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खुद उगातीं हैं कटहल, निम्बू और आम और फिर प्रोसेसिंग कर बनातीं हैं 100 से ज़्यादा उत्पाद

केरल के कासरगोड जिला स्थित पनाथाडी गाँव में रहने वाली 42 वर्षीय कुसुमवती पूरे देश की महिलाओं के लिए मिसाल हैं। अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए ज़रूरी नहीं कि आप कोई सरकारी या बड़ी जगह ही नौकरी करें। एक गृहिणी भी उद्यमी बन सकती है और अपने घर को चला सकती है, इस बात की प्रेरणा कुसुमवती से मिलती है। उन्होंने सिर्फ और सिर्फ अपने हुनर और गुरों के आधार पर अपनी पहचान बनाई है।

एक वक़्त था जब गरीबी में अपनी पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए वह बीड़ी बनाया करतीं थीं। आज भले ही उनके घर की आर्थिक स्थिति ठीक है लेकिन उनकी आत्मनिर्भरता रत्ती भर भी कम नहीं हुई है।

कुसुमवती का बचपन गरीबी में बीता। घर में वो 6 बहनें थीं और माता-पिता के पास इतने साधन नहीं थे कि सभी की पढ़ाई का खर्च उठा सकें। वह बतातीं हैं कि अपने परिवार के सहयोग के लिए उन्होंने छोटी उम्र से ही काम करना शुरू कर दिया था। छटी या सातवीं कक्षा में थीं जब वह अपने गाँव में एक बूढी औरत की देखभाल का काम करतीं थीं।

Kusumavathy

उनके मुताबिक, उन्होंने उसी बूढी औरत से बिना कोई तेल या प्रेजेर्वेटिव इस्तेमाल किए तरह-तरह के अचार बनाना सीखा। इसके बाद, जब वह थोड़ी बड़ी हुई तो उन्होंने बीड़ी बनाने का काम शुरू किया, ताकि वह अपनी फीस भर पाएं। कुसुमवती ने बीकॉम तक की पढ़ाई की है। वह हमेशा से सरकारी नौकरी करना चाहतीं थीं।

उन्होंने अपनी एक सहेली के साथ टीचर ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए अप्लाई भी किया था। लेकिन पैसों की कमी के कारण वह अपनी फीस नहीं भर पाई। इसके बाद साल 2000 में उनकी शादी, गंगाधरण से हो गई। उनके पति प्राइमरी स्कूल शिक्षक हैं। वह बताते हैं कि उन्होंने कभी भी अपनी पत्नी को खाली बैठे हुए नहीं देखा। मतलब कि वह हमेशा किसी न किसी काम में लगी रहतीं हैं।

कुसुमवती बताती हैं, “मुझे खेती-बाड़ी का भी शौक है। हमने तीन प्लाट लीज पर ली हुई हैं। जिसमें मैं सभी तरह की मौसमी सब्जियां जैसे कद्दू, करेला, बैंगन, भिन्डी, मिर्च, खीरा, तरबूज, मक्का, टमाटर आदि उगाती हूँ। अगर मैं दो महीने भी अपने इस किचन गार्डन में मेहनत करूँ तो अगले तीन महीने के लिए पर्याप्त सब्ज़ियाँ हमें मिल जाती हैं।”

She grows her own food

कुसुमवती कभी भी चावल और सब्जी बाजार से नहीं खरीदती हैं। चावल उगाने के लिए भी उन्होंने अपने गाँव में ही थोड़ी-सी ज़मीन लीज पर ली हुई है। वहां पर वह साल भर का चावल उगाते हैं। यहाँ का भी ज़्यादातर काम कुसुम खुद ही करतीं हैं। इसके अलावा, जब केरल सरकार ने सुभिक्षा केरलम स्कीम शुरू की तो उन्होंने अपनी दो सहेलियों के साथ इसके लिए आवेदन किया।

केरल सरकार ने राज्य को खाद्यान्न संपूर्ण बनाने के लिए एक खास योजना शुरू की, जिसके तहत उन्होंने बंज़र पड़ी ज़मीनों पर पेड़-पौधे लगाने का फैसला किया। सरकार ने लोगों को अपने आस-पास इस तरह की ज़मीनों पौधारोपण करने के लिए कहा। कुसुमवती और उनकी साथियों ने कसावा, रतालू, और कोलोकैसिया जैसे पेड़ लगाए हुए हैं, जिनसे उनके घर की पूर्ति भी होती है और वो बाहर बेच भी पाती हैं।

कुसुमवती खेत में किसान हैं तो अपनी किचन में शेफ और इसके साथ-साथ पिछले कई सालों से वह एक उद्यमी भी हैं। वह पूरे इलाके में अपने अचार और कटहल से बने उत्पादों के लिए लोकप्रिय हैं। वह जो कुछ भी बनाती हैं, उसके लिए शायद ही कोई चीज़ बाहर से खरीदती हैं। उनके सभी इंग्रेडीएंट्स वह खुद उगाती हैं और तैयार करतीं हैं।

Her Harvest and seeds, she prepares

कुसुमवती कटहल से लगभग 100 तरह की व्यंजन बना सकती हैं जिनमें पापड़, पायसम, अचार, सब्ज़ी से लेकर वडा और चिप्स तक शामिल हैं। उनके घर में दो कटहल के पेड़ हैं और बाकी वह कुछ अपने पड़ोसियों से ले लेती हैं। इसके अलावा वह निम्बू, मिर्च और आम आदि का अचार बनाती हैं। उनके घर में आपको अलग-अलग बर्तन में किसी न किसी चीज़ का अचार बनता ही मिलेगा।

हालांकि, इसके बावजूद कुसुमवती ने कभी भी अपना कोई बहुत बड़ा बिज़नेस सेट-अप करने की नहीं सोची। उनकी शुरुआत गाँव में लगने वाले मेलों से हुई। वहां पर वह कभी-कभी अपने उत्पादों की स्टॉल लगातीं थीं। इसके बाद उन्हें शादियों से भी ऑर्डर मिलने लगे। भला भारतीय खाना बिना अचार कैसे पूरा हो और जब बात शादियों की हो तो सबको एक से बढ़कर एक चीजें चाहिए होती हैं। कुसुमवती की खासियत यही है कि वह कभी भी अपने उत्पादों के स्वाद और गुणवत्ता से समझौता नहीं करतीं हैं।

She makes more than 100 products of Jackfruit

शादी-ब्याह के ऑर्डर के अलावा बहुत से ग्राहक उनसे सीधे जुड़े हुए हैं जो उनके घर से आकर अचार लेकर जाते हैं। महीने में वह 50 से 60 किलोग्राम तक अचार बेचती हैं। इसके अलावा, वह खास आर्डर मिलने पर बाकी प्रोडक्ट्स तैयार करतीं हैं।

हालाँकि, फ़िलहाल लॉकडाउन के कारण उनकी बिक्री कम हो गयी है। महीने की आजीविका की बात करें तो उनके मुताबिक फ़िलहाल, वह महीने के 8 से 10 हज़ार रूपये कमा रही हैं। उम्मीद है आने वाले समय में जब स्थिति ठीक होने लगेगी तो उनकी आमदनी और बढ़ जाएगी।

Her pickle is famous in her village

आमदनी से भी बढ़कर, कुसुमवती के लिए वह सम्मान मायने रखता है, जो वह अपने हुनर और मेहनत के दम पर कमा रही हैं। पिछले साल कोलिचल में आयोजित एक मेले में उन्होंने 23 व्यंजन बनाए थे और वहां पर उन्हें ‘बेस्ट शेफ’ के सम्मान से नवाज़ा गया था।

बेशक, कुसुमवती देश की बहुत-सी महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं। उम्मीद है कि हमारे यहाँ हर एक गृहिणी इस कहानी को पढ़ने के बाद अपने अंदर छिपे हुनर को टटोलने की कोशिश करेगी। आपको सिर्फ एक कोशिश करने की देर है क्योंकि फिर रास्ते खुद ब खुद बनने लग जाएंगे!

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