यह एक ऐसी महिला की प्रेरणास्पद कहानी है, जिसने बालिका वधु बनने के बाद आ रही चुनौतियों का डट कर सामना किया और आज एक अन्तराष्ट्रीय स्तर की मुक्केबाज़ हैं।
प्रातः तीन बजे दिन की शुरुआत करने वाली नीतू सरकार, सुबह करीब डेढ़ घंटे का बस का सफ़र तय कर, अपने गाँव भिवानी से रोहतक जाती हैं। वहा अपनी ट्रेनिंग कर, सुबह 9 बजे वापस घर के लिए लौटती है, जहाँ घर के सारे काम निपटा कर, वह दोपहर को फिर से रोहतक के लिए निकल जाती हैं। वहां दुबारा ट्रेनिंग पूरी करके रात के 9 बजे घर पहुँचती है।
एक आम इंसान के लिए यह दिनचर्या अवश्य ही कठिन होगी। पर नीतू उन आम लोगों में से नहीं है।
जीवन के निरंतर संघर्षों ने नीतू को यहाँ तक पहुँचाया है।
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वे बताती हैं, “कुछ ऐसे भी दिन होते हैं, जब यह सब मुझे मुश्किल लगने लगता है, पर मैं अपनी मंजिल हर हाल में पाना चाहती हूँ। इसके लिए मैं बहुत दूर तक आई हूँ, और अब पीछे मुड़ना नहीं चाहती।”
नीतू का बचपन आम बच्चों की तरह हँसता-खेलता कभी नहीं था। 13 साल की छोटी सी उम्र में उसका विवाह उससे 30 साल बड़े एक ऐसे व्यक्ति से करवा दिया गया, जो मानसिक रूप से असंतुलित था। एक सप्ताह के भीतर ही नीतू के ससुर ने उसके साथ ज़बरदस्ती करने का प्रयास किया, जिसका विरोध कर नीतू वहाँ से भाग खड़ी हुई।
बाल विवाह भारत में 1929 से प्रतिबंधित है।
हालांकि नीतू का जीवन इस बात का जीता-जागता उदाहरण है, कि किस प्रकार हमारे देश में प्रथाओं को क़ानून के ऊपर रखा जाता है। युएन 2014 की रिपोर्ट के अनुसार बाल-विवाह की प्रथा में भारत दक्षिण एशिया में दूसरे स्थान पर है। अधिकतर उदाहरणों में ग़रीबी के शिकार अभिभावक अपनी बेटियों का विवाह कम उम्र में करा देते हैं, इस उम्मीद के साथ कि उनका आगे का जीवन बेहतर हो। एक कारण यह भी होता है, कि ऐसे परिवारों में एक व्यक्ति के कम हो जाने से घर के खर्च में भारी कटौती हो जाती है।
नीतू बताती हैं, ” जब मैं 13 साल की थी, तब मेरे पड़ोस की दो लडकियां घर से भाग गयीं। इस वजह से मेरे परिवार वाले काफी घबरा गए। उन्हें डर था कि कहीं मैं भी कुछ ऐसा न कर बैठूं। इसी कारण उन्होंने जल्दबाजी में मेरी शादी करवा दी। देखा जाए तो उनकी गलती की सज़ा मुझे चुकानी पड़ी।”
नीतू के ससुरालवालों के बर्ताव से नीतू के परिवारवाले अत्यंत क्रोधित तो हुए, पर यह घटना भी उन्हें नीतू की दूसरी शादी करवाने से रोक नहीं पायी। हालांकि इस बार उसका पति एक नेक दिल इंसान था जो उसे बहुत प्यार और सम्मान देता था।
14 साल की आयु में नीतू ने दो जुड़वाँ बेटो को जन्म दिया।
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पर नीतू का ससुराल आर्थिक रूप से कमज़ोर था। उसका पति बेरोजगार था और घर का खर्च नीतू की सास के पेंशन से चलता था। यह थोड़े बहुत पैसे भी राशन और बच्चों की फीस चुकाने थे। बच्चो के बड़े होने से घर की ज़रूरतें भी बढ़ने लगी और उनकी आर्थिक स्थिति और खराब होने लगी।
नीतू बताती है, ” बचपन से ही मैं कुश्ती के प्रति आकर्षित रही थी। जब 2010 का कॉमन वेल्थ गेम्स भारत में हो रहा था, तब मैंने कुश्ती का पूरा मैच टी वी पर देखा। उसी समय मैंने यह सोचा कि क्यों न इसे एक करियर के रूप में चुना जाये।”
अपनी गरीबी से लड़ने के लिए, नीतू ने गाँव के अखाड़े में, जो सिर्फ पुरुषों के लिए था, ट्रेनिंग लेने की ठानी। किन्तु नीतू के वहां घुसने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।
गाँव के लोग, नीतू के इस फैसले से बहुत नाराज़ थे। उन लोगों ने उसके पति को उसे रोकने के लिए कहा। नीतू की सास भी उसके विरूद्ध थीं। पर इन सब के बावजूद नीतू पीछे हटने को तैयार नहीं थी।
उस वक्त नीतू 80किलो की थी। अपना वज़न घटाने और खुद को फिट रखने के लिए उसने 3 बजे उठ कर भागना शुरू किया।
वह सुबह अपनी दौड़ पूरी करके गाँव वालों के जागने से पहले घर लौट आती थी।
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नीतू के सपनो को तब पंख लगने लगे जब 2011 में वह कोच जिले सिंह से मिली।
वे बताती हैं, ” उन्होंने मुझे समझाया कि जब ‘मैरी कॉम’ बच्चो की माँ हो कर मैडल जीत सकती हैं, तो मैं क्यों नहीं। इस से मेरे अन्दर बहुत उम्मीद जगी।”
नीतू ने रोहतक में अपनी ट्रेनिंग शुरू की। ये उसकी मेहनत ही थी कि उसी साल आयोजित एक राष्ट्रीय प्रतियोगिता में उसने कांस्य पदक जीता। यह एक शुरुआत थी जिसके बाद उसने पीछे नहीं देखा।
नीतू ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई पदक जीते हैं।
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केरला में आयोजित 35वे राष्ट्रीय खेल की 48किलो की श्रेणी में नीतू ने रजक पदक जीता। इसके अलावा ब्राज़ील में आयोजित विश्व जूनियर कुश्ती प्रतियोगिता में उसने भारत का प्रतिनिधित्व भी किया है।
नीतू कहती हैं, ” जो गाँव वाले मेरे निर्णय से नाराज़ थे, वे आज मेरी उपलब्धियों पर मुझपर गर्व करते हैं। मैं अब अखाड़े में भी जाती हूँ और यहाँ के लोग अपनी बेटियों को मेरे जैसे बनने की सलाह देते हैं। इन सब से मुझे बहुत ख़ुशी मिलती है।”
नीतू को उम्मीद है कि उसे जल्द ही भारतीय रेल में नौकरी मिल जायेगी। वह इस वर्ष होने वाली अन्तराष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिता के लिए भी खुद को तैयार करने में जुटी हुई हैं।
नीतू ने शुरू से कुश्ती में सुशिल कुमार को अपना आदर्श माना है और आज सुशिल फॉर स्पोर्ट्स संस्था उसकी मदद कर रही है।
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नीतू बताती हैं, ” इस संस्था ने दो माह के लिए रोहतक में मेरे रहने की व्यवस्था करवाई है ताकि मुझे हर दिन ट्रेनिंग के लिए इतनी दूर आना न पड़े। अब मैं सप्ताह के अंत में अपने घर जाती हूँ। मेरा परिवार ही मेरी असल ताकत है। मैं अपने पति के सहयोग के बिना इतनी दूर नहीं आ पाती। मेरे बच्चो ने भी मेरे लिए यह राह बहुत आसान कर दी। वे कभी भी इस बात की जिद नहीं करते कि मैं उनके पास ही रुक जाऊं। उनके चेहरों पर गर्व देख मुझे यह विशवास होता है कि मैंने सही निर्णय लिया है।”
नीतू से आप care@sushil4sports.com पर इमेल कर संपर्क कर सकते हैं।
मूल लेख मेरील गार्सिया द्वारा लिखित