Site icon The Better India – Hindi

खंडहर से की थी शुरुआत, आज 5 स्टार होटल में बिकती हैं इन ग्रामीण महिलाओं की कूकीज़!

रियाणा हमारे देश का एक ऐसा राज्य है, जिसका नाम लेते ही कन्या भ्रूण हत्या की भयावह तस्वीर सामने उभरती है। एक ऐसा राज्य जहाँ लड़कियों का जन्म लेना एक बुरी खबर माना जाता था और जहाँ बेटी के पैदा होने से पहले उसे गर्भ में ही मार दिया जाता था। लेकिन ख़ुशी की बात यह है कि देश में सेक्स रेश्यो में सबसे निचले पायदान पर रहने वाला यह राज्य अब बदल रहा है और इसे बदलने का श्रेय भी वहाँ की महिलाओं को ही जाता है।

 

पढ़ें, एक ऐसी हिम्मती महिला की कहानी, जो जीवन की हर मुश्किल का डट कर सामना करते हुए ख़ुद तो एक सफल उद्यमी बनी ही, दूसरी महिलाओं को भी अपने साथ जोड़ कर उन्हें आगे बढ़ने का मौक़ा दिया।

पूजा शर्मा

 

यह कहानी है गुरुग्राम से मात्र 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम चंदू बुडेरा की पूजा शर्मा की। झज्जर के एक छोटे-से गाँव बाकरा में पली-बढ़ी पूजा को प्राथमिक शिक्षा के बाद आगे पढ़ने का मौक़ा नहीं मिला। पूजा के पिता एक फौजी थें और उनकी माँ गाँव में खेती करने के साथ-साथ कपड़ों की सिलाई का काम भी किया करती थीं। माँ से ही पूजा ने मेहनत करना सीखा था और लोगों की सेवा का संस्कार उन्हें अपने पिता से मिला था। जब वह छोटी थीं, तभी से गरीब लोगों के फटे-पुराने कपड़े सिल दिया करती थीं।

 

पर गाँव की दूसरी लड़कियों की तरह ही पूजा भी कम उम्र में ही ब्याह दी गई थीं। शादी के बाद जब वह ससुराल पहुँचीं, तो वहां भी उसे संघर्ष ही नसीब हुआ। 25 बरस की होते-होते, पूजा 3 बच्चों की माँ बन चुकी थीं। पति की आमदनी कम थी और परिवार की ज़रूरतें ज्यादा।

 

पूजा अपने परिवार की बिगड़ती माली हालत को सुधारना चाहती थीं। इसके लिए उन्होंने कुछ करने का फैसला किया। उन्होंने शिकोहपुर गाँव स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में जाकर फूड प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग ली और सोया नट्स बनाना शुरू किया। अभी तक देश में फूड प्रोसेसिंग के नाम पर महिलाओं को सिर्फ़ परम्परागत चीजें बनाने की ही ट्रेनिंग दी जाती थी, जैसे आचार, पापड़ और बड़ियाँ आदि। लोगों को लगता था कि घरेलू महिलाएँ सिर्फ घरेलू चीजें ही बना सकती हैं। पूजा ने इसी सोच को बदलने की ठानी और फूड प्रोसेसिंग को अगले मुकाम तक ले जाने का संकल्प लिया।

 

उन्होंने गाँवों में पैदा होने वाले अनाज से शहरी लोगों की ज़रूरतों और पसंद के हिसाब से फूड प्रोडक्ट बनाने की शुरुआत की। उन्होंने गेहूँ, सोयाबीन, बाजरा और रागी से हेल्दी स्नैक्स बनाना शुरू किया। इससे किसानों को भी फायदा होने लगा। पूजा के आस-पास की महिलाएँ भी गरीबी की मार झेल रही थीं। उन्होंने भी कमर कस कर मेहनत करने का फैसला किया और पूजा के साथ मिल कर सन् 2013 में अपना पहला स्वयं सहायता समूह बनाया। इसमें 10 महिलाएँ मिल कर काम किया करती थीं। धीरे-धीरे पूजा का समूह नए-नए उत्पाद बनाने लगा। फिर इस समूह ने हरियाणा राज्य आजीविका मिशन से जुड़ कर अपने काम को आगे बढ़ाया। इसके जरिए ये महिलाएँ गाँव में तैयार किए गए अपने सामान को आजीविका मेलों में ले जाकर बेचने लगीं।

 

आज पूजा के साथ इस काम में आस-पास के गाँवों की लगभग 150 महिलाएँ जुड़ गई हैं।

पूजा शर्मा (दायें से पहली)

 

पूजा की मेहनत और लगन को देखते हुए एक एनजीओ सिटी फाउंडेशन ने इन्हें कुकीज़ बनाने की फैक्टरी लगाने में मदद की। फैक्टरी के लिए महिलाओं के इस समूह को ज़मीन चाहिए थी। पर जिस गाँव में महिलाएँ बिना घूँघट के घर की दहलीज़ तक पार नहीं कर सकती थीं, आज वो महिलाएँ फैक्टरी चलाने की बात कर रही थीं तो विरोध होना लाज़िमी था। पूरे गाँव ने इन महिलाओं का विरोध किया और गाँव में कहीं भी इनको फैक्टरी लगाने की जगह नहीं दी गई। ये महिलाएँ हिम्मत हार जाएँ और काम को बंद कर दें, इसके लिए इन्हें खूब परेशान किया जाता। लोग इनका सड़कों पर चलना मुश्किल कर देते। इनकी हंसी उड़ाते, लेकिन इन महिलाओं ने हार नहीं मानी।

 

पूजा के गाँव में परिवार की एक हवेली थी, जो खंडहर में बदल चुकी थी। इस खंडहरनुमा हवेली को भुतहा माना जाता था और गाँव के लोग वहाँ जाने से डरते थे। पूजा ने उस खंडहर को अपनी फैक्टरी लगाने के लिए चुना।जहाँ लोग दिन के उजाले में भी जाने से डरा करते थे, पूजा ने रात-दिन एक कर, उस जगह की साफ़-सफाई की और कुछ ही दिनों में उस खंडहर को फैक्टरी लगाने लायक बना दिया।

 

 

पूजा और उनके समूह की महिलाओं को सिटी फाउंडेशन के लोगों ने कुकीज़ की फैक्टरी लगाने में हर तरह से मदद की। गाँव की इन कम पढ़ी-लिखी महिलाओं को पांच सितारा होटलों में काम करने वाले शेफ से कुकीज़ बनाने की ट्रेनिंग दिलवाई गई। मार्केटिंग के पेशेवर लोगों ने इन महिलाओं को मार्केटिंग के गुर सिखाए। क्वालिटी कंट्रोल, पैकेजिंग से लेकर प्रोडक्ट की ब्रांड बिल्डिंग तक का काम इन महिलाओं ने खुद संभालना सीखा। इन महिलाओं ने बड़े ही धैर्य और लगन के साथ फाइनेंस की भी ट्रेनिंग ली।

 

अब बिना किसी बिचौलिए की सहायता के अपने बनाए उत्पाद को सीधे बड़े स्टोर को बेचना इन महिलाओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी। सिटी फाउंडेशन ने इन महिलाओं को अपनी कुकीज़ बड़े-बड़े रिटेल स्टोर, बिग बाजार और पांच सितारा होटलों तक सप्लाई करना सिखाया।

 

पूजा और उनके समूह द्वारा तैयार की गई ये स्वादिष्ट कुकीज़ कुछ चुनिन्दा पांच सितारा होटलों में गरमागरम कॉफ़ी के साथ परोसी जाती हैं और लोगों द्वारा खासी पसंद भी की जाती हैं। पहली बार अगस्त सन् 2017 में इन महिलाओं ने अपनी फैक्टरी में प्रोफेशनल तरीके से जिंग एंड ज़ैस्ट कुकीज़ का उत्पादन शुरू किया।

पूजा और उनकी टीम की बनायी हुई कूकीज़

 

पूजा अपने उत्पादों को लेकर जितनी आधुनिक सोच रखती हैं, उन्हें बनाने के लिए उतने ही परम्परागत संसाधनों पर भरोसा करती हैं।

वह कहती हैं, “हमारे देश में स्त्रियों की साक्षरता की बढ़ती दर से एक बात बहुत अच्छी हुई है कि लोगों में जागरूकता बढ़ी है। आज हर घर की गृहिणी को अच्छी तरह पता है कि परिवार के स्वास्थ्य के लिए कौन कौन-से पोषक तत्व ज़रूरी हैं। उन्हें पता है कि मैदा से बने आइटम स्वास्थ्य के लिए ख़राब हैं, लेकिन इसका बेहतर विकल्प बाज़ार में नहीं है। मैंने इसे ही अपनी ताक़त बनाया। मैंने रागी, बाजरा, ज्वार आदि से कुकीज़ बनाई। बच्चों की पसंद को ध्यान में रखते हुए मैंने उसमें कोको और चोको चिप्स का फ्यूज़न भी किया, जिसे सबने बहुत पसंद किया। अब हम बाजरा खिचड़ी, बाजरे के लड्डू, गेहूँ और चना का सत्तू भी बनाते हैं।“

 

कल तक जिन्हें सब एक आम ग्रामीण महिला के रूप में देखते थे, आज वे अपने गाँव में शान से सिर उठा कर जीती हैं और उन्हें सोशल आंत्रप्रेन्योर कहा जाता है।

 

पूजा शर्मा को उनके काम के लिए कई सम्मानों से नवाज़ा गया है। इनमें पंडित दीनदयाल उपाध्याय पुरस्कार और पूसा भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा दिया जाने वाला कृषक पुरस्कार शामिल है। पूजा शर्मा को प्रदेश के मुख्यमंत्री और राज्यपाल द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है।

आज भी आस-पास के ग्रामीण इलाकों से महिलाएँ पूजा के पास सफल उद्यमी बनने के गुर सीखने आती हैं।

पूजा कहती हैं-“देश की ग्रामीण महिलाओं में मेहनत करने का जज्बा तो कूट-कूट कर भरा होता है और हिम्मत की भी कोई कमी नहीं होती, बस उन्हें ज़रूरत होती है थोड़े मार्गदर्शन की, जिसके सहारे ये कम पढ़ी-लिखी ग्रामीण महिलाएँ अपने सुनहरे भविष्य की इबारत खुद लिख सकें।“

पूजा शर्मा से संपर्क करने के लिए आप उन्हें 8383815485/ 9992029845 पर संपर्क कर सकते हैं!

संपादन – मनोज झा 


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर भेज सकते हैं।

Exit mobile version