केरल स्थित सबरीमाला मंदिर में 10 साल से लेकर 50 साल तक की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर बहस न जाने कितने दशकों से चल रही थी। लेकिन हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने सभी उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति देते हुए सदियों से औरतों के खिलाफ़ हो रहे इस भेदभाव को खत्म कर दिया है।
लेकिन इस फैसले से दो दशक पहले, एक महिला आइएएस अफ़सर, के. बी. वलसला कुमारी को अपनी ड्यूटी करने के लिए सबरीमाला मंदिर जाने की अनुमति मिली थी। उस समय भी बहुत से लोगों ने इसका विरोध किया था, यहाँ तक कि वलसला को धमकियाँ भी मिलीं। लेकिन फिर भी, कानून की ताकत के साथ उन्होंने इस मंदिर में कदम रखा और यहाँ का दौरा किया।
साल 1994-95 में वलसला 41 वर्ष की थीं और पत्तनमतिट्टा जिले की कलेक्टर थीं। उस समय 4 बार उन्होंने मन्दिर का दौरा किया था।
दरअसल, उस साल सबरीमाला की यात्रा से जुड़ी सभी जिम्मेदारियां इस महिला कलेक्टर के उपर थीं। इसके लिए उन्हें मंदिर के साथ-साथ आसपास की जगहों का भी मुआयना करना था। लेकिन, उनके वरिष्ठ अधिकारियों ने चिंता जताई कि उन्हें मंदिर में नहीं जाने दिया जायेगा तो वे अपनी ड्यूटी कैसे पूरी करेंगीं।
वलसला ने किसी भी विरोध को अपनी ड्यूटी के बीच नहीं आने दिया और इसके लिए केरल हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। कोर्ट ने भी यह समझते हुए कि कुमारी की यात्रा पूजा के लिए नहीं बल्कि अपने काम के लिए है, उन्हें अनुमति दे दी।
सेवानिवृत्त हो चुकीं कुमारी ने द टाइम्स ऑफ़ इंडिया को बताया, “मैं उस समय सिर्फ हाई कोर्ट के आदेश पर सबरीमाला मंदिर जा पाई थी। लेकिन आज कोर्ट ने सभी उम्र की औरतों के लिए मंदिर के दरवाज़े खोल दिए हैं। यह बहुत अच्छा है।”
हालांकि, उस समय भी वलसला को पवित्र सीढियाँ चढ़कर भगवान अयप्पा की पूजा करने की अनुमति नहीं दी गयी थी। इसलिए उन्होंने सिर्फ मंदिर का दौरा किया और नीचे खड़े होकर ही पूजा की थी।
पर उन्होंने अपनी ड्यूटी निभाते हुए, सबरीमाला का दौरा किया और वहां पर सफाई-अभियान चलाया। इसके अलावा उन्होंने मंदिर के आस-पास भी स्वच्छता पर जोर दिया और उनके प्रयासों के चलते ही वहां पर इको-फ्रेंडली शौचालय आदि का निर्माण करवाया गया।
उन्होंने पम्बा नदी की सफाई का अभियान भी शुरू किया था, जिसकी वजह से सबरीमाला में पीने का पानी उपलब्ध हो पाया था। उन्होंने ही सबरीमाला सैनिटेशन सोसाइटी का भी गठन किया था।
वलसला को सबरीमाला में उनके बेहतरीन काम के साथ-साथ इस बात के लिए भी हमेशा याद किया जायेगा कि वे सबरीमाला में जाने वाली पहली महिला थी।
संपादन – मानबी कटोच