Lady Bose: जिनके प्रयासों से मिला महिलाओं को वोट का अधिकार!

खेल हो या अंतरिक्ष, साहित्य हो या विज्ञान; आज हम हर क्षेत्र में महिलाओं की कामयाबी पर गर्व करते हैं, लेकिन एक समय ऐसा ता जब लड़कियों के आगे बढ़ने के लिए ज़्यादा दरवाज़े नहीं खुले थे।

उस वक्त भारतीय समाज में सती प्रथा, विधवाओं का बहिष्कार, बाल विवाह जैसी कई कुप्रथाएं थी और इसे रोकने में बंगाली कवि, शिक्षाविद, और सामाजिक कार्यकर्ता कामिनी राय ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई।

लेकिन, क्या आपको पता है कि यह वास्तव में उनकी सहपाठी और सहेली अबला बोस थीं, जिन्होंने कामिनी को महिलाओं की स्थिति सुधारने की दिशा में प्रयास करने के लिए प्रेरित किया था।

अबला का जन्म 8 अगस्त 1865 को बरिसल में हुआ था और वह शुरू से एक ऐसे माहौल में पली-बढ़ीं जहाँ महिलाओं की शिक्षा को विशेष प्राथमिकता दी जाती थी।

अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद, अबला ने बेथ्यून कॉलेज में दाखिला ले लिया। इसके बाद वह मेडिसीन की पढ़ाई के लिए मद्रास विश्वविद्यालय चली गईं।

23 साल की उम्र में उनकी शादी जगदीश चंद्र बोस से हुई, जिन्हें रेडियो साइंस के पितामह के रूप में जाना जाता है।

1916 में  जगदीश चंद्र बोस को नाइटहुड की उपाधि मिली और अबला को 'लेडी बोस' के नाम से जाना जाने लगा। उन्हें अपने पति के सफलता का प्रेरणास्त्रोत माना गया।

इसके बाद अबला ने देश में महिलाओं की स्थिति में सुधार का ज़िम्मा अपने कंधे पर उठाया। इसी कड़ी में वह 1910 में, ब्रह्मो बालिका शिक्षालय की सचिव बनीं और अगले 26 वर्षों तक उन्होंने इस जिम्मेदारी को निभाया।

अबला ने अपने पूरे जीवन में कुल 88 प्राथमिक विद्यालय और 14 शिक्षा केंद्र शुरू किए। विधवाओं की स्थिति सुधारने के लिए कार्य किया और देश की महिलाओं को सामाजिक कुरीतियों से मुक्त कर, एक सम्मानित जीवन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

देश को आज़ादी मिलने के बाद, अबला द्वारा महिलाओं को शिक्षित, आत्मनिर्भर और आर्थिक स्वतंत्रता के प्रयासों को सरकार ने भी ज़रूरी माना और उनके विचार, सरकारी नीतियों का अभिन्न अंग बन गए।