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जस्टिस एम. फातिमा बीवी: वह महिला जो न केवल भारत में बल्कि एशिया में किसी भी सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज बनी!

जस्टिस एम. फातिमा बीवी

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट में एक ऐतिहासिक फैसला लिया गया, जब इंदु मल्होत्रा को सुप्रीम कोर्ट की न्यायधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की गयी। पिछले 68 सालों में सुप्रीम कोर्ट में केवल छह महिला जज ही रही हैं।

जब चारों तरफ सुर्ख़ियों में इस फैसले की वाहवाही हो रही थी तो कुछ लोगों ने उस शख्शियत को याद किया, जिसके संघर्ष ने महिला न्यायधीशों के लिए सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे खोले थे। वह औरत, जो सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज बनी थी।

फातिमा बीवी, जिन्हें उस समय वकालत जैसे प्रोफेशन को चुनने के लिए ही ना जाने कितनी सामाजिक बाधायों को पार करना पड़ा। लेकिन फातिमा बीवी ने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा और उन्होंने भारत में वकालत के क्षेत्र में महिलायों के लिए एक मिसाल कायम की।

आज द बेटर इंडिया के साथ जानिए फातिमा बीवी की प्रेरणादायक कहानी!

जस्टिस एम. फातिमा बीवी

30 अप्रैल, 1927 को पूर्ववर्ती राज्य त्रवंकोर (अब केरल) के पत्तनम्तिट्टा में अन्नवीतिल मीरा साहिब और खदीजा बीवी के यहाँ पैदा हुई। फातिमा ने त्रिवेंद्रम लॉ कॉलेज से कानून की पढाई की। अपनी डिग्री के पहले वर्ष में वे अपनी कक्षा की केवल पांच लड़कियों में से एक थीं। दुसरे वर्ष में फातिमा सहित केवल तीन ही लड़कियां रह गयी थीं।

हालांकि, उस समय कोई नहीं जानता था कि फातिमा नाम की यह आम-सी लड़की आगे चलकर इतिहास रचेगी।

साल 1950 में भारत के बार काउंसिल की परीक्षा को टॉप करने वाली फातिमा पहली महिला थीं। उसी वर्ष नबम्वर में उन्होंने एक वकील के रूप में पंजीकरण किया और केरल की सबसे निचली न्यायपालिका से अपनी प्रैक्टिस शुरू की। हालांकि, यह बात उस जमाने में बहुत से लोगों को जमी नहीं, जो अक्सर कोल्लम कोर्ट में हिज़ाब फनी हुई इस महिला को देखकर अपनी आँखें चढ़ा लेते थे।

पर किसी की भी तनी हुई आँखें फातिमा का रास्ता न रोक पायीं। अगले तीन दशकों में, सुप्रीम कोर्ट की जज नियुक्त होने से पहले केरल की कई अधीनस्थ न्यायिक सेवाओं में उन्होंने ड्यूटी की। उन्होंने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, जिला एवं सत्र न्यायाधीश और आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण के न्यायिक सदस्य के रूप में अपनी सेवाएँ दीं। जिसके बाद साल 1983 में उन्हें केरल हाई कोर्ट की जज नियुक्त किया गया।

जस्टिस एम. फातिमा बीवी

साल 1989 में, केरल हाई कोर्ट की जज के पद से सेवानिवृत्त होने के छह महीने बाद फातिमा बीवी को अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट की न्यायधीश नियुक्त किया गया। भारत के लिए यह गर्व का क्षण था, क्योंकि इस एक पल ने भारत की सर्वोच्च न्यायपालिका में सर्वोत्तम पदों पर भारतीय महिलायों के लिए रास्ते खोल दिए थे।

किसी भी उच्च न्यायपालिका में नियुक्त होने वाली पहली मुस्लिम महिला न्यायाधीश और साथ ही, उन्होंने एक एशियाई राष्ट्र के सर्वोच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश होने का गौरव भी अर्जित किया!

वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे के अनुसार, अपने शानदार कार्यकाल के दौरान, न्यायमूर्ति फातिमा बीवी बहुत ही सुलझी हुई और हमेशा संतुलित रहीं। वे जब भी किसी मुद्दे पर फैसले के लिए बैठती तो उस केस से जुड़ी हर एक छोटी-बड़ी बात उनको पता होती। वे उस केस का पूरा इतिहास पढ़कर कोर्ट आती थीं।

1992 में सेवानिवृत्त होने के बाद, बीवी ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य के रूप में कार्य किया। 1997 में, उन्हें तमिलनाडु के गवर्नर के रूप में नियुक्त किया गया, जिसका कार्यकाल 2001 में समाप्त हुआ।

1989 में फातिमा बीवी की नियुक्ति के बाद से, भारत के सर्वोच्च न्यायालय में केवल छह और महिला न्यायाधीश (इंदु मल्होत्रा ​​सहित) नियुक्त की गयी हैं। इसके अलावा, केवल दो बार हुआ है जब एक ही समय में दो से अधिक महिला न्यायाधीश बैठी हैं।

जैसा कि फातिमा ने द वीक के साथ एक साक्षात्कार में कहा था, न्यायाधीशों के पद पर महिलाओं की संख्या बढ़ाने की जरूरत है और उच्च न्यायपालिका में महिलाओं की संख्या बढ़ाने के लिए आरक्षण पर विचार करना भी आवश्यक है।

“बार और बेंच, दोनों ही क्षेत्रों में अब बहुत सी महिलाएं हैं। हालांकि, उनकी भागीदारी कम है। उनका प्रतिनिधित्व पुरुषों के बराबर नहीं है। इसके लिए ऐतिहासिक कारण भी है …कि महिलाओं ने देर से यह क्षेत्र चुना। महिलाओं को न्यायपालिका में बराबरी का प्रतिनिधित्व करने में समय लगेगा,” फातिमा ने कहा।

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मूल लेख: संचारी पाल


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