भोपाल की 47 वर्षीय योगिता रघुवंशी पिछले 15 सालों से पुरे आत्म-विश्वास के साथ आँध्र प्रदेश से लेकर भोपाल तक दस-पहिया ट्रक चला रही हैं। वकालत की पढ़ाई करने वाली योगिता शादी के बाद एक गृहिणी थी। उनके दो बच्चे हैं। पर साल 2003 में उनके पति की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गयी।
एक औरत, जिसे ड्राइविंग तक नहीं आती थी, उसने परिस्थितियों के चलते अपने पति के परिवहन व्यवसाय को संभालना शुरू किया। “मेरी बेटी आठ साल की थी और बेटा केवल चार साल का, जब मेरे पति एक सड़क दुर्घटना में चल बसे। मुझे एहसास हुआ कि मुझे उनकी शिक्षा के लिए काम करना होगा,” योगिता ने बताया।
कुछ दिन वकालत में हाथ आजमाने के बाद योगिता को समझ आया कि उन्हें अपना घर चलाने के लिए किसी स्थायी साधन की जरूरत है। इसीलिए उन्होंने अपने पति के परिवहन व्यवसाय को संभालना शुरू किया।
सेवा केंद्र, कोलकाता द्वारा आयोजित सम्मेलन में बंगाल के ट्रक चालकों को संबोधित करते हुए, योगिता ने कहा कि रास्ता उनका सर्वश्रेष्ठ शिक्षक रहा है।
“मैंने जिस ड्राइवर को काम पर रखा था वह छह महीने में ही भाग गया। उसने ट्रक को हैदराबाद के पास एक मैदान में छोड़ दिया था। मैं वहां एक मैकेनिक और एक सहायक के साथ गयी और वाहन की चार दिनों में मरम्मत कराकर भोपाल लौटी। उन चार दिनों में मेरे बच्चे घर पर बिलकुल अकेले थे ,” उन्होंने बताया।
जब वे हैदराबाद से वापिस आयीं तो उन्हें पता था कि उन्हें क्या करना है। साल 2004 में उन्हें अपना ड्राइविंग लाइसेंस मिला और तब से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा है।
योगिता ने कहा, “शुरुआत में मेरे साथ एक सहायक होता था लेकिन फिर मैंने अकेले सफ़र करना शुरू किया।”
उन्होंने पिछले 15 वर्षों में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में अपना ट्रक चलाया है।
“मुझे दक्षिण में कुछ स्थानों के लगभग हर नुक्कड़ और गली का पता है। कभी-कभी, मुझे पूरी रात ड्राइव करना पड़ता है। अगर मुझे नींद आती है, तो मैं ट्रक को पेट्रोल पंप के पास खड़ा कर एक झपकी ले लेती हूँ,” उन्होंने कहा।
योगिता की बेटी अब एक इंजीनियर है और उनका बेटा कॉलेज में है।
हम सलाम करते हैं योगिता के हौंसले व हिम्मत को। यक़ीनन वे देश की अनगिनत औरतों के लिए एक प्रेरणा हैं।
( संपादन – मानबी कटोच )