मीर सुल्तान ख़ान: कहानी एशिया के पहले ग्रैंडमास्टर की, जिन्हें कहा जाता था शतरंज का जीनियस
खेल इतिहास पर नज़र डालें, तो पता चलेगा कि कई ऐसे भारतीय खिलाड़ी रहे, जिन्होंने न सिर्फ़ देश बल्कि विदेश में भी भारत का नाम रोशन किया। एक ऐसे ही खिलाड़ी थे मीर सुल्तान खान, जिन्हें शतरंज का जिनियस कहा जाता था!
मीर सुल्तान ख़ान का जन्म 1903 में पंजाब के खुशाब ज़िले के मीठा तिवाना में हुआ था और बचपन से ही उन्हें शतरंज खेलने का शौक़ था।
उन्हें शतरंज के दांव-पेच सिखाने वाले उनके पिता मियां निज़ाम दीन थे। 21 साल की उम्र में वो पंजाब प्रांत में शतरंज के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के रूप में जाने गए।
1928 में आयोजित हुए ‘ऑल इंडिया चेस चैंपियनशिप’ में शानदार प्रदर्शन के साथ सुल्तान ने जीत अपने नाम की और इसके अगले साल ही लंदन जाकर वहां का इंपीरियल चेस क्लब ज्वाइन कर लिया।
यहां रहकर मीर सुल्तान ने चेस के इंडियन फ़ॉर्मेट से अलग पश्चिमी फ़ॉर्मेट को समझा और फिर ब्रिटिश चेस चैंपियनशिप में बड़े-बड़े दिगज्जों को हराकर इसमें भी जीत दर्ज की।
इस ऐतिहासिक जीत के बाद उन्हें यूके और यूरोप से खेलने के आमंत्रण आने लगे। उन्होंने यूरोप में कई टूर्नामेंट में भाग लिया, जिसमें Scarborough Tournament, Hamburg Olympiad और Lige Tournament आदि शामिल थे।
इसके बाद वह मीर सुल्तान दुनियाभर में शतरंज के जीनियस कहलाने लगे। उन्हें एंड गेम का मास्टर माना जाता था और वह खेल के बीच ख़ुद को कंट्रोल करते हुए कठिन स्थितियों से भी बाहर आ जाया करते थे।
1933 में सुल्तान देश वापस आ गए और विभाजन के बाद उन्होंने अपनी पत्नी और बेटों के साथ पाकिस्तान में रहने का फ़ैसला किया। 1966 में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।
आज मीर सुल्तान खान के नाम पर शायद धूल की परत जम गई है; लेकिन शतरंज के खेल को आगे बढ़ाने में उनका जो योगदान रहा है, उसके बाद हर देशवासी को उनके बारे में जानना और गर्व करना ज़रूरी है।
आज मीर सुल्तान खान के नाम पर शायद धूल की परत जम गई है; लेकिन शतरंज के खेल को आगे बढ़ाने में उनका जो योगदान रहा है, उसके बाद हर देशवासी को उनके बारे में जानना और गर्व करना ज़रूरी है।