हमारा देश उत्तर से लेकर दक्षिण तक विविध कलाओं को अपने में समेटे हुए है। जितनी भिन्नता हमारे यहाँ बोली और भाषाओं में है, उतनी ही भिन्नता कला में भी है। कई राज्यों की कला का बहुत बड़ा बाजार है लेकिन इन सबके बीच कई ऐसी कला है, जो लुप्त होने की कगार पर है।
ओडिशा के हस्तशिल्प कला को ही लें, इसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। यहां की हस्तशिल्प कला को लोकप्रिय बनाने और उसके कारीगरों को रोजगार देने का जिम्मा उठाया है कटक में रहने वाली शाइनी खुंटिया ने।
एक मध्यम-वर्गीय परिवार में पली-बढ़ी शाइनी ने इंदौर से अपनी एमबीए की पढ़ाई पूरी की। उनके माता-पिता दोनों ही शिक्षक हैं और वह शाइनी के लिए भी यही चाहते थे कि वह किसी अच्छी कंपनी में नौकरी करें। शाइनी को एमबीए के बाद अमेज़न कंपनी में प्लेसमेंट भी मिल गई थी। लेकिन उनके सपने कुछ और थे।
बचपन से ही अपना व्यवसाय करने की चाह रखने वाली शाइनी ने एमबीए के पहले वर्ष में ही अपने स्टार्टअप का नाम रजिस्टर करा लिया था। शाइनी ने द बेटर इंडिया को बताया, “मेरे मन में हमेशा यही भावना रही कि मैं लोगों को नौकरी दूँ। कुछ ऐसा करूँ कि मेरे अपने राज्य में रोज़गार उत्पन्न हो। इसलिए मैंने एमबीए के पहले साल में ही अपना स्टार्टअप रजिस्टर करा लिया और जैसे ही एमबीए पूरी हुई शहर लौटकर इस पर काम शुरू कर दिया।”
शाइनी खुंटिया ने साल 2017 के अंत में ‘फोकमेट’ नामक स्टार्टअप शुरू किया था। जिसके ज़रिए उनका उद्देश्य ओडिशा की हस्तशिप कला को दुनियाभर में पहचान दिलाना और ग्रामीण कारीगरों को रोज़गार देना है। फ़िलहाल, उनके स्टार्टअप से खुर्दा इलाके में स्थित खम्मंग गाँव के 25 कारीगर जुड़े हुए हैं।
ओडिशा की पटचित्र कला को आगे बढ़ाने की प्रेरणा उन्हें अपनी माँ से मिली। वह बताती हैं कि बचपन से ही उन्होंने अपनी माँ का कला के प्रति प्रेम देखा था। जैसे-जैसे शाइनी बड़ी हुई तो उन्होंने जाना कि ओडिशा की प्रांतीय कलाएं आज भी सही मुकाम तक नहीं पहुंची हैं।
उन्होंने कहा, “माँ की वजह से मेरी दिलचस्पी हमेशा से हैंडीक्राफ्ट में रही है। लेकिन जब अपने राज्य की धीरे-धीरे लुप्त होती कलाओं के बारे में जाना तो लगा कि मैं इसे सँवारने के लिए क्या कर सकती हूँ? ग्रैजुएशन के अंत तक मुझे स्पष्ट हो गया था कि मैं नौकरी तो नहीं करुँगी। फिर मैंने एमबीए किया।”
एमबीए की पढ़ाई के दौरान वह ओडिशा की पटचित्र कला पर रिसर्च भी करती रही। राज्य के रघुराजपुर इलाके की कई यात्राएं उन्होंने की ताकि वहां के कारीगरों से मिलकर इस कला को समझ सकें। वह बतातीं हैं कि पटचित्र कला के भी कई भाग हैं और इसमें उन्हें पाम लीफ आर्ट ने बहुत आकर्षित किया। सबसे बड़ी बिडंबना यह है कि इस आर्ट के बहुत ही कम कारीगर आजकल रह गए हैं।
“एक और खास बात जो मैंने अपनी रिसर्च के दौरान समझी, वह थी कि ओडिशा की आर्ट पुराने ढर्रे से ही हो रही है। जैसे गुजरात, राजस्थान ने वक़्त के साथ अपनी कला को रोज़मर्रा की ज़िंदगी में इस्तेमाल होने वाले उत्पादों तक पहुंचा दिया, वैसा अभी ओडिशा में नहीं हो रहा है। हम अभी भी ज़्यादातर पारम्परिक पेंटिंग आदि पर ही रुके हुए हैं। इसलिए मैंने इस कला को यूटिलिटी प्रोडक्ट्स पर आजमाने की ठानी,” शाइनी ने बताया।
अपनी पढ़ाई पूरी कर जब शाइनी अपने घर लौटी और अपने व्यवसाय के लिए पैसे जुटाने लगी तो उन्हें यही सलाह मिली कि वह कुछ दिन नौकरी कर लें। कैंपस प्लेसमेंट में शाइनी को अमेज़न में अच्छी जॉब मिल गई थी लेकिन उन्होंने जॉब जॉइन नहीं की। उनके माता-पिता ने उन्हें सलाह दी कि वह कुछ साल नौकरी करके अपना व्यवसाय शुरू करें। इससे वह अपने व्यवसाय के लिए अच्छी रकम इकट्ठा कर लेंगी। लेकिन शाइनी की सोच यहाँ पर बिल्कुल अलग थी।
उनके मुताबिक, “अगर मैं नौकरी में लग जाती तो मेरे लिए कुछ साल बाद उसे छोड़कर बिज़नेस शुरू करना बहुत मुश्किल हो जाता। जितना आत्म-विश्वास मुझमें तब था अपने व्यवसाय को लेकर शायद नौकरी के चार-पांच साल बाद नहीं रहता। बाकी सबकी तरह मैं भी यही सोचती कि क्या ज़रूरत है? इसलिए मैंने उसी समय खुद को एक मौका देने का फैसला किया।”
परिजनों से और अपनी कुछ बचत के पैसों से उन्होंने अपना सफ़र शुरू किया। सबसे पहले उन्होंने कारीगर तलाशे और फिर उन्हें तराशने का भी काम किया। शाइनी ने गाँव में जाकर पहले उनके साथ बातचीत की। उन्हें अपना बिज़नेस प्लान समझाया और फिर एक फ्रीलांसर डिज़ाइनर की मदद से उनकी वर्कशॉप कराई। यह डिजाईन डेवलपमेंट प्रोग्राम था, जिसमें कारीगरों को यह समझाया गया कि कैसे वह अपनी पारंपरिक कला से आज के आधुनिक उत्पादों को नए रंग दे सकते हैं।
धीरे-धीरे कारीगरों ने काम शुरू किया और प्रोडक्ट्स बनने लगे। शाइनी बताती हैं कि अपने स्टार्टअप के ज़रिए वह लकड़ी की मिनी डॉल, सामान रखने के लिए बॉक्सेस, निमंत्रण पत्र, राखी, पेंटिंग्स, होम डेकॉर आदि बना रही हैं। उनके प्रोडक्ट्स में आपको पटचित्रा के साथ-साथ सौरा और गोंड कला भी दिखेगी। उनके सभी प्रोडक्ट्स इको-फ्रेंडली हैं।
सोशल मीडिया के ज़रिए शाइनी ने अपने प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग शुरू की और धीरे-धीरे उन्हें काफी अच्छी प्रक्रिया मिलने लगी। ऑनलाइन मार्केटिंग के साथ-साथ वह सरकारी आयोजनों, वर्कशॉप, हाट बाज़ार आदि में भी अपने स्टॉल लगाती हैं। लोगों का अपने प्रोडक्ट्स के प्रति रुझान देखकर उन्हें आगे बढ़ते रहने का हौसला मिलता है।
वह कहतीं हैं, “सबसे ज्यादा अच्छा यह है कि मैं इन कारीगरों के लिए कुछ कर पा रही हूँ। मेरे कारीगर आज 7 हज़ार रुपये से 15 हज़ार रुपये तक का मासिक वेतन कमा रहे हैं। आगे मेरी कोशिश है कि हमारा काम इतना बढ़े कि मैं और कारीगरों को भी अपने साथ जोड़ पाऊं।”
हालांकि, शाइनी का यह सफर आसान नहीं रहा है। हर दिन वह लगभग 45 किलोमीटर की यात्रा कर गाँव आती-जाती थी। साथ ही, कारीगरों का भरोसा जीतना भी आसान नहीं था। लेकिन शाइनी ने संयम और धैर्य से इस पर काम किया। सबसे पहले कारीगरों को ट्रेन किया और फिर प्रोडक्ट्स की रेंज बढ़ाई।
“एक बड़ी समस्या यह भी है कि यह तटीय क्षेत्र है। हमारे यहाँ हर साल-दो साल में कोई न कोई प्राकृतिक आपदा होती है और फिर हमें नए सिरे से शुरू करना होता है। लेकिन मुझे ख़ुशी है कि मेरी कोशिशें रंग ला रही हैं। ग्राहकों की प्रतिक्रिया अच्छी है और सरकारी संस्थानों से भी पूरा सहयोग मिल रहा है,” उन्होंने कहा।
पहले साल में फोकमेट का सालाना टर्नओवर 15 लाख रुपये था और यह काफी अच्छी शुरूआत थी। लेकिन इस साल कोरोना की वजह से उन्हें काफी परेशानियाँ झेलनी पड़ी हैं। हालांकि, उन्होंने अपने कारीगरों को निराश नहीं होने दिया और उन्हें लगातार काम करते रहने के लिए कहा। वह कहती हैं कि मुश्किलें तो आएँगी लेकिन हम इनसे बाहर कैसे निकलें, इस बात पर हमें फोकस करना है।
“इस साल हमने राखियाँ बनाना शुरू किया था ताकि रक्षाबंधन पर अच्छा बाज़ार मिले। लेकिन अभी के हालातों में यह मुश्किल लग रहा है। लेकिन फिर भी अगर कोई थोक में राखी खरीदना चाहता है तो मैं कहूँगी कि एक बार हमारा कलेक्शन ज़रूर देखे। हमारे बहुत से कारीगरों की रोज़ी-रोटी इससे जुड़ी है।”
द बेटर इंडिया कला के प्रति खास लगाव रखने वाली शाइनी खुंटिया के जज्बे को सलाम करता है।
अगर आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है और आप शाइनी से संपर्क करना चाहते हैं तो उनके फेसबुक पेज पर मैसेज कर सकते हैं!
यह भी पढ़ें: एक ही गमले में 5 सब्जियाँ उगाने और 90% पानी बचाने का तरीका बता रहे हैं यह वैज्ञानिक!