1970 और 80 के दशक के उत्तरार्ध में असम में अवैध प्रवासी नागरिकों के मुद्दे को लेकर संघर्ष चल रहा था। मंदिरा बरूआ उस समय महज 16 साल की थीं, जब उनके स्कूल के प्रिंसिपल ने जोरहट में उनके परिवार में विवाह का प्रस्ताव भेजा। वह तेजपुर के एक समृद्ध परिवार से थीं। लड़का प्रशानिक अधिकारी था और उसका परिवार भी काफी प्रगतिशील था।
मंदिरा की अभी शादी की उम्र नहीं हुई थी लेकिन उन्होंने कहा कि मंदिरा को आगे की शिक्षा पूरी करायी जाएगी और उच्च शिक्षा के लिए भी भेजा जाएगा। उन्होंने सलाह दी कि राज्य में अस्थिरता के माहौल को देखते हुए विवाह करने का फैसला बेहतर होगा।
मंदिरा इसके लिए तैयार हो गईं और शादी संपन्न हो गई। शादी की रात उनकी सास ने उन्हें दो चीजें सौंपीं – घर की चाबी और एक जीवन बीमा पॉलिसी।
मंदिरा के पति को दिल की बीमारी थी और मंदिरा को घर संभालने की जिम्मेदारी लेने के लिए कहा गया, क्योंकि इतने वर्षों से उनकी सास ने ही जिम्मेदारी उठायी थी।
मंदिरा तिलमिलाते हुए अपने कमरे में गईं और सोचने लगीं कि क्या करना सही होगा। उनके पति ने उन्हें दबी नजरों से देखा और स्वीकार किया कि वह अपनी माँ के खिलाफ खड़े नहीं हो सके, जिन्हें उनकी शादी देखने की बहुत इच्छा थी। लेकिन मंदिरा वहां से जाने और शादी तोड़ने के लिए स्वतंत्र थी क्योंकि उन्होंने ऐसी स्थिति में फंसने की उम्मीद नहीं की थी जो उन्हें सिर्फ गर्त में ही ले जानेवाली थी।
मंदिरा को निर्णय लेना था और उन्होंने लिया भी। वह रुक गईं।
मुश्किलों का सामना करते समय धैर्य का परीक्षण
उनके पति असम सरकार के जल संसाधन विभाग में एग्जीक्यूटिव इंजीनियर थे। शादी के शुरुआती वर्षों में, उनकी सेहत ठीक थी। लेकिन जब उन्हें चलने फिरने में मुश्किल होने लगी तो उनकी तबीयत बिगड़ने लगी।
इससे पहले कि वे अपनी शादी की 10 वीं सालगिरह मना पाते, उन्हें बिस्तर पर आराम करने और घर से काम करने की सलाह दी गई। मंदिरा के जीवन का अगला एक दशक अपने पति की देखभाल करने और अपने बेटे का पालन-पोषण करने में बीता।
“यह दोष देने या खुद पर तरस खाने का समय नहीं था। मुझे हर समय बदलती परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार रहना था,” वह याद करते हुए बताती हैं।
उन्हें आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ा और समय के साथ जमा पूंजी भी खत्म होने लगी।
उन्होंने अपना घर गिरवी रख दिया और अंत में उसे बेचना पड़ा। उनका परिवार किराए के एक छोटे से घर में रहने लगा। वह नौकरी नहीं कर सकती थीं क्योंकि उन्हें घर के कामकाज के साथ ही पति, बच्चे और सास की देखभाल के लिए घर पर रहना जरुरी था।
पर मंदिरा बहुत स्वाभिमानी महिला हैं। घर की आर्थिक स्थिति खराब होने के बावजूद वह अपने माता-पिता के घर नहीं लौटीं। वह नहीं चाहती थीं कि उनके माता-पिता अपनी बेटी के लिए गलत फैसला करने पर पछतावा करें। मंदिरा को जल्दी अहसास हो गया कि उन्हें अब आत्मनिर्भर बनना पड़ेगा और अपने परिवार की जीविका चलाने के लिए कुछ करना होगा।
उनके पति व्हीलचेयर पर थे और उन्हें नर्सिंग देखभाल की आवश्यकता थी। उन्हें हर रोज ईसीजी स्कैन, इंजेक्शन और दवा के लिए अस्पताल ले जाना पड़ता था। उनकी सेवा के लिए वह फुल टाइम नर्स रखने का खर्च नहीं उठा सकती थीं। फिर मंदिरा ने स्थानीय अस्पताल के एक डॉक्टर, डॉ. नोरेन दत्ता की देखरेख में कुछ दिनों तक ट्रेनिंग ली। वह खाने बनाने, सफाई करने, माली, बच्चे और बड़ों की देखभाल करने और घर का कामकाज देखने के अलावा एक नर्स की भी भूमिका निभा रही थीं। यहां तक कि उन्होंने वरिष्ठ विशेषज्ञ के अंडर कार्डियोलॉजी असिस्टेंट के रूप में भी कुछ दिन काम किया।
कुछ अतिरिक्त आय अर्जित करने के लिए उन्होंने कई घरेलू व्यवसायों जैसे बेकिंग, फूलों की व्यवस्था करना और जन्मदिन की पार्टियां आयोजित करने में अपना हाथ आजमाया। उन्होंने ड्राइविंग भी सीखी और लोन लेकर एक एसयूवी गाड़ी भी खरीदी। इससे उन्हें अपने पति को उनके चेकअप के लिए ले जाने और व्हीलचेयर में बैठाने में आसानी हो जाती थी।
इसी दौरान उन्होंने एक साहसिक निर्णय लिया। उन्होंने देर रात और तड़के सुबह कैब ड्राइवर के रुप में काम करने का फैसला किया। एक बार एक ग्राहक को एयरपोर्ट पर छोड़ने जाना था और वह उसे लेने दो मिनट देरी से पहुंची। वह रास्तेभर उनके ऊपर चिल्लाता रहा जबकि उन्होंने उसे समय पर एयरपोर्ट पहुंचा दिया था। बाद में उन्हें पता चला कि वह एक स्थानीय राजनीतिज्ञ था।
इस तरह की हर घटना और दुनिया का अनुभव होने के बाद मंदिरा में अलग-अलग लोगों से निपटने का आत्मविश्वास जगा। वह अपने हर छोटे मकसद में कामयाब होती गईं और सबसे जरुरी बात यह कि उन्हें अपनी काबिलियत पर विश्वास होने लगा।
वह कहती हैं, “मुझे लगातार खुद को उन सभी कामों को करने के लिए चैलेंज करना पड़ा जो मैंने कभी सपने में भी करने का नहीं सोचा था, ताकि मैं अपना लक्ष्य पूरा करने में कामयाब हो सकूं, जो अपने आत्मसम्मान के साथ मेरे परिवार के भी हितों से भी जुड़ा था।”
ग्राउंड-जीरो से अपने तरीके से काम करने की शुरुआत
28 वर्षीय वह एक साधारण सी गृहिणी एक बार बिना अपॉइंटमेंट के जिला कलेक्टर के कार्यालय में चली गईं और उनसे मिलने के लिए जोर दिया। जब उन्हें जिला कलेक्टर से मिलने दिया गया तो उन्होंने अपनी स्थिति के बारे में बताते हुए कहा कि वह अपने बीमार पति, सास और एक बच्चे की जीविका चला रही हैं और उनके पास घर का किराया देने के लिए पैसे नहीं हैं। उनके पति आधिकारिक आवास के हकदार थे, लेकिन इतने सालों तक कार्यालय का चक्कर लगाने के बावजूद उन्हें नहीं दिया गया था। उन्होंने जिला कलेक्टर से कहा कि वह अपनी समस्या के समाधान के बिना कार्यालय से वापस नहीं जाएंगी।
इस पर इस अधिकारी ने कुछ अन्य अधिकारियों से सलाह ली और बताया कि उन्हें एक अलग जमीन आवंटित की जाएगी जिस पर वह अपना घर बनाकर अपने पति के रिटायरमेंट तक रह सकती हैं और फिर उसे वापस कर दें।
मंदिरा ने इसे चुनौती के रूप में लिया। उन्होंने छह महीने में अकेले अपने दम पर उस छोटी सी जमीन में फूलों और सब्जियों की खेती के साथ ही एक छोटी सी झोपड़ी बनायी। आसपास के इलाकों से लोग यह देखने के लिए आने लगे कि उन्होंने एक सुनसान जगह पर बंजर जमीन को क्या से क्या बना दिया।
इससे मिली सहानुभूति और तारीफ से उनका हौसला बढ़ता गया। जिससे उन्हें अहसास हुआ कि वह अपने जैसी दूसरी महिलाओं की कैसे मदद कर सकती हैं। यहीं से सत्सारी (उनका एनजीओ) का विचार आया।
2001 में उनके पति की मृत्यु के बाद जब घर खाली करने का समय आया तो उसी समय उन्होंने सत्सारी लॉन्च किया। इसका अर्थ ‘अखंडता और गरिमा‘ था और उनके एनजीओ के लिए एक अच्छा नाम था। जो अपने जीवन को बेहतर बनाने में मदद करने के लिए ज्ञान, कौशल और संसाधनों के साथ महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए समर्पित था।
2002 में पंजीकृत सत्सारी ने बड़े पैमाने पर विकास किया और संस्था को कई जगह से फंड भी मिलने लगे। मंदिरा कहती हैं, ”मैं बस वही करती रही जो मेरे लिए मायने रखता था और जिससे मेरे आसपास की महिलाओं की जरूरतें पूरी हो जाती थी। मैं सत्सारी से जुड़ने वाली महिलाओं की संख्या से बेखबर थी, लेकिन मुझे आश्चर्य तब हुआ जब 2010 में मेरी टीम ने मुझे बताया कि हम 10,000 से अधिक महिलाओं तक पहुंच चुके हैं। ”
विचारों को फैलाने और लागू करने की गति बढ़ी
जब आसपास के गांवों की लड़कियां उनके पास आने लगीं और काम पर रखने का उनसे अनुरोध करने लगीं तब उन्हें अपना अनुभव याद आया और उन्होंने लड़कियों को बुनियादी नर्सिंग देखभाल में प्रशिक्षित करने के बारे में सोचा।
उन्होंने ‘मंदिरा सॉल्यूशन’ की स्थापना की, जहां लड़कियों को प्रशिक्षित कर घरों, नर्सिंग होम, वृद्धाश्रम और अन्य संस्थानों में काम दिलाया जाता था। 2010 में स्थापित इस संस्था में हर साल 25-30 लड़कियों को प्रशिक्षित किया जाता था। नर्सिंग स्कूल ने उन्हें अन्य पहलों को आगे बढ़ाने के लिए स्वतंत्र रखते हुए आर्थिक सुरक्षा प्रदान की।
कैब ड्राइवर का अनुभव होने के कारण उबर और ओला के बाज़ार में आने से पहले उन्हें पता था कि लोगों को हवाई अड्डे तक पहुंचाने में एक बढ़िया स्कोप है। बढ़ती मांग का ख्याल रखते हुए उन्होंने दो और कारों को सर्विस में लगाया, ताकि एनजीओ में थोड़े और पैसे आ सके। कई महिलाओं ने ड्राइविंग की ट्रेनिंग ली और कैब ड्राइवर का काम करके अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत की।
मंदिरा द्वारा नियुक्त दो कैब ड्राइवर कृष्णा कांता पाठक और रिंकू डेका ने बाद में अपनी खुद की ट्रैवल एजेंसी शुरू कर ली। रिंकू कहती हैं, “हमने सोचा नहीं था कि हम एक दिन उद्यमी बनेंगे? हमारी काबिलियत पर भरोसा करके मंदिरा ने हमें अपने ऊपर भरोसा करना सिखाया और बाकी इतिहास सबके सामने है।
मंदिरा की टैक्सी सेवा बाद में एक ट्रैवल एजेंसी में बदल गई जो वर्तमान में उनके बेटे चलाते हैं।
जागरूकता कार्यक्रमों के प्रशिक्षण से लेकर राहत कार्य प्रदान करने के लिए उन्होंने अधिक से अधिक महिलाओं तक पहुंचने के लिए अपने नेटवर्क का विस्तार निवासी कल्याण संघों, स्कूलों, विश्वविद्यालयों, राज्य सरकार और अन्य गैर-सरकारी संगठनों से जुड़कर किया। इन कामों के लिए फंड जुटाने की व्यवस्था चल रही थी।
आज तक मंदिरा अपने काम की गति को बनाए रखने के लिए बचत करती हैं। वह मानती हैं कि सत्सारी का झंडा बुलंद रहना चाहिए।
समय के साथ इस एनजीओ से अधिक से अधिक लोग जुड़ते गए। कुछ ने विशेषज्ञता और सेवाएं प्रदान की, दूसरों को प्रेरक वार्ता देने के लिए और कई ने फंड परियोजनाओं, विशेष ड्राइव और सार्वजनिक कार्यक्रमों की पेशकश की। असम राज्य संस्कृति और महिला और बाल विकास विभाग नियमित रूप से अभियानों और अन्य सामूहिक गतिविधियों के लिए धन का वितरण करने के लिए आगे रहता है।
सत्सारी संस्था की पदाधिकारी रह चुकी डॉ. प्रतिमा देवी शर्मा कहती हैं, “मंदिरा बरुआ की करिश्माई शख्सियत और प्रेरणादायक कहानी इस एनजीओ की सबसे खास बात है। उन्होंने इस संस्था की तरह अपने जीवन की बाकी चीजें भी अपने दम पर बनायी हैं। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि असम की उपेक्षित लड़कियां और महिलाएं उन्हें अपना रोल मॉडल मानती हैं और उन्हें लगता है कि यदि वे उनके साथ जुड़ी रहीं तो वे भी अपने जीवन की सभी बाधाएं दूर कर लेंगी। यह एक शक्तिशाली और रहस्यमय शक्ति है, जो सत्सारी को ठीक से संभाल रही है। ”
2018 में सत्सारी ने अक्टूबर में हर साल मनाया जाने वाला असम का प्रसिद्ध त्योहार बिहू नृत्य सबसे अधिक महिला प्रतिभागियों के साथ विश्व रिकॉर्ड का अनूठा गौरव अर्जित किया।
मंदिरा बताती हैं, “अपनी समृद्ध असमिया संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय मंच पर लाना और दुनिया को यह दिखाना मेरा सपना था कि यह कितना सुंदर, संगीतमय और उत्सव है और यह कैसे पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को एक साथ लाता है।“
उसने गाने का एक विशेष सेट बनाया और 7-10 लड़कियों के साथ अपने आंगन में रिहर्सल शुरू किया। वीडियो बनाकर पूरे राज्य के विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों को फॉरवर्ड किया गया।
मंदिरा और उनकी टीम ने ऊपरी असम क्षेत्र के गांवों का दौरा किया। 60 से अधिक सांस्कृतिक संगठनों और अन्य सामाजिक नेटवर्क के माध्यम से उन्होंने लड़कियों और महिलाओं को जुटाया जो गीत और नृत्य के जरिए “जरूरत के समय में एक-दूसरे के साथ खड़ी रहने वाली महिलाओं” का संदेश दे सकती थीं।
31 मार्च 2019 को सत्सारी ने 700 नासोनी (महिला बिहू नर्तकियों) और 150 धुलिया (पुरुष बिहू नर्तकों) का नृत्य आयोजित किया और गुवाहाटी में लाइव प्रदर्शन किया। इस विश्व रिकॉर्ड को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स 2020 में दर्ज किया जाएगा।
महिलाओं के लिए एक रोल मॉडल
आज सत्सारी की 5,000 से अधिक महिलाएं रोजगार कर रही हैं। इससे उन्हें अपनी खुद की लड़ाई लड़ने, शोषण से निपटने, दहेज के लिए मना करने, उत्पीड़न और घरेलू शोषण के लिए खड़े होने, यौन शोषण के मामलों और किसी अन्य हिंसा के खिलाफ खड़े होने का आत्मविश्वास जगा है।।
घुनासा डेका 2006 के आसपास सत्सारी से कुछ सालों तक जुड़ी रही और नर्सिंग कोर्स सहित कई सुविधाओं और सेवाओं का लाभ उठाया। आज वह सोनपुर, असम में जिला सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र में हेड नर्स हैं। वह कहती हैं, ” एक महिला द्वारा संचालित वह संस्था उन महिलाओं को रास्ता दिखाती है जिसके लिए सभी रास्ते बंद हो जाते हैं। सत्सारी ने हमेशा सभी पृष्ठभूमि और धर्मों की महिलाओं को गले लगाया है और उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए बहुत कुछ किया है। हमें कई और ऐसे संगठनों की आवश्यकता है क्योंकि अभी भी अनगिनत महिलाएं हैं जो बाहर कदम रखने और मदद लेने से डरती हैं। ”
51 साल की मंदिरा बरुआ असम में एक जाना माना चेहरा और नाम है, जिन्हें उद्घाटन समारोह और कार्यक्रमों में बुलाया जाता है। उन्हें टेलीविजन टॉक शो में अक्सर आमंत्रित किया जाता है। उन्हें अंग्रेजी भाषा न आने का दुख है जिसे वे जल्द ही सीख लेंगी। भविष्य में सत्सारी की योजना अधिक महिलाओं को आर्थिक रूप से निर्भर और मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ बनाना है। वह आशा करती है कि असमिया युवा लड़कियां अपनी कला और संस्कृति पर गर्व करती रहेंगी और आधुनिकता के नाम पर इसे खत्म नहीं होने देंगी।
उन्हें जो ख्याति मिली है, वह उससे अभिभूत हैं। एक घटना को वह बेहद यादगार मानती हैं जब एयरपोर्ट के लिए दो मिनट देर होने पर एक राजनीतिज्ञ ने उन्हें भला बुरा कहा था। एक दिन उसी राजनीतिज्ञ का फोन आया और उसने अपनी गलती के लिए उनसे माफी मांफी और उनके काम के लिए उन्हें बहुत सम्मान दिया। उसने मंदिरा की काफी प्रशंसा की।
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हालांकि उनके पति अब जीवित नहीं है, लेकिन उन्होंने अपनी सास के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाकर रखा है और किसी के प्रति कोई बुरा व्यवहार नहीं रखती है।