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अंडे के छिलकों तक में पौधे उगातीं हैं यह गृहिणी

क्या आपने कभी यह ध्यान दिया है कि आपके घर से निकलने वाले कचरे में बहुत सी ऐसी चीजें भी होती हैं, जिनका आप फिर से इस्तेमाल कर सकते हैं? रसोई से निकलने वाले गीले और जैविक कचरे से खाद बनाने के बारे में तो बहुतों को पता है और यह काम उनके दैनिक जीवन का हिस्सा भी बन चुका है। लेकिन बात जब प्लास्टिक, कांच या किसी अन्य तरह के कचरे की आती है तो लोग सोच में पड़ जाते हैं। खासकर घर में आने वाली वैसी प्लास्टिक की थैलियां, जिनमें आटा, चीनी, चायपत्ती, ओट्स, चावल आदि आते हैं। 

लोग बाजार से रसोई के इन सामानों को, स्टील के डिब्बों या कपड़े की थैलियों में नहीं ला सकते हैं। इसलिए, ज्यादातर घरों में प्लास्टिक की थैलियां इकट्ठा हो जाती हैं। कोई इन प्लास्टिक की थैलियों को अलमारियों में बिछाने के काम में लेता है तो बहुत से लोग इन्हें किसी कोने में सहेजकर रख देते हैं। लेकिन आज भी ज्यादातर लोग,  इन थैलियों को सामान निकालने के बाद, सीधा डस्टबिन का रास्ता दिखा देते हैं। जहां से ये प्लास्टिक किसी लैंडफिल या पानी के स्त्रोत में पहुँच कर, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। 

अब सवाल यह है कि इस समस्या का समाधान क्या हो? जवाब बड़ा आसान है, आप इन थैलियों को फिर से इस्तेमाल कर लें। ऐसा करने के बहुत ही आसान तरीके बता रही हैं, पश्चिम बंगाल में कोलकाता के पास नैहाटी की रहने वाली नीता सिंह। 

Nita Singh

नीता सिंह लगभग तीन सालों से अपने घर से निकलने वाली इन प्लास्टिक की थैलियों को अपने बगीचे के लिए इस्तेमाल कर रही हैं। वह कहती हैं, “मुझे बचपन से ही बागवानी का शौक रहा है। लेकिन पिछले कुछ सालों से मैं नियमित रूप से अपने घर के आंगन और छत पर बागवानी कर रही हूँ। मैं अपने बगीचे में कई तरह के फल-फूल तथा मौसमी सब्जियां भी उगाती हूँ।”

नीता सिंह के बगीचे की सबसे अच्छी बात यह है कि उनके बगीचे में बाजार से खरीदे गए गमले बहुत ही कम हैं। उन्होंने इन प्लास्टिक की थैलियों के ‘ग्रो बैग’ बनाकर, इनमें पौधे लगाए हुए हैं। वह बताती हैं कि उनके घर से बहुत ही कम कचरा निकलता है। गीले और जैविक कचरे से वह खाद बना लेती हैं और प्लास्टिक के कचरे को फिर से इस्तेमाल करने की कोशिश करती हैं। अब तक वह 150 से भी ज्यादा प्लास्टिक की थैलियों के ग्रो बैग बना चुकी हैं।

वह कहती हैं कि इसके कई फायदे हैं:

Best out of waste

वह कहतीं हैं, “आजकल हर जगह देश को स्वच्छ रखने की बातें हो रही हैं। लेकिन, देश को स्वच्छ रखने का मतलब यह नहीं है कि आप अपने घर के कचरे को नगर पालिका को दें। सही मायने में स्वच्छता तब आएगी, जब हम अपने घरों से निकलने वाले कचरे को कम करेंगे।”

उनके घर में हमेशा कचरे के दो अलग-अलग डिब्बे रहते हैं। एक सूखे कचरे के लिए और दूसरा ऐसे कचरे के लिए जिसमें खाद बनाई जा सके। अपने बगीचे के लिए, वह खाद भी खुद बनाती हैं। नीता सिंह कहती हैं, “मेरे सात साल के बेटे को भी यह पता है कि किस डस्टबिन में कौन सा कचरा डालना है। कचरा फेंकने से पहले, मेरे दोनों बच्चे हमेशा मुझसे पूछते हैं कि किस डस्टबिन में कौन-सा कचरा डालना है। उनके मन में बचपन से ही यह बात बैठ गयी है कि घर से कम से कम कचरा निकलना चाहिये।”

#DIY Planters

नीता सिंह के छोटे-छोटे कदम पर्यावरण के लिए कितने कारगर हैं, यह तो उन्हें नहीं पता। लेकिन उनकी इन कोशिशों से, उनके बच्चों पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। 

कैसे बना सकते हैं ग्रो बैग:

प्लास्टिक की थैलियों से ग्रो बैग बनाना बहुत ही आसान है। इसके लिए, सबसे पहले यह जरुरी है कि आप इन्हें खाली करते समय बहुत ही ध्यान से काटें। ताकि ऊपर का एक छोटा सा ही हिस्सा कटे और थैली को इस्तेमाल किया जा सके। 

Fold the both of the corners and paste with cello tape

प्लास्टिक की थैलियों के अलावा, नीता सिंह पौधे उगाने के लिए प्लास्टिक के डिब्बों, बेकार बाल्टियों, पुराने बर्तनों और नारियल के खोल तक का इस्तेमाल करतीं हैं। इसके साथी ही, बीज से पौध बनाने के लिए प्लास्टिक की ‘सीडलिंग ट्रे’ की जगह, वह अंडों के छिलकों का इस्तेमाल कर रहीं हैं। 

अंडे के छिलकों को खाद बनाने के लिए तो इस्तेमाल किया ही जाता है। लेकिन आप इन्हें छोटे-छोटे पौधे उगाने के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं। नीता कहतीं हैं, “अंडे का छिलकों में पौध लगाने का फायदा यह है कि आप इन्हें सीधा ही गमलों या ग्रो बैग में लगा सकते हैं। आपको इनमें से पौधे निकालने की जरूरत नहीं पड़ती है क्योंकि अंडे के छिलके मिट्टी में जाकर खाद का काम करते हैं।”

Using Eggshells to plant seeds

उनका उद्देश्य बागवानी करते हुए लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक और संवेदनशील बनाना है। इसलिए, वह अपने इन प्रयासों को अपने यूट्यूब चैनल और इंस्टाग्राम पेज के जरिए लोगों से साझा भी करती हैं। 

अंत में नीता सिंह सिर्फ यही कहती हैं, “जरा सोचिए, अगर हर एक घर में इसी तरह कचरे के प्रबंधन पर जोर दिया जाए तो हमारे शहरों में लगने वाले ये कचरे के ढेर, धीरे-धीरे खत्म होने लगेंगे। लेकिन, दूसरों पर निर्भर रहने से कोई बदलाव नहीं आता है। इसलिए खुद बदलाव की शुरुआत करें।”

नीता सिंह की सोच और उनके प्रयास काबिल-ए-तारीफ हैं। 

अगर आप नीता सिंह से संपर्क करना चाहते हैं तो उनके इंस्टाग्राम पेज पर उनसे जुड़ सकते हैं। 

संपादन – प्रीति महावर

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