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400 सेक्स वर्कर्स के लिए मसीहा हैं 70 वर्षीय अरूप, लॉकडाउन में भी पहुँचाते रहे राशन

हम सबके लिए मदर टेरेसा की कहानी एक प्रेरणा की तरह है। दूसरों की भलाई के लिए उन्होंने जो भी नेक काम किए, उनकी पूरी दुनिया में मिसाल दी जाती है। आज हमारे आस-पास भी ऐसे बहुत से लोग हैं, जो दूसरों के जीवन को संवारने में जुटे हुए हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही शख्स से रू-ब-रू करवाने जा रहे हैं।

यह कहानी है कोलकाता में रहने वाले अरूप सेनगुप्ता की। बहुत सी मुश्किलों से लड़कर अरूप को नया जीवन मिला और फिर उन्होंने ठान लिया कि वह अपना जीवन लोगों के लिए समर्पित करेंगे। आज वह जहाँ भी जाते हैं, उनका ऑक्सीजन सिलिंडर उनके साथ होता है। लगभग 7 साल पहले उन्हें पता चला कि उन्हें क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) नाम की बीमारी है। लेकिन यह बीमारी भी उन्हें उनके अभियान को अंजाम देने से नहीं रोक पाई। इससे पहले अरूप ट्यूबरक्लोसिस के मरीज़ रह चुके हैं और काफी मुश्किलों के बाद उन्होंने इस बीमारी को हराया था और अब  भी वह लगातार आगे बढ़ रहे हैं। 

उन्होंने सेक्स वर्कर्स और उनके बच्चों के जीवन को संवारने के लिए ‘नोतून जीबोन’ नामक एनजीओ की शुरुआत की। इसका मतलब है नया जीवन। अरूप कहते हैं, “मैं अपनी आखिरी साँस तक ज़रूरतमंदों की सेवा करता रहूँगा। मेरा एक ही उदेश्य है, जरूरतमंदों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाना। मेरी कोशिश जारी रहेगी।” 

उन्होंने अपने संगठन की शुरुआत लगभग 4 साल पहले की थी। आज यह संगठन 40 से भी ज़्यादा सेक्स वर्कर्स के बच्चों के जीवन को संवार रहा है और इसने बहुत सी महिलाओं को घरेलू हिंसा से भी बचाया है। 

मुसीबत से हुई थी शुरुआत:

Arup and his older sister.

1952 में अरूप का जन्म एक समृद्ध परिवार में हुआ था। लेकिन कुछ सालों बाद उन पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। 1968 में उन्होंने अपने पिता को खो दिया और इस सदमे में उनकी माँ नशे की आदि हो गईं। घर चलाने के लिए उनकी बड़ी बहन को डांस बार में काम करना पड़ा। यह सब चल ही रहा था कि अरूप को ट्यूबरक्लोसिस यानी कि टीबी की बीमारी हो गई। 

“साल 1968 में, जब हमारे पड़ोसियों को मेरी टीबी की बीमारी का पता चला, तो उन्होंने हमें वह जगह खाली करने पर मजबूर कर दिया। आज जैसे लोग कोविड-19 के मरीजों से मुँह फेर रहे हैं, उसे देखकर मुझे वह वक़्त याद आता है,” उन्होंने कहा।

जब अरूप को कहीं से सहारा नहीं मिला, तो उन्हें एक शेल्टर होम में जगह मिली। वह बताते हैं कि उस जमाने में टीबी ने बहुत से लोगों की ज़िंदगियाँ लीं। “मुझे याद है कि कैसे टीबी के मरीजों को एक कमरे में रखा जाता था, जहाँ हमने मौत को बहुत करीब से देखा। जब भी मशीन पर बीप की आवाज़ होती तो हमें पता चल जाता कि हमने फिर किसी को खो दिया है,” उन्होंने बताया। 

Playing the drums.

उस बदकिस्मत कमरे से सैकड़ों लोगों में सिर्फ दो लोग जीवित लौटे और जिनमें से एक अरूप थे। दो साल की लगातार देखभाल के बाद, अरूप एक बार फिर सामान्य जीवन जीने लगे। 

नोतून जीबोन- नया जीवन 

अरूप सब कुछ खो चुके थे। फिर भी, उन्हें जीवन में दूसरा मौका मिला। उन्होंने शादियों और अन्य अवसरों में गिटार और ड्रम बजाने तक का काम किया ताकि वह पढ़ सकें। कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु में 45 से अधिक वर्षों तक एफएमसीजी और मानव पूंजी प्रबंधन क्षेत्रों में कॉर्पोरेट दुनिया में काम किया।

चार साल पहले जब उन्होंने कॉर्पोरेट जगत से रिटायरमेंट ली, तो अरूप ने कोलकाता में बसना चुना। “मैं बीस साल बाद अपने घर अपने शहर लौट रहा था,” वह कहते हैं।

लेकिन यहाँ उन्होंने एक बदला हुआ कोलकाता देखा।

Work at Notun Jibon

“एक युवा लड़के के रूप में मैंने जिस शहर को छोड़ा था, वह बदल गया था। मैंने गरीबी, उदासीनता को यहाँ देखा। रात को भूखे पेट किसी को नहीं सोना चाहिए। ताकि जब मैं उपरवाले से मिलूं तो मेरे पास जवाब हो, मैं उन्हें बता सकूं कि मैंने दुनिया में बदलाव लाने के लिए क्या किया,” उन्होंने कहा।  

31 दिसंबर 2016 को उन्होंने 10,000 रुपये के कंबल खरीदें ताकि ज़रूरतमंदों में बाँट सकें। और यहीं से ‘नोतून जीबोन’ की शुरुआत हुई। 

2016 में, उन्होंने इसे ट्रस्ट के रूप में पंजीकृत किया। इस संगठन का प्राथमिक उद्देश्य ज़रूरतमंद बच्चों को पढ़ाना है, और अब उन्होंने महिलाओं और सेक्स वर्कर्स के लिए एक स्वयं सहायता समूह भी बनाया है।

गरीब और ज़रूरतमंद बच्चों व महिलाओं के लिए काम:

Working during the pandemic.

संगठन में आठ महिलाएं कार्यरत हैं, जिन्हें नारी शक्ति टीम के रूप में जाना जाता है, ये सभी वंचित पृष्ठभूमि से हैं और कुछ पूर्व सेक्स वर्कर हैं। ये नोतून जीबोन का प्रबंधन करते हैं और शिक्षकों, प्रबंधकों और फंडराइज़र जैसी विभिन्न भूमिकाओं में काम करते हैं। नोतून जीबोन की सचिव झुमकी बनर्जी कहती हैं, ”अरूप दा ने मुझे एक बुरी शादी से बचाया। मैं उन्हें चार साल से ज़्यादा समय से जानती हूँ। वह लगातार काम कर रहे हैं।” झुमकी सभी फील्डवर्क देखती हैं और संगठन की एक ट्रस्टी भी हैं।

अरूप को नारी शक्ति टीम पर भरोसा है कि उनके पास बच्चों और उनकी दूसरी बहनों के साथ काम करने की ताकत है। वह कहते हैं कि उनके लिए यह बहुत संतोष की बात है कि अगर वह कल को न भी रहें तब भी उनका काम कुशल हाथों में आगे बढ़ेगा। इन महिलाओं के अलावा, नौ पुरुष हैं जो संगठन के साथ अपनी इच्छा से काम करते हैं।

Not a moment to lose. Arup Sengupta – TB Survivor

सेक्स वर्कर्स के जिन बच्चों को उन्होंने बचाया है, उनके लिए उन्होंने नोतून जीबोन की एक सब यूनिट, सहज पथ भी शुरू की है। 3 से 12 साल के बच्चे हर शाम कक्षाओं के लिए आते हैं और उन्हें दूध और एक केला दिया जाता है। स्वयंसेवक इन बच्चों को बुनियादी शिक्षा प्रदान करते हैं – जैसे पढ़ना-लिखना सिखाना और गणित पढ़ाना।

महामारी के दौरान काम:

जो बच्चे महामारी के दौरान पढ़ने नहीं आ पाए उन्हें संगठन द्वारा साप्ताहिक राशन पैकेज दिया जा रहा था। इसमें तीन किलो चावल, दो किलो आलू, आधा किलो दाल, और सरसों का तेल शामिल है। हर सुबह अरूप, झुमकी और दूसरे स्वयंसेवी, सुबह गाड़ी में सामान के साथ मास्क रखकर बांटने निकल जाते थे। वैसे तो कोविड-19 में गांवों में ज़िन्दगी चल ही रही है लेकिन खाने की कमी वहाँ पड़ने लगी थी और अरूप की टीम ने इस कमी को पूरा किया। साथ ही, उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि उनके एनजीओ के सभी कर्मचारियों और वॉलंटियर्स को सैलरी मिले। 

अब तक उन्होंने 400 सेक्स वर्कर्स को राशन और खाने की कोई कमी नहीं होने दी। झुमकी कहतीं हैं, “अरूप दा ऐसे व्यक्ति हैं जो अगले वक़्त के खाने के बारे में चिंतित नहीं होते हैं। अगर उनकी जेब में 20 रुपये हैं और उनसे कोई मदद मांग ले तो वह अपने लिए 5 रुपये रखकर बाकी दूसरों को दे देंगे।” 

Ration distribution during the COVID-19 pandemic.

फंडिंग के बारे में अरूप कहते हैं, “इतने सालों में बहुत से मददगार जुड़े हैं। सोशल मीडिया पर एक पोस्ट और बहुत से लोग मदद के लिए आगे आ जाते हैं। मैंने 45 साल की अपनी जमा-पूँजी भी इस संगठन में ही लगा दी है।” 

आखिर में, वह सिर्फ यही कहते हैं कि उनके जीवन के अब जितने भी साल बचे हैं उन्हें वह दूसरों की मदद के लिए ही समर्पित करते रहेंगे। 

यदि आपको हमारी इस कहानी से प्रेरणा मिली है और आप अरूप सेनगुप्ता से संपर्क करना चाहते हैं तो उनकी संस्था की वेबसाइट पर जा सकते हैं। 

मूल लेख: विद्या राजा

संपादन – जी. एन झा

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