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अनपढ़ होते हुए भी किंकरी देवी ने जलाई शिक्षा और पर्यावरण के प्रति जागरूकता की मशाल !

किंकरी देवी – हिमाचल प्रदेश की एक ऐसी पर्यावरण की रक्षक जिन्होंने चूना-पत्थर खदानों के खिलाफ एक जंग छेड़ी।  सिमौर जिले की रहने वाली इस साधारण महिला ने जब खदानों के कारण वातावरण में हो रहे दुष्परिणामो को देखा तो अनपढ़ होने के बावजूद, इन खदानों के मालिको को वो  कोर्ट तक ले कर गयी। आइये जानते है इनके संघर्ष और बहादुरी की  कहानी।

म में से ऐसे कई लोग हैं, जो खुद को किसी विचार, सोच, या जगह से इतना जुडा हुआ पाते हैं कि उस से खुद को अलग करना मुश्किल हो जाता है। और उनमे से कुछ ऐसे भी हैं जो इस जुड़ाव को कभी नहीं भूलते। किंकरी देवी  भी एक ऐसी महिला थी जिन्होंने अंत तक अपनी मातृभूमि और वहां के वातावरण को खुद से अलग नहीं होने दिया।

1925 में हिमाचल के गाँव, घाटों में जन्मी किंकरी देवी ने गौर किया कि उनके अपने और आस-पास के गाँवो का वातावरण बहुत ही बुरी तरह बदल रहा था।

Source: Facebook

किंकरी देवी एक गरीब परिवार में जन्मी थी। उनके पिता एक किसान थे और बचपन में ही उन्होंने लोगो के घर में काम करना शुरू कर दिया था। 14 वर्ष की छोटी सी आयु में उनका विवाह श्यामू नाम के एक बंधुआ मजदूर से करा दिया गया। किन्तु 22 की होते होते वे विधवा हो गयी और अपना गुज़ारा करने के लिए उन्होंने सफाई कर्मचारी (स्वीपर) का काम करना शुरू कर दिया। अनपढ़ होने के बावजूद भी उन्होने कई लोगो को पर्यवारण के प्रति जागरूक किया और उन्हें अनियंत्रित खनन के दुष्परिणाम के प्रति सचेत किया।

दून घाटी में उत्खनन पर 1985 में प्रतिबन्ध लगने के बाद, सिमौर जिले में चूनापत्थर के उत्खनन का व्यापार पुरे जोरो से चलने लगा। अत्यधिक उत्खनन के कारण इस जिले के जलाशयों का पानी प्रदूषित होने लगा, खेती की ज़मीन ख़राब होने लगी और जंगल कम होने लगे। किंकरी देवी, जो खुद अनपढ़ थी, वह इस जिले के आस पास उत्खनन के विरोध में आवाज़ उठाने और लोगो का प्रदुषण के प्रति जागरूक बनने  के पीछे का मुख्य कारण बनी।

उन्होंने अपनी लडाई की शुरुआत निम्न स्तर से की और 1987 में उन्होंने एक स्वयं सेवी संस्था ‘पीपल्स एक्शन फॉर पीपल इन नीड’ (People’s action for people in need) की मदद से शिमला के उच्च न्यायालय में एक पी.आई.एल दर्ज किया। यह मुकदमा वहाँ के 48 खदान के मालिको के खिलाफ था जो इस चुनापत्थर के उत्खनन के लिए ज़िम्मेदार थे। जब इस पी.आई.एल पर कोई कार्यवाई नहीं हुई तो किंकरी देवी खुद शिमला गयी और कोर्ट के आगे भूख हड़ताल पर बैठ गयी।

आखिरकार १९ दिन की भूख हड़ताल के बाद उनकी ये लड़ाई सफल हुई और कोर्ट ने उत्खनन और पहाडो पर विस्फोट करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया। 

उच्चतम न्यायलय में इस केस को दुबारा खुलवाया गया किन्तु वहा भी किंकरी देवी के पक्ष में ही फैसला सुनाया गया।

इसके बाद किंकरी देवी को एक प्रख्यात पर्यावरण रक्षक के रूप में पहचान मिली। 1995 में उन्हें बीजिंग के अन्तराष्ट्रीय महिला सम्मलेन में बुलाया गया जहाँ हिलेरी क्लिंटन ने उदघाटन का दीप, किंकरी देवी के हाथो से प्रज्वाल्लित करवाया । 1999 में उन्हें ‘झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई स्त्री शक्ति पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।

किंकरी देवी ने संग्राह गाँव में डिग्री कॉलेज खोलने के लिए भी आन्दोलन चलाया, जहा उन्होंने अपने जीवन के कई साल बिताये थे।  2006 में आखिरकार यहाँ एक कॉलेज खोल गया।

82 वर्ष की आयु में किंकरी देवी इस दुनिया से विदा हो गई लेकिन अपने पीछे एक स्वच्छ वातावरण की धरोहर छोड़ गईं। उनका जीवन इस बात का उदाहरण बना कि शिक्षा महज़ डिग्री से नहीं पायी जा सकती। एक आम अनपढ़ व्यक्ति भी अगर अपने इर्द गिर्द के माहौल के प्रति जागरूक रहे तो वह समाज में ऐसे बड़े बदलाव ला सकता है जो कई शिक्षित लोग भी नहीं कर पाते।

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