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प्रोडक्शन इंजिनियर श्रद्धा ने अपनी कंपनी से अपने गाँव की महिलाओं और किसानों की बदली किस्मत!

6 साल पहले प्रोडक्शन इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुकी श्रद्धा देशमुख को जब उनके पति, रोहित ने कहा कि अब उन्हें उनके गाँव वापस जाना होगा, तो श्रद्धा को लगा कि यह उनके करियर का अंत होगा।

पर आज वही श्रद्धा ‘उत्कर्ष एग्रो इंडस्ट्री एंड ट्रेनिंग सेंटर’ नामक कंपनी चलाती हैं, जहाँ उनके गाँव की कई ज़रूरतमंद महिलाओं को रोज़गार मिल रहा है और साथ ही किसानों की आमदनी भी बढ़ रही है।

 

महाराष्ट्र के नांदेड जिले में साग्रोली गाँव में श्रद्धा के पति, रोहित देशमुख ‘संस्कृति संवर्धन मंडल’ नामक संस्था में प्रोजेक्ट डायरेक्टर हैं और आदिवासियों के उल्मुलन का कार्य करते हैं।

साग्रोली आने से पहले श्रद्धा एक पॉलिटेक्निक कॉलेज में पढ़ाती थी। पर यहाँ इस छोटे से गाँव में उनके लिए करने को कुछ भी नहीं था। ऐसे में उनके पति और पूरे परिवार ने उन्हें अपना समय व्यतीत करने के लिए संस्था में जाने की सलाह दी और कुछ करने के लिए खूब प्रोत्साहित किया।

बाएं – साग्रोली में श्रद्धा का संयुक्त परिवार . दायें – श्रद्धा और उनके पति रोहित

“मेरे दोस्त जहाँ मल्टीनेशनल कंपनियों में काम कर रहे थे और विदेश जाने की तैयारियां कर रहे थे, वहीं मैं यहाँ इस छोटे से गाँव में वापस आ गयी थी। पर मुझे पता नहीं था कि शायद यहीं छोटा सा गाँव मेरे जीवन को नयी राह देगा,” श्रद्धा कहती हैं।

अपना समय व्यतीत करने के लिए श्रद्धा संस्था के स्कूल के बच्चो को पढ़ाने गयी, जहाँ बच्चों की काबिलियत देख उन्होंने उन्हें एक विज्ञान प्रतियोगिता में भाग लेने को कहा। इस प्रतियोगिता में उन्हें पूरे महाराष्ट्र में प्रथम स्थान मिला। इसके बाद से श्रद्धा नियमित रूप से इन बच्चों को पढ़ाने लगी।

‘संस्कृति संवर्धन मंडल संस्था में जाते हुए एक दिन वहां के कृषि विज्ञान केंद्र में हो रहे एक वर्कशॉप के बारे में पता चला, जहाँ किसानों को सोयाबीन से सोया-दूध बनाना सिखाया जा रहा था। कुछ नया सीखने की ललक लिए श्रद्धा भी इस वर्कशॉप में चली गयी। यहाँ उन्हें पता चला कि सोयाबीन स्वास्थ्य के लिए कितना गुणकारी है और सोया-दूध को तैयार करने में किसी विशेष मशीन या लागत की भी ज़रूरत नहीं होती।

“मुझे यह काम इतना दिलचस्प लगा कि मैंने अगले ही दिन एक किलो सोयाबीन से सोया-दूश बना डाला,” श्रद्धा ने बताया।

इसके बाद इस सोया-दूध को स्वादिष्ट बनाने के लिए श्रद्धा ने इसमें चॉकलेट फ्लेवर मिलाया तथा इसे ठंडा करके संस्था के अनाथालय में ले गयीं।

“स्वाद के मामले में बच्चे कभी झूठ नहीं बोलते इसलिए मैं यह दूध सबसे पहले उन्हें चखाना चाहती थी,” श्रद्धा ने हँसते हुए बताया।

अनाथालय के हर एक बच्चे को यह दूध इतना पसंद आया, कि वे इसे दोबारा मांगने लगे। इससे श्रद्धा को इस काम को शुरू करने का हौसला मिला।

ऐसे में उन्हें शांता दीदी की भी याद आई, जो उनके घर काम मांगने आई थी।

“हमारे गाँव में ज़्यादातर लड़कियों की शादी जल्दी करा दी जाती है। कई बार इनके पति नशे के आदी होते हैं और इन्हें मारते पीटते भी है। ऐसी महिलाएं अपनों बच्चों को लिए वापस गाँव आ जाती हैं और यहीं दिन भर मेहनत मजदूरी करके अपने बच्चो को पालती हैं। इन्हीं में से एक शांता दीदी भी थी, जो एक दिन हमारे घर काम मांगने आई थी। संस्था उनके लिए काम तो कर रही है, पर मैं भी उनके लिए कुछ करना चाहती थी,और ज़्यादा रोज़गार के अवसर बनाना चाहती थी,” श्रद्धा बताती हैं।

17 जून 2013 को शांता दीदी को साथ लिए, श्रद्धा सोया-दूध बनाने के इस काम में जुट गयी।

 

“मैंने अपने घर का ही मिक्सी लिया, एक बड़ा बर्तन लिया और चुल्हा तो था ही। इसके साथ ही शुरू हो गया हमारा कारोबार,” श्रद्धा मुस्कुराते हुए कहती हैं।

श्रद्धा ने गाँव के आंगनवाड़ी, खेल अकादमी और संस्था के हॉस्टल में भी बात की और कहा कि बस एक महीने के लिए वे इसे बच्चों को दे और फर्क देखे।

खेल अकादमी के डायटीशियन ने एक महीने बाद इतने अच्छे नतीजे दिए कि श्रद्धा को आगे के लिए भी ऑर्डर्स मिल गए।

श्रद्धा और शांता मिलकर हर दिन दस से बारह लिटर सोया-दूध बना लेते, जिसे वे कम से कम कीमत पर बेचती।

“शुरुआत में मैंने इसका दाम उतना ही रखा, जिससे इसकी लागत और शांता दीदी की तनख्वाह का खर्चा निकल आये। कोई मुनाफ़ा नहीं था पर मुझे इस बात की तसल्ली थी कि मैं कम से कम एक महिला को रोज़गार दे पा रही हूँ। वह भी एक साफ़ सुथरे और सुरक्षित परिवेश में,” श्रद्धा की आवाज़ में इस बात का सुकून साफ़ झलक रहा था।

जल्द ही श्रद्धा ने शाहू को भी अपने साथ जोड़ लिया, जो अपने पिता की मृत्यु के बाद अपनी माँ और 6 बहनों का पेट पालने के लिए काम ढूंढ रही थी। अब यह तिकड़ी दिन के 20-25 लिटर सोया-दूध बनाने लगी। साथ ही मांग बढ़ने से इसके दाम भी अच्छे मिलने लगे।

“हाथ से सोयाबीन का दूध निकालना आसान नहीं होता। उबालते हुए इसे लगातार हिलाते रहना पड़ता है। एक बार तो मुझे यह दूध कुछ लोगों को चखाना था, पर उसी दिन सारा दूध जल गया। मैं बहुत हताश हो गयी थी। पर फिर शांता दीदी और शाहू के चेहरे मुझे हारने नहीं देते,” श्रद्धा याद करते हुए बताती हैं।

दो साल तक ये तीनों महिलाएं इसी तरह मेहनत से काम करती रहीं और फिर एक चमत्कार हुआ। श्रद्धा के काम से प्रभावित होकर यहाँ के जिला कलेक्टर ने उन्हें एक सोया-दूध बनाने की मशीन उपहार स्वरुप दी।

 

“शांता दीदी पढ़ी लिखी नहीं थी इसलिए उन्हें मशीन चलाने में डर लगता था। पर हमारी शाहू दसवीं पास थी और हिम्मत वाली भी, उसने खुद भी इस मशीन को चलाना सीखा और 15 दिन के अन्दर ही शांता दीदी को भी सीखा दिया।

अब उत्पाद अच्छा होने लगा था पर पैकेजिंग की दिक्कत थी। दूध को ज़्यादा देर तक रखना ठीक नहीं होता और टेट्रा पैक की पैकिंग करने जितना अभी भी मुनाफ़ा नहीं हो रहा था।

ऐसे में श्रद्धा ने इसी मशीन से पनीर निकालने की शुरुआत की। पनीर की पैकिंग भी आसान थी और इसकी मांग भी ज़्यादा थी। श्रद्धा अब आस-पास के होटलों, ढाबों, मेस, और यहाँ तक कि गृहणियों को भी अपना पनीर बेचने लगी।

2015 में ही उन्हें एक और मशीन के बारे में जानकारी मिली। इस मशीन का आविष्कार हरियाणा के एक कृषि-वैज्ञानिक धरमवीर खाम्बोज ने किया था। यह एक थ्री-इन-वन मशीन थी, जिससे सब्ज़ी, फलों तथा फूलों का गूदा निकाला जा सकता था, उन्हें बांटा जा सकता था और साथ ही लगातार हिलाकर मिलाया भी जा सकता था।

श्रद्धा हमेशा से स्थानीय किसानों की भी मदद करना चाहती थी, इसके लिए यह मशीन बहुत काम आती, पर इस मशीन को खरीदने जीतने पैसे उनके पास नहीं थे। ऐसे में एक बार फिर संस्था ने उन्हें लोन देकर यह मशीन दिलवाई।

इस मशीन से भी श्रद्धा ने कमाल कर दिखाया और दो सालों में ही संस्था के सारे पैसे लौटा दिए।

“उस समय टमाटर की कीमत बहुत कम हो गयी थी। किसानों का माल बिक भी नहीं रहा था। हमने उनसे माल खरीदा और टमाटर का सौस बनाया,” श्रद्धा ने बताया।

इसके अलावा श्रद्धा ने इस मशीन से एलोवेरा जेल, गुलाब शरबत आदि का भी उत्पाद शुरू कर दिया।

इसके बाद उन्होंने नासिक से एक सोलर ड्रायर मशीन भी खरीदी, जिससे वे किसानों के अतिरिक्त उत्पादों को सुखाकर रख सकती हैं और कुछ भी नष्ट नहीं होता।

“कई किसान हमारे पास यह समस्या लेकर आते थे कि उनकी मेथी नहीं बिकी, हमने इस सोलर ड्रायर से मेथी को सुखाकर कसूरी मेथी बनाना शुरू किया, जिसके अब उन्हें अच्छे दाम मिलते हैं,” वे बताती हैं।

सफलता मिलने के बावजूद, श्रद्धा प्रयोग करना कभी भी नहीं छोड़ती। उनका अगला प्रयोग था सीताफल!

“मैं अक्सर पुणे जाती हूँ। वहां मुझे पता चला कि पुणे के पास एक गाँव है, जहाँ सिर्फ़ सीताफल की खेती होती है और सीताफल का गूदा वहीं से आता है। इससे मुझे इस प्रोडक्ट का आईडिया मिला। हमारे यहाँ भी सीताफल की खेती होती है और पथरीली ज़मीन होने की वजह से इसमें नैसर्गिक मिठास ज़्यादा होती है। मैंने सोचा क्यूँ न इसे भी ट्राय करूँ।“

करीब एक साल तक श्रद्धा हाथ से ही सीताफल का गूदा निकलती रही और उनके 50 किलो सैंपल की बिक्री भी हो गयी।

उन्होंने अब एक सीताफल का गूदा निकालने वाली मशीन भी खरीद ली है। और उन्हें एक आइसक्रीम कंपनी से इसके लिए पहला ऑर्डर भी मिल चुका है।

 

“हमारे सीताफल के पल्प का निरिक्षण करने के बाद, उन्होंने बताया कि हमारा पल्प बिलकुल शुद्ध है और मीठा भी। कोई भी केमिकल इस्तेमाल न करने की वजह से इसका प्राकृतिक स्वाद लम्बे समय तक बना रहता है,” श्रद्धा ख़ुशी से बताती हैं।

गाँव में और महिलाओं को रोज़गार दिलाने के लिए श्रद्धा ने पापड़ बनाना भी शुरू कर दिया है। इसके लिए वे पापड का आटा तैयार करके सभी महिलाओं को घर-घर जाकर दे देती हैं। ये महिलाएं इसे बेलकर श्रद्धा को वापस कर देती हैं। इससे इन महिलाओं की घर बैठे-बैठे ही अतिरिक्त आमदनी हो जाती है।

श्रद्धा की कंपनी अब 18 प्रोडक्ट्स बनाती हैं और मौसमी फलों और सब्जियों के हिसाब से उत्पाद भी करती हैं। वे गाँव की कई महिलाओं और युवाओं को अब रोज़गार देने लगी हैं। उनके ट्रेनिंग सेंटर से अब तक 1500 महिलाएं ट्रेनिंग भी ले चुकी हैं। साथ ही उन्हें एक फार्मर प्रोडूसर कंपनी का डायरेक्टर भी बनाया गया है, जहाँ वे जैविक खेती करने और अपने उत्पाद से प्रोडक्ट बनाने के लिए किसानों को प्रेरित करती हैं।

“हाल ही में मुझे एक कार्यक्रम में ‘युवा महिला उद्योगी’ के तौर पर बुलाया गया था, वह मेरे लिए सबसे ख़ुशी का क्षण था। अपनी शिक्षा का उपयोग मैं वहां कर पा रही हूँ, जहाँ इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है, इससे बढ़कर मेरे लिए क्या हो सकता है,” श्रद्धा मुस्कुराते हुए यह कहकर विदा लेती हैं!

श्रद्धा देशमुख से संपर्क करने के लिए आप उन्हें  9158597766 पर कॉल कर सकते हैं अथवा shraddha@ssmandal.net पर मेल कर सकते हैं!


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