
भतेरी देवी कहती हैं कि उनके घर में बायोगैस प्लांट को बढ़िया चलता देख उनके कई पड़ोसियों ने भी प्लांट लगवाने की पहल की है। गांव में रहने वाले किसान परिवार जो अभी भी मवेशी रखते हैं, उन्हें अपने घरों में बायोगैस प्लांट जरूर लगवाना चाहिए, इससे उनके घर की महिलाओं को चूल्हे के धुएं से छुटकारा मिलेगा, गैस का खर्च कम होगा और खेतों के लिए उन्हें अच्छी खाद मिलेगी।
अगर आप बायोगैस प्लांट के बारे में अधिक जानकारी लेना चाहते हैं तो डॉ. जेपीएस डबास से 9968761898 पर कॉल करके बात कर सकते हैं।
संपादन- जी एन झा
तस्वीर साभार: कुलदीप सिंह
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