1 फ़रवरी 2003 को, टेक्सस में स्पेस शटल कोलंबिया एसटीएस -107 पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते ही दुर्घटनाग्रस्त हो गया जिसके चलते सात अन्तरिक्ष यात्रियों की मौत हुई। इन सात यात्रियों में से एक थीं भारत की कल्पना चावला- अन्तरिक्ष में जाने वाली पहली भारतीय महिला।
अनगिनत भारतीय लड़कियों के लिए एक आदर्श, कल्पना चावला हरियाणा में करनाल के एक साधारण से परिवार से ताल्लुक रखती थीं। कल्पना के ऊंचे सपनों और अतुलनीय साहस ने उन्हें अन्तरिक्ष तक पहुंचाया।
आज द बेटर इंडिया के साथ जानिये भारत की इस बेटी की ज़िन्दगी के कुछ अनछुए पहलू!
वास्तव में, कल्पना के माता-पिता पश्चिमी पंजाब के मुल्तान जिले (अब पाकिस्तान) से ताल्लुक रखते थे, पर बंटवारे के समय वे भारत में आकर हरियाणा के करनाल में बस गये। उनके पिता बनारसी लाल चावला ने अपना घर चलाने के लिए छोटी-मोटी नौकरियां की। बाद में उन्होंने टायर बनाने का काम शुरू किया और उनकी पत्नी संयोगिता घर सम्भालती थीं।
17 मार्च 1962 को जन्मीं कल्पना बचपन से ही ऐसे माहौल में पली-बढीं, जहाँ परिश्रम को सबसे महवपूर्ण माना जाता था। चार भाइ-बहनों में सबसे छोटी कल्पना सबको बहुत प्यारी थी। कल्पना को बचपन से ही उनकी माँ ने हर एक चीज़ के लिए बढ़ावा दिया।
उस समय में जब लड़कियों की पढ़ाई पर कोई ध्यान नहीं देता था, तब कल्पना की माँ यह सुनिश्चित करती थीं कि उनकी सभी बेटियाँ वक़्त पर स्कूल जाएँ।
बचपन से ही आत्मविश्वासी रहीं कल्पना ने खुद अपना नाम चुना। हुआ ये कि उनके जन्म के वक़्त कल्पना का नामकरण नहीं हुआ था। बचपन से ही उन्हें उनके घर में प्यार से ‘मोंटो’ बुलाते थे। उनके घर के पास ही टैगोर बाल निकेतन स्कूल में जब उनका दाखिला करवाया गया तो प्रिंसिपल ने उनका नाम पूछा। जिस पर उनकी आंटी ने कहा कि उनके नाम के लिए तीन विकल्प हैं- ज्योत्स्ना, कल्पना और सुनैना।
इसके बाद प्रिंसिपल ने जब नन्ही कल्पना से एक नाम चुनने के लिए कहा तो उसने तपाक से कहा कि वह कल्पना नाम अपनाएगी क्योंकि इस छोटी सी उम्र में भी उसे इसका मतलब पता था!
अपने नाम की ही तरह वे बचपन से ही बहुत रचनात्मक और गहरी सोच वाली लड़की थीं। गर्मियों की रात में जब उनका पूरा परिवार घर की छत पर सोता था, तो कल्पना देर रात तक जागकर तारों को निहारती रहती थीं। तारों के लिए उनका लगाव इतना था कि एक बार उनकी एक सहपाठी ने भारत का भौगोलिक नक्शा क्लास की फर्श पर बनाया, तो उन्होंने छत को तारों से सजा दिया- एक काले रंग के कार्ट के उपर छोटे चमकते बिन्दुयों से!
तारों के अलावा नन्हीं कल्पना को हवाई जहाज से भी बहुत प्यार था। उस समय, करनाल उन चंद भारतीय शहरों में से एक था,जहाँ फ्लाइंग क्लब था – करनाल एवियेशन क्लब। उनका घर क्लब से कुछ ही किलोमीटर की दुरी पर था, तो वे अक्सर घर की छत पर जाकर आसमान में प्लेन जाते हुए देखती थीं।
कोलंबिया मिशन से पहले दिए एक इंटरव्यू में कल्पना ने बताया था कि अक्सर वे अपने भाई के साथ साइकिल पर यह देखने के लिए जाती थीं कि प्लेन आखिर कहाँ जा रहे हैं। उन्होंने कहा,
“हम हमारे पिता से अक्सर पूछते कि क्या हम कभी उन हवाई जहाजो में बैठ पाएंगे! और फिर उन्होंने हमें पुष्पक और ग्लाइडर में सैर करवाई। मुझे लगता है कि एयरोस्पेस इंजीनियरिंग से वही मेरा एकमात्र नाता था। बड़े होते हुए, हमने जे.आर.डी टाटा के बारे में भी जाना, जिन्होंने भारत के शुरुआत के कुछ मेल फ्लाइट उड़ाई थीं, जिनमें से एक अब वहां एक एरोड्रोम में रखा हुआ है। इस विमान को देखकर और यह जानकर कि उस व्यक्ति ने इतने सालों में क्या-क्या हासिल किया है, निश्चित रूप से उन्होंने मेरी कल्पना को प्रभावित किया।”
जब भी स्कूल के ड्राइंग पीरियड में कोई तस्वीर बनाने के लिए कहा जाता, तो बाकी सभी बच्चे पर्वत, पेड़, पेवत या नदी बनाते पर कल्पना हमेशा ही बादलों के बीच उड़ते रंग-बिरंगे हवाई जहाज बनाती थीं। कल्पना की एक स्कूल टीचर को अभी भी याद है कि कैसे एक बार कल्पना के एक सवाल ने उन्हें अचंभित कर दिया था। क्योंकि इतनी कम उम्र में इतनी गहरी सोच शायद ही किसी की हो उस वक़्त। कल्पना ने एक बार उनसे सवाल किया था, “लोगों को तबकों, संप्रदायों और धर्मों में कैसे बांटा जा सकता है जबकि आसमान से वे सब एक जैसे लगते हैं?”
कल्पना बहुत मेहनती थीं। उन्हें इंग्लिश, हिंदी, भूगोल आदि विषय पसंद थे पर विज्ञान सबसे ज्यादा अच्छा लगता था। डांस करने के अलावा उन्हें साइकिलिंग, दौड़ना और बैडमिंटन खेलना पसंद था। वे बचपन से ही टॉमबॉय की तरह रहतीं, छोटे बाल रखना, कभी कोई मेकअप न करना और ना ही फैशन की तरफ कोई ध्यान। अपनी बड़ी बहन की शादी पर उन्होंने एक ही जोड़ी कपड़े तीनों दिन पहनने की जिद की, क्योंकि और कपड़े खरीदना उनके हिसाब से फ़िज़ूल खर्च था।
अपनी दसवीं की कक्षा के बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए डीएवी कॉलेज में दाखिला लिया। और यहाँ पर एक बहुत ही दिलचस्प घटना हुई।
एक बार गणित की क्लास में कल्पना के टीचर अलजेब्रा के नल-सेट (खाली सेट) के बारे में पढ़ा रहे थे और उन्होंने कहा कि भारतीय महिला अंतरिक्ष यात्रियों का एक समूह इसका अच्छा उदहारण होगा, क्योंकि आज तक कोई भी भारतीय महिला अन्तरिक्ष में नहीं गयी है। इसे सुनकर कल्पना ने बहुत ही दृढ़ता से कहा कि किसे पता है मैडम, एक दिन यह सेट खाली न रहे! इसे सुनकर सब दंग थे। पर उस वक़्त कोई नहीं जानता था कि एक दिन इस बात को कहने वाली लड़की ही इस नल-सेट को भरने के लिए अन्तरिक्ष जायेगी।
12वीं कक्षा अच्छे नम्बरों से पास करने के बाद कल्पना ने इंजीनियरिंग करने का फैसला किया। हालाँकि, शुरू में कल्पना के पिता नहीं चाहते थे कि वे इंजीनियरिंग करें क्योंकि उन्हें लगता था कि यह क्षेत्र लड़कियों के लिए नहीं है। पर कल्पना अडिग थीं और उनके फैसले में उनका साथ दिया उनकी माँ ने।
आखिरकार, उनके पिता भी मान ही गये। जिसके बाद कल्पना चंडीगढ़ गयी, जहाँ उन्होंने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया। अलग-अलग इंजीनियरिंग कोर्स के चुनाव के लिए काउंसलिंग के दौरान उन्होंने एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग चुना। उस समय एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग करने वाली वे अकेली लड़की थी।
उनके चुनाव से हैरान काउंसलर ने उन्हें कुछ और चुनने के लिए कहा, क्योंकि एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग के लिए भारत में ज्यादा मौके नहीं थे। पर कल्पना नहीं मानी। जब उनसे उनका दूसरा विकल्प पूछा गया तो उन्होंने कहा कि एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंगही उनका एकमात्र विकल्प है।
वे फ्लाइट इंजिनियर बनने के लिए दृढ थीं और दुनिया की कोई भी चीज़ उन्हें कोई और विषय चुनने के लिए राज़ी नहीं कर सकती थी।
कल्पना ने कॉलेज में खुद को पढ़ाई के प्रति पूरे मन से समर्पित कर दिया। उस समय उनके कॉलेज में कोई भी लड़कियों का हॉस्टल नहीं था इसलिए वे एक गेराज के ऊपर छोटे से कमरे में रहती और साइकिल से कॉलेज जाती थीं। हालाँकि, आज पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज में लड़कियों का हॉस्टल उन्हीं के नाम पर है। अपने खाली समय में वे कराटे सीखती और अपने पसंदीदा लेखकों की किताबें पढ़तीं थीं।
उन्हें संगीत में क्लासिक रॉक के अलावा सूफी संगीत बहुत पसंद था। कल्पना अक्सर एविएशन के ऊपर लिखी किताबें व मैगज़ीन इकठ्ठी करती और पढ़ती थीं। अपने कॉलेज मैगज़ीन की वे स्टूडेंट एडिटर थीं और इसके अलावा एयरो क्लब और एस्ट्रो सोसाइटी की जॉइंट-सेक्रेटरी थीं।
कॉलेज के पहले साल में ही वार्षिक कांफ्रेंस के दौरान ‘टाइम लैप्स इन सोसाइटी’ जैसा पेपर प्रेजेंट कर उन्होंने अपने शिक्षकों व सीनियर को हैरान कर दिया था। साल 1982 में कल्पना ने अपने बैच में तीसरा रैंक प्राप्त किया और अपने कॉलेज से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग पास करने वाली पहली लड़की बनीं।
उनकी आगे आने वाली कामयाबियों की यह बस एक शुरुआत थी। अपने कॉलेज में एक अच्छे शैक्षणिक रिकॉर्ड और उनकी एयरो और एस्ट्रो सोसाइटी में भूमिका की वजह से यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्सस (अमेरिका) में उनका मास्टर्स डीग्री के लिए चयन हो गया। पर उन्हें उनके परिवार को मनाने के लिए काफी वक़्त लगा। क्योंकि अपनी बेटी को दुसरे देश पढ़ने के लिए भेजना उन दिनों कोई आम बात नहीं थी। इसलिए उन्होंने टेक्सस में सेशन कुछ महीने बाद ज्वाइन किया।
अपनी मास्टर्स डिग्री के दौरान ही उनकी मुलाकात जीन पिएर्रे हैरिसन से हुई। साल 1983 में उन्होंने हैरिसन से शादी की। हैरिसन एक फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर और एविएशन लेखक थे। उन्हीं से कल्पना ने प्लेन उड़ाना सीखा था। उन्हें एकल व बहु इंजन वायुयानों के लिए व्यावसायिक विमानचालक के लाइसेंस भी प्राप्त थे।
1988 में कोलोराडो विश्वविद्यालय बोल्डर से उन्होंने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में पीएचडी की। उसी साल उन्होंने नासा के साथ काम करना शुरू किया। अपनी व्यस्त ज़िन्दगी के बावजूद वे हमेशा भारत में अपने स्कूल और कॉलेज से जुड़ी रहीं।उनके ही प्रयत्नों के कारण टैगोर बाल निकेतन से हर साल दो छात्रों को नासा जाने का मौका मिलता था। ये छात्र अपनी ‘कल्पना दीदी’ के साथ रहते, जिन्हें वे खास तौर पर भारतीय खाना बनाकर खिलाती थीं।
दिसंबर 1994 में, कल्पना चावला ने जॉनसन स्पेस सेंटर की अंतरिक्ष यात्री के 15 वें समूह में एक अंतरिक्ष यात्री उम्मीदवार के रूप में रिपोर्ट किया था। और उसके बाद जो हुआ, वह आज भारत का गौरवशाली इतिहास है।नवंबर 1996 में, उन्हें स्पेस शटल एसटीएस -87 (19 नवंबर से 5 दिसंबर, 1997) पर मिशन विशेषज्ञ और प्राइम रोबोटिक आर्म ऑपरेटर के रूप में नियुक्त किया गया था।
अपने पहले मिशन में, कल्पना ने पृथ्वी की 252 कक्षाओं में 6.5 अरब मील की यात्रा की और अंतरिक्ष में 376 घंटे और 34 मिनट पूरे किए। इसके बाद वे अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की पहली महिला बन गई। पांच साल से भी कम समय में, नासा ने उन्हें दूसरी बार कोलंबिया पर उड़ान भरने के लिए भेजा।
पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज के बच्चों को भेजे अपने आखिरी ईमेल में कल्पना ने लिखा था, “सपनों से लेकर कामयाबी तक का रास्ता बिल्कुल मौजूद है। बस, आपके पास उसे तलाशने का दृष्टिकोण हो, उस पर पहुँचने का हौंसला हो और इस पर चलने की दृढ़ता हो।”
संपादन – मानबी कटोच