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पहले खेती करतीं हैं, फिर उस फसल की प्रोसेसिंग घर पर कर मार्केटिंग भी करतीं हैं यह किसान!

स बात में कोई दो राय नहीं हैं कि भारत के कृषि क्षेत्र में महिलाएं, पुरुषों से अधिक काम करतीं हैं। फिर भी हमारे यहाँ किसान शब्द को सदैव पुरुषों से ही जोड़ा गया है। लेकिन अब तस्वीर बदलने लगी है और सदियों से पुरुष-प्रधान रहे इस क्षेत्र में महिला किसान अपने हुनर से एक अनोखी और अनूठी पहचान बना रही हैं।

सबसे अच्छी बात यह है कि अब परिवार से लेकर सरकार तक, हर कोई उनके योगदान को मान्यता दे रहा है और सराहना भी। ऐसी ही एक महिला किसान हैं हरियाणा के झज्जर में नौगाँव की रहने वाली नीलम आर्य, जो अपने परिवार के सहयोग से सफलताओं की सीढ़ी चढ़ रही हैं।

जिस समुदाय में महिलाओं को घर की चौखट लांघने की अनुमति भी नहीं होती, वहां नीलम आर्य न सिर्फ गाँव में बल्कि गाँव से बाहर शहरों में भी अपनी पहचान बना चुकी हैं। इस सब के लिए उनका हर कदम पर हौसला बढ़ाया है उनके  पति प्रवीण आर्य ने।

Neelam Arya

साल 2009 में प्रवीण ने टेलीविज़न पर जैविक खेती के बारे में एक भाषण सुना। यह भाषण उस समय हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल दे रहे थे। उन्होंने लोगों को बताया कि बिना रसायन की एक बूंद भी इस्तेमाल किए किसान खेती कर सकते हैं। उन्होंने जैविक खेती की खासियत बताई। प्रवीण आर्य ने इस बारे में अपने घर पर चर्चा की और तय कर लिया कि अब वह जैविक खेती ही करेंगे।

उनके जानने वालों और गाँव के सभी लोगों ने उनका मजाक बनाया, लेकिन उनके इस फैसले का साथ दिया उनकी पत्नी, नीलम आर्य ने। नीलम ने न सिर्फ अपने पति को आगे बढ़ने के लिए कहा बल्कि खुद दिन-रात खेतों में मेहनत की और अपने फार्म को देश भर में पहचान दिलाई। यह नीलम की ही मेहनत है कि आज वह सिर्फ खेती नहीं कर रही हैं बल्कि अपनी उपज को प्रोसेस करके जैविक उत्पाद ग्राहकों तक पहुँचा रही हैं।

जैसे-जैसे उन्हें सफलता मिली, नीलम को जैविक महिला किसान के तौर पर पहचान मिलने लगी। प्रवीण आर्य ने अपनी पत्नी की तरक्की को कभी भी लोगों की बातों के चलते रूकने नहीं दिया। जिस तरह नीलम ने उनके सपने को समझा, प्रवीण ने भी हर कदम पर अपनी पत्नी को सम्मान के लिए आगे किया।

Neelam and Praveen Arya in their Farm

नीलम ने द बेटर इंडिया को बताया, “हमने धीरे-धीरे नहीं बल्कि एक साथ अपनी पूरी ज़मीन पर जैविक खेती शुरू की। हमें झज्जर के कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) से सीखने में काफी मदद मिली। लेकिन शुरू के दो साल हमारा उत्पादन बहुत ही कम हुआ क्योंकि मिट्टी को जैविक खाद और अन्य उत्पादों को अपनाने में कुछ समय तो लगना था। लोग तो कहते ही थे कि पागल हो गए हैं ये लोग, लेकिन हम अपने फैसले पर कायम थे। हमें बिना किसी की सुने सिर्फ अपने खेतों में मेहनत की और आज हमारी फसल की शुद्धता की गवाही गाँव वाले देते हैं।”

आर्य परिवार की दस एकड़ ज़मीन है, जिस पर उन्होंने पूर्ण रूप से जैविक खेती शुरू की। उन्होंने सबसे पहले अपने खेतों के लिए पशु खरीदे ताकि उनके गोबर और गौमूत्र से खेतों के लिए जीवामृत, जैविक खाद, और घनजीवामृत आदि बनाया जा सके। इसके बाद उन्होंने एक-एक करके अपने खेतों में जैविक तरीकों का उपयोग करना शुरू किया। नीलम बताती हैं कि वह अपनी ज़मीन पर गेहूं, बाजरा, ज्वार, चना, 4-5 तरह की दालें और सरसों आदि की खेती करतीं हैं। इसके अलावा, इसमें से एक एकड़ पर वह जैविक सब्जियां उगातीं हैं।

सब्ज़ियों में सभी तरह की मौसमी सब्जियां शामिल हैं। जैसे लौकी, तोरी, टमाटर, कद्दू, धनिया, पुदीना, ककड़ी, भिन्डी, शिमला मिर्च, मूली, शलजम, चकुंदर, बीन्स आदि। उन्होंने अपनी सब्जियों की खेती के लिए ड्रिप-इरिगेशन सिस्टम लगवाया हुआ है। अपने खेतों में वे मिश्रित खेती कर रहे हैं जैसे बाजरे के अंदर मुंग बो दी, मुंग के अंदर मूंगफली। इससे उन्हें एक ही वक़्त में तीन फसलों का अच्छा उत्पादन मिल जाता है।

They are doing Multi-cropping

वह आगे बताती हैं, “हम अपने खेतों में किसी मशीन का उपयोग नहीं करते, हमारा सभी काम हाथों से होता है। खाद, कीट-प्रतिरोधक आदि बनाने से लेकर फसलों की कटाई तक, सभी कुछ हम खुद करते हैं। 24 घंटों में से हमारे 12-13 घंटे खेतों में ही बीतते हैं। क्योंकि खेती में सफलता तभी है जब हम पूरे दिल से अपने खेतों में मेहनत करते हैं।”

जीवामृत और घनजीवामृत तैयार करने की विधि:

जीवामृत तरल होता है और इसे तैयार करने में 1 हफ्ता लगता है। इसके लिए आप एक ड्रम में पानी लीजिये, इसमें 20 किलो गाय का ताजा गोबर डालिए, 5 लीटर गौमूत्र, 2 किलो गुड़, 2 किलो बेसन, कुछ फल-सब्जियों के गले-सड़े छिलके और कुछ मिट्टी मिलाइए। अब इसे 7 दिनों के लिए छोड़ दीजिए और इसके तैयार होने के बाद आप इसे पानी सिचाई के साथ खेतों में डाल सकते हैं।

घनजीवामृत सूखा होता है। इसके लिए गोबर को छांव में सुखाते हैं और उसमें गुड और बेसन मिलाते हैं। जब यह पूरी तरह से सूख जाता है तो इसे बोरियों में भर लेते हैं। जिस तरह आपने किसानों को अपने खेतों में यूरिया छिड़कते देखा है, वैसे ही हम इसे अपने खेतों में छिड़कते हैं। कीटों से बचने के लिए आप धतुरा, नीम, आक और खट्टी लस्सी का घोल बनाकर स्प्रे कर सकते हैं। बतौर नीलम वैसे यह बहुत ही कम होता है कि जैविक खेती में कोई कीट आएं। यह ज़्यादातर प्रकृति के हिसाब से मैनेज हो ही जाती है।

She processes her produce at home

घर में प्रोसेसिंग:

नीलम बताती हैं कि उनका झज्जर के केवीके में नियमित रूप से आना-जाना रहता है। वहीं पर एक कृषि वैज्ञानिक ने उन्हें सलाह दी कि वे अपने जैविक फसल के उत्पाद बनाएं। इससे उन्हें अच्छा फायदा मिलेगा। नीलम को यह बात जंच गयी। उन्होंने केवीके से ही बाजरे के उत्पाद बनाने की ट्रेनिंग ली। साथ ही, अन्य उत्पादों के बारे में भी सीखा।

“आज हम अपने जैविक और देशी गेहूं का आटा बनाकर बाज़ारों तक पहुंचा रहे हैं। सरसों को भी हम प्रोसेस करके तेल बनाते हैं और फिर ग्राहकों को बेचते हैं। इसी तरह कुछ दूसरे उत्पाद जैसे दलिया, दाल आदि खुद ही तैयार करके हम लोगों को देते हैं,” उन्होंने बताया।

Her products

प्रोसेसिंग का ज़्यादातर काम नीलम घर में हाथ से ही करती हैं। उन्होंने दलिया, बाजरा और दालों की पिसने व दरने के लिए घर में हाथ की चक्की लगवाई हुई है। उन्होंने केवीके से ट्रेनिंग लेने के बाद बाजरे के भी विभिन्न तरह के उत्पाद बनाए। जब उनके उत्पादों का पहला बैच हाथों-हाथ बिका तो उन्हें इस सेक्टर में भी अच्छा भविष्य नजर आ गया। अब वह लगातार बाजरे के लड्डू, बिस्कुट और नमकीन बना रही हैं।

हर एक चीज़ जैविक और प्राकृतिक है और यही उनके उत्पादों के बढ़िया स्वाद का कारण है।

सब्जियों की मार्केटिंग का अनोखा तरीका:

Marketing in School

नीलम के प्रयासों की सराहना राष्ट्रीय स्तर पर हो चुकी है। उन्हें राज्य के साथ-साथ केंद्र सरकार से भी कृषि के लिए सम्मान प्राप्त है। नीलम कहती हैं कि साल 2016 में जब उन्हें प्रधानमंत्री ने अवॉर्ड दिया तो इसके कुछ दिन बाद उन्हें गुरुग्राम के एक स्कूल ने संपर्क किया। “यह हेरिटेज पब्लिक स्कूल है और वहां की एक टीचर को हमारे बारे में पता चला। उन्होंने मुझसे बात की और उनकी एक टीम हमारे यहाँ खेतों पर भी आई। हमारा काम अच्छे से देखने के बाद उन्होंने हमसे पूछा कि अगर हम हफ्ते में एक बार उनके यहाँ जैविक सब्जियों की मार्किट लगा सकते हैं? हमारे लिए तो यह अच्छा मौका था ग्राहकों से सीधे जुड़ने का तो हमने हां कर दी,” उन्होंने आगे बताया।

तब से वह लगातार हर शनिवार को हेरिटेज पब्लिक स्कूल में जैविक सब्जियों की स्टॉल लगातीं है। स्कूल ने बच्चों के माता-पिता को अलग-अलग व्हाट्सअप ग्रुप में नीलम से जोड़ा हुआ है। नीलम पहले ही सब्जियों की लिस्ट भेज देती हैं और जिसे जितनी चाहिए वह उस हिसाब से बता देता है। कुछ लोग जो स्कूल नहीं आ पाते, उनके यहाँ वे होम-डिलीवरी करवा देते हैं। इसी तरह उनके अन्य जैविक उत्पादों की भी बिक्री हो रही है।

Their stall

ग्राहकों के बीच बढ़ती मांग को देखकर नीलम ने अपने साथ और भी किसानों को जोड़ा। आज उन्होंने 8 किसानों के साथ मिलकर समूह बनाया हुआ है ताकि ग्राहकों की मांग की आपूर्ति हो जाए और किसानों को भी फायदा हो।

दूसरों भी सिखा रहे जैविक खेती के गुर:

नीलम बताती हैं, “स्कूल प्रशासन ने कुछ समय तक हमारे काम को काफी देखा और समझा। इसके बाद उन्होंने तय किया कि हम उनके बच्चों को भी खेती की शिक्षा दें। महीने में 3-4 क्लास वे हमसे करवाते हैं बच्चों की। पहले तो उन्होंने गुरुग्राम में ही ज़मीन ली थी लेकिन अब बच्चों को हमारे खेतों पर भेजा जाता है।”

बच्चों की उत्सुकता को देखकर नीलम को भी उन्हें सिखाना काफी अच्छा लगता है। उनके खेत का एक हिस्सा इन बच्चों के लिए खाली रखा जाता है। बच्चों के मन-मुताबिक वहां सब्जियां लगाई जातीं हैं जिनके बीज बच्चे खुद रोपते हैं। फिर दूसरी क्लास में निराई-गुड़ाई करते हैं और इस तरह से प्रक्रिया चलती है। वह बताती हैं कि बहुत से छात्रों के लिए यह अनोखा अनुभव है। उन्हें आज तक लगता था कि सब्जियां दुकानों से आतीं हैं लेकिन अब उन्हें पता चला कि मूली ज़मीन के अंदर उगती है।

Kids at their Farm

इसके अलावा, पिछले कई सालों से नीलम और प्रवीण रोहतक में किसानों को हर रविवार जाकर मुफ्त जैविक खेती की ट्रेनिंग देते हैं। जब उनसे पूछा गया कि अब तक कितने किसान हो गए होंगे जिन्हें ट्रेनिंग दी गई तो उन्होंने कहा, “हम ऐसे गिनते ही नहीं कितने भी आ जाएं। बहुत से लोग तो लगातार आ रहे हैं और कुछ नए चेहरे होते हैं। हमें तो हमारे काम से मतलब है, हम ट्रेनिंग देते हैं और किसी किसान भाई को मदद की ज़रूरत है तो हमेशा तैयार रहते हैं।”

नीलम के लिए पैसे कमाने से भी ज्यादा ज़रूरी है कि उनके उत्पाद एकदम शुद्ध, स्वस्थ और जैविक हों। उनके ग्राहक उन पर भरोसा करते हैं और वह हर पल यही कोशिश करतीं हैं कि यह भरोसा जीवन भर कायम रहे।

She has got several awards

द बेटर इंडिया इस महिला किसान को सलाम करता है जो अपने साथी किसानों और आने वाली पीढ़ी को भी स्वस्थ खेती से जोड़ रही हैं।

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यदि आप नीलम आर्य से संपर्क करना चाहते हैं तो उन्हें 9991044972 पर कॉल कर सकते हैं!


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