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नीरजा भनोट की अनोखी कहानी – एक एयर होस्टेस, जिसने अपनी जान देकर बचाई यात्रियों की जान!

5 सितम्बर 1986 की सुबह पैन एम विमान-73 कराची में उतरा। यह विमान मुंबई से आया था और अगर सब ठीक होता तो ये विमान फ्रैंकफर्ट होते हुए न्यू यॉर्क शहर के लिए रवाना होता। इस विमान में भारतीय ,जर्मन, अमरीकी और पाकिस्तानी यात्री सवार थे।

दुर्भाग्यवश जब यह विमान कराची के जिन्ना अंतर्राष्ट्रीय एअरपोर्ट पर खड़ा था तब इसका अपहरण कर लिया गया।

Photo for representation purpose only. Source: Wikipedia

हथियारों से लैस और हवाईअड्डे के सुरक्षा गार्ड की तरह कपड़े पहने हुए चार आतंकवादीयों विमान में घुसे और अंधाधुंध फायरिंग करने लगे। उन्होंने विमान पर पूरी तरह से कब्ज़ा कर लिया था।

यह कहानी है नीरजा भनोट की, जो उस विमान की सीनियर परिचारिका थी और जिसने कई यात्रियों की भागने में मदद की। अपने 23वें जन्मदिन से महज़ 25 घंटे पहले तीन बच्चों को आतंकवादियों की गोलियों से बचाते हुए नीरजा की मौत हो गयी।

जब आतंकवादी विमान मे चढ़े तब नीरजा ने कॉकपिट के क्रू को आगाह कर दिया और क्रू कॉकपिट से भाग निकला। इसके बाद विमान में  वही सबसे सीनियर क्रू मेम्बर थी। एक आतंकवादी ने क्रू से कहा कि सभी यात्रियों के पासपोर्ट जमा करके उसके हवाले कर दिए जायें। जब नीरजा को यह समझ आया कि आतंकवादियों का मुख्य निशाना अमरीकी नागरिक हैं, तो उसने उनके पासपोर्ट छुपा दिए और कुछ पासपोर्ट कचरे में फेंक दिए। यह नीरजा ही थी जिनके इस कदम की वजह से 41 अमरीकी यात्रियों में से सिर्फ 2 मारे गये थे।

सभी यात्रियों और क्रू के सदस्यों को 17 घंटो तक बंधक बनाने के बाद आतंकवादियों ने गोलीबारी शुरू कर दी। नीरजा चाहती तो भाग सकती थी पर उसने विमान में रुककर यात्रियों की भागने में मदद की। तीन बच्चों को आतंवादियों की गोली से बचाते हुए नीरजा ने अपनी जान दे दी।

हम में से ज्यादातर लोग ऐसी जीवन-मरण वाली परिस्थितियों से नही गुजरते जैसे की नीरजा गुजरी थी। डर के चेहरे में ही बहादुरी दिखती है। शायद हम कभी नही जान सकेंगे की उन भयावह लम्हों में नीरजा पर क्या गुजरी होगी और उसके ज़हन में उस वक्त क्या-क्या आया होगा पर इतना तो तय है कि उसने आतंवादियों का सामना अद्वितीय हिम्मत और क्षमता के साथ किया। 380 यात्रियों और 73 क्रू के सदस्यों में से 20 लोग मारे गये थे।

कुछ लोग घायल भी हुए पर उनकी जान बच गयी। और ये सब हो सका उस 22 वर्षीय बहादुर लड़की के कारण, जिसने निर्भय होकर अपने कर्त्तव्य को मरते दम तक निभाया।

नीरजा के परिवार ने अपनी इकलौती बेटी को खो दिया।
source-Facebook

“नीरजा अपने परिवार की ‘लाडो’ थी, सबसे छोटी और सबसे लाडली। मेरे माता पिता ने उसके लिए मन्नतें मांगी थी और उसके मरने के बाद एक समाचार लेख मे मेरे पापा ने बताया था कि जब 7 सितम्बर 1962 को चंडीगढ़ के एक अस्पताल में उसके जन्म की खबर देने वाली को दुगुना धन्यवाद दिया था क्यूंकि 2 बेटों के बाद बेटी पाने की दुआ कुबूल हुई थी।

– नीरजा के भाई अनिश कहते हैं। |

उनके पिता के शब्दों में –

“नीरजा बहुत संवेदनशील, बहुत सौहार्दपूर्ण और सभ्य थी जो लोगों के साथ खुशियाँ बाँटने में यकीन रखती थी। वो अपने उसूलों की पक्की थी और उनके साथ कोई समझौता उसे मंजूर नही था। “

इतने बड़े सदमे से गुजरने के बाद भी नीरजा के माता-पिता रमा और हरीश भनोट नही टूटे और नीरजा की यादों को अमर करने के लिए एक कदम उठाया। नीरजा के बीमे के पैसों और पैन एम से मिले पैसों से उन्होंने नीरजा भनोट पैन ट्रस्ट की स्थापना की। इस ट्रस्ट के द्वारा वो दो ऐसी महिलाओं को सम्मानित करते हैं, जिन्होंने सामाजिक समस्यायों से लड़ाई कर दूसरी महिलाओं की भी मदद की हो! दूसरा पुरस्कार उस क्रू मेम्बर को दिया जाता हैं, जिसने अपने काम को बहुत अच्छे ढंग से निभाया हो। इनाम की राशि डेढ़ लाख रूपये होती है। नीरजा की यादों को जिंदा रखने का इससे बेहतर तरीका शायद ही हो सकता था।

विमान अपहरण के दिन की अपनी बहादुरी के लिए नीरजा को मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था, जो की मिलिट्री में उन लोगो को दिया जाता है, जिन्होने कोई वीरतापूर्ण कार्य किया हो या अपने प्राणों का बलिदान दे दिया हो। इसके अलावा नीरजा को पाकिस्तान की सरकार ने तमगा-ए-इंसानियत से भी नवाज़ा है। नीरजा को मरणोपरांत और भी कई पुरस्कार यूनाइटेड स्टेट्स की सरकार ने दिए हैं।

नीरजा की कहानी पर एक फिल्म भी बनायीं गयी जिसमें सोनम कपूर ने उनकी भूमिका निभाई है!

त्याग और साहस की इस महान प्रतिमूर्ति को हमारी भावपूर्ण श्रद्धांजलि !!

मूल लेख वंदिता कपूर द्वारा लिखित। 

संपादन – मानबी कटोच

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