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मिलिए, हौसले और जुनून की मिसाल बन रहीं देश की सशक्त महिला एथलीटों से

Indian Women Athletes

इस लेख के प्रायोजक ‘वेलस्पन फाउंडेशन फॉर हेल्थ एंड नॉलेज’ हैं।

सुबह होने से पहले उठना, कड़ी ट्रेनिंग, बदन पर घाव और अनगिनत बलिदान – बात जब किसी एथलीट की हो रही हो, तो मेडल और मेडल के साथ आने वाली शोहरत के पीछे ऐसी अन्य कई चीज़ें छिपी रहती हैं।

लेकिन बात जब किसी महिला एथलीट (Indian Women Athletes) की हो, तो भेदभाव और लिंग के आधार पर लोगों की पुरानी सोच जैसी चुनौतियां दोगुनी हो जाती हैं। ऐसे में केवल कड़ी मेहनत और परिश्रम से बात नहीं बनती, बल्कि मेहनत के साथ-साथ दृढ़ता की भी जरूरत होती है, ताकि इस भेदभाव का जवाब दिया जा सके और वह सब कुछ हासिल किया जा सके, जिनकी वे हकदार हैं। 

‘वेलस्पन फाउंडेशन फॉर हेल्थ एंड नॉलेज’ ऐसी ही महिला एथलीटों के लिए काम कर रहा है। यह फाउंडेशन सुनिश्चित करता है कि पहुंच या अवसर की कमी के कारण, ऐसी प्रतिभायें कहीं गुम न हो जाएँ। ‘वेलस्पन फाउंडेशन फॉर हेल्थ एंड नॉलेज’ ने, भारत में महिला एथलीटों को सशक्त बनाने के लिए, ‘वेलस्पन सुपर स्पोर्ट महिला कार्यक्रम’ (WSSW) शुरू किया है। उनका लक्ष्य ज़मीनी स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक, खेल के विभिन्न चरणों में मेंटरशिप और वित्तीय सहायता के माध्यम से, होनहार युवा महिला खिलाड़ियों का मार्गदर्शन करना तथा उन्हें बढ़ावा देना है।

यह फाउंडेशन उन युवा महिला एथलीटों को प्रोत्साहित करती है, जिन्होंने यह मुकाम हासिल करने के लिए कई चुनौतियों का सामना किया है। आईये आपको ऐसी ही कुछ महिला एथलीटों से मिलवाते हैं:

  1. पलक कोहली

लगभग पांच साल पहले, पलक कोहली स्कूल में अपने दोस्तों के साथ हैंडबॉल खेलने का प्रयास कर रही थीं। क्योंकि, पलक के बाएं हाथ में जन्म से ही विकृति है, इसलिए उनकी एक शिक्षिका ने उन्हें खेल के क्षेत्र में न जाने की सलाह दी थी।

पांच साल पहले, जब पलक का खेल से कोई संबंध नहीं था, तब की बात याद करते हुए पलक कहती हैं, “टीचर ने कहा कि हो सकता है कि खेल शायद मेरे लिए बना ही नहीं है। हो सकता है खेलते हुए मैं अपना दूसरा हाथ भी चोटिल कर लूं। उन्होंने कहा कि मैं पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करूं और बाद में, कॉलेज और फिर नौकरी के लिए दिव्यांग कोटा का उपयोग कर, कोई नौकरी हासिल करूं।”

टीचर द्वारा कही गई बात सुनकर पलक काफी परेशान हो गईं। वह कहती हैं कि उन्हें ये सोच कर काफी हैरानी हुई कि कोई दूसरा उनके भाग्य का फैसला कैसे कर सकता है या फिर कोई उन्हें यह कैसे बता सकता है कि उन्हें क्या करना है।

एक साल बाद, 2017 में उन्होंने बैडमिंटन खेलने की ट्रेनिंग लेनी शुरू की और साल 2020 में, टोक्यो पैरालंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली, दुनिया की सबसे कम उम्र की पैरा-बैडमिंटन खिलाड़ी बन गईं।

18 साल की इस पैरा-एथलीट की ज़िंदगी कैसे बदली, इसके बारे में बात करते हुए पलक बताती हैं, “मैंने बैडमिंटन नहीं चुना, ऐसा लगा जैसे उसने मुझे चुना है। एक दिन, मैं अपनी माँ के साथ एक मॉल से बाहर निकल रही थी, उसी दौरान एक अजनबी ने मेरे बाएँ हाथ के बारे में हमसे कुछ पूछताछ की। इसके बाद, उन्होंने मुझे पैरा-बैडमिंटन के बारे में बताया और यह भी बताया कि मैं इस खेल के लिए कैसे सबसे अच्छी खिलाड़ी बन सकती हूं। उन्होंने मुझे विचार करने के लिए कहा और संपर्क करने के लिए अपना नंबर दिया। हालांकि, यह एक छोटी सी घटना थी, लेकिन इसका मुझ पर गहरा असर हुआ। क्योंकि, वह अजनबी ऐसा कहने वाला पहला शख्स था कि मुझमें, और भी कुछ ज्यादा करने की क्षमता है। महीनों बाद, मैंने उस अजनबी से संपर्क किया और गौरव खन्ना नाम के इस शख्स ने मुझे पैरा-बैडमिंटन की कोचिंग देने के लिए सहमति दी और मेरा जीवन हमेशा के लिए बदल गया।”

आज, वह उसी स्कूल में स्पोर्ट्स कैप्टन हैं और आगामी 2021 ‘टोक्यो पैरालंपिक’ में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए कड़ी ट्रेनिंग ले रही हैं।

2. आरती पाटिल और ज्योति पाटिल

मुंबई की आरती और ज्योति, दो जुड़वा बहने, बेहतरीन तैराक हैं।  उन्होंने महज 23 साल की उम्र में 55 राष्ट्रीय पदक जीते हैं। स्पोर्ट्स में अपना करियर बनाने के लिए, आरती और ज्योति को अपने परिवार से भरपूर समर्थन मिला है और वे दोनों ऐसे परिवार में जन्म लेना, एक वरदान मानती हैं।

अब तक 30 राष्ट्रीय पदक जीतने वाली आरती कहती हैं, “हम लगभग नौ महीने के थे, जब हमारे पिता ने पहली बार हमें तैराकी की शुरुआत कराई। वह एक बेहतरीन तैराक हैं और 2003 में उन्होंने ग्रीस में, 13 घंटे और 10 मिनट में समुद्री मैराथन पूरा किया था। वह हमेशा से हमारे लिए एक प्रेरणा रहे हैं। उन्हें देख कर ही हमने केवल चार साल की उम्र में, समुद्र-तैराकी करने की भी कोशिश की थी।”

पाटिल परिवार में, माता-पिता से लेकर बच्चों तक, सभी शानदार तैराक हैं। इस परिवार के सदस्यों के लिए ‘तैराकी’ एक खेल से कहीं ज्यादा है। यह अनुशासन, कड़ी मेहनत, धैर्य और खेल भावना के साथ जीवन जीने का एक तरीका है।

25 राष्ट्रीय पदक अपने नाम करने वाली ज्योति कहती हैं, “हमारे पिता मुंबई पुलिस में कांस्टेबल हैं। हर दिन, अपनी रात की ड्यूटी पूरी करने के बाद, वह सुबह लौटते हैं और हमारी ट्रेनिंग पर पूरा ध्यान देते हैं। हमारी ट्रेनिंग सुबह 6.30 बजे से शुरू होती है और 11 बजे तक जारी रहती है। शाम छह बजे फिर ट्रेनिंग शुरू होती है और रात के आठ बजे तक चलती है। पिछले कई वर्षों से यही हमारी दिनचर्या रही है और यह अनुशासन ही है, जिसने हमें जीतने में मदद की है।”

3. सुवर्णा राज

39 वर्षीया अंतरराष्ट्रीय पैरा-एथलीट सुवर्णा राज कहती हैं, “जीवन में हर बिंदु पर, मुझे संघर्ष करना पड़ा है। चाहे वह मेरे शैक्षणिक संस्थान में, मेरे जैसे दिव्यांगों के लिए सुगमता या समान अवसर और संसाधनों की व्यवस्था की मांग हो। मेरी ये मांगें, हर किसी के लिए एक बेहतर दुनिया बनाने का एक निरंतर प्रयास है।”

सुवर्णा, देशभर में कई लोगों के लिए एक प्रेरणा हैं। वह एक माँ, पैरा-टेबल-टेनिस खिलाड़ी, एक्टिविस्ट, सामाजिक कार्यकर्ता और एक एक्सेसिबिलिटी काउंसलर भी हैं। इन विभिन्न क्षेत्रों में अपने काम के माध्यम से, वह एक स्थायी प्रभाव बना रही हैं।

‘थाईलैंड पैरा टेबल टेनिस ओपन 2013’ में दो पदक और कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली सुवर्णा कहती हैं, “मुझे बहुत कम उम्र में पता था कि मेरा जीवन कठिन होगा। मैं दो साल की थी, जब मेरे दोनों पैरों में पोलियो हो गया। हालांकि, इसका मतलब था कि अब मुझे व्हीलचेयर का सहारा लेना होगा। लेकिन, इसने मुझे खेल के प्रति अपने जुनून को आगे बढ़ाने से नहीं रोका। मेरे माता-पिता ने मुझे बहुत कम उम्र में ही, एक हॉस्टल में भर्ती कराया था और मैंने वहां पूरा एक दशक बिताया। इस दौरान मैंने खुद पर काम करना जारी रखा। मैं हमेशा खुद को याद दिलाती थी कि यह मुश्किल है लेकिन, असंभव नहीं है।”

उन्होंने कभी अपने काम को सिर्फ टेबल टेनिस कोर्ट तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने सार्वजनिक स्थानों पर दिव्यांगों की सुगमता तथा पहुंच की वकालत करते हुए, कई साल बिताए हैं। इन प्रयासों के लिए उन्हें कई पुरस्कार भी मिले हैं। जिनमें, 2013 में खेल के लिए ‘राष्ट्रीय महिला उत्कृष्टता पुरस्कार’, 2015 में ICONGO द्वारा ‘कर्मवीर पुरस्कार’ और 2017 में प्रतिष्ठित ‘नेशनल सेंटर फॉर प्रमोशन ऑफ एम्प्लॉयमेंट फॉर डिसएबल्ड पीपल (NCPEDP) – Mphasis यूनिवर्सल डिजाइन अवार्ड’ (MUDA) शामिल हैं।

वह कहती हैं, “मैं अपनी खुद की रोल मॉडल हूँ। जब दूसरे मेरी क्षमता पर संदेह करते हैं, तो यह मुझे बेहतर करने और उन्हें गलत साबित करने के लिए प्रोत्साहित करता है!”

इन युवतियों की प्रेरणात्मक कहानियाँ, दृढ़ संकल्प और साहस के साथ जीती गई अनदेखी लड़ाइयों की गवाही हैं।
#LeapBeyond अभियान के माध्यम से, WSSW सकारात्मक बदलाव लाने और प्रेरणा प्रदान करने की उम्मीद कर रहा है। यह एक छात्रवृत्ति कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य अगली पीढ़ी के खिलाड़ियों को सशक्त बनाना है। वर्तमान में, वे 14 विभिन्न खेलों की 27 महिला एथलीटों को छात्रवृत्ति प्रदान कर रहे हैं।

मूल लेख: अनन्या बरुआ

संपादन – प्रीति महावर

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