“दिल ना-उम्मीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लम्बी है गम की शाम मगर शाम ही तो है!
मशहूर शायर फैज़ अहमद फैज़ की ये पंक्तियाँ उन लोगों पर बिलकुल सटीक बैठती हैं, जो परेशानियों और हार के डर से चुप नहीं बैठते बल्कि अपनी सफलता का सवेरा खुद लेकर आते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी है एक आम-सी लड़की से देश की हीरो बनने वाली खुशबीर कौर की।
25 साल की खुशबीर कौर ने साल 2014 में साउथ कोरिया में हुए एशियाई खेलों में महिलाओं की 20 किलोमीटर की दौड़ प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल किया था। एशियाई खेलों में दौड़ प्रतियोगिता जीतने वाली वे पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं।
पंजाब में अमृतसर के रसुलपुर कलान गांव की रहनेवाली खुशबीर ने छह साल की उम्र में अपने पिता को खो दिया था। आज वो जो भी हैं उसका श्रेय उनकी माँ जसबीर कौर को जाता है, जिन्होंने अकेले अपनी पांच बेटियों व एक बेटे की परवरिश की।
पति की अचानक मौत ने जसबीर के ऊपर सभी जिम्मेदारियों को डाल दिया। लेकिन उनकी बेटी की सफलता इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई है। घर चलाने के लिए जसबीर सिलाई का काम करती और साथ ही आस-पड़ोस में दूध भी बेचती थीं।
टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ एक साक्षात्कार में जसबीर ने बताया, “बरसात के मौसम में, मेरी बेटियां, बेटा, गाय और मैं, सभी को एक ही कमरे में रहना पड़ता था।”
इस परिवार ने ना जाने कितनी मुश्किलें झेली हैं। कभी-कभी कई दिनों तक भी खाना खरीदने के पैसे नहीं होते थे। अक्सर उन्हें रात तबेले में गुजारनी पड़ती थी। लेकिन खुशबीर के खेल और उनके जीते हुए स्वर्ण पदक ने कौर परिवार के लिए हालात बदल दिए।
पुरे देश में लड़कियों की स्थिति पर जसबीर अपनी बेटियों का उदाहरण देकर लोगों को कन्या भूर्ण हत्या के खिलाफ जागरूक करती हैं।
साल 2008 के जूनियर नेशनल्स में खुशबीर ने नंगे पांव ही रेस पूरी की, क्योंकि उनके पास जूते खरीदने के पैसे नहीं थे।
स्क्रॉल की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2020 टोक्यो ओलंपिक में खुशबीर पहले से ही भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए तैयारी कर रही हैं। खुशबीर कहती हैं, “अभी की सरकार खेल को बहुत महत्व दे रही है, जो बहुत अच्छी बात है और हम एक उल्लेखनीय सुधार देख रहे हैं। लेकिन ओलंपिक से मुझे जो एहसास हुआ वह यह है कि हमें इस तरह की प्रतियोगिताओं के लिए चार से पांच साल पहले से ही तैयारी शुरू कर देनी चाहिए।”
पिछले साल खुशबीर को अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया था।
हम खुशबीर के हौंसले और सब्र की सराहना करते हैं और उम्मीद करते हैं कि वे ऐसे ही भारत का प्रतिनिधित्व कर जीत का परचम लहराती रहें।
संपादन – मानबी कटोच