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भारत की इन बेहद सुंदर और प्राचीन कलाओं को देखकर खुश हो जाएंगे आप...

मधुबनी चित्रकला

यह मिथिलांचल क्षेत्र जैसे बिहार के दरभंगा, मधुबनी व नेपाल के कुछ क्षेत्रों की प्रमुख चित्रकला है। मधुबनी जिले का जितवारपुर गांव इस लोक चित्रकला का मुख्य केंद्र है।

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शुरुआती दौर में यह चित्रकला रंगोली के रूप में बनाई जाती थी, फिर धीरे-धीरे आधुनिक रूप में कपड़ो, दीवारों और कागज़ पर उतर आई।

इस चित्रकला में खासतौर पर हिन्दू देवी-देवताओं की तस्वीर, प्राकृतिक नज़ारे जैसे सूर्य व चंद्रमा, धार्मिक पेड़-पौधे जैसे तुलसी और विवाह के दृश्य देखने को मिलेंगे।

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थांका चित्रकला

यह चित्रकला भगवान बुद्ध के जीवन और उनकी शिक्षाओं पर आधरित है, इसलिए इसे बौद्ध चित्रकला या आध्यात्मिक चित्रकला भी कहते हैं।

इसके ज़रिए तिब्बती धर्म, संस्कृति और मूल्यों को दर्शाया जाता रहा है। इसे सामान्य तौर पर धुले हुए सूती कपड़े पर बनाया जाता है।

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इस चित्रकला का नाम प्राचीन दिनों में महाराष्ट्र में रहने वाले एक छोटे से जनजातीय वर्ग से जुड़ा हुआ है।

वर्ली चित्रकला

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इस चित्रकला का नाम प्राचीन दिनों में महाराष्ट्र में रहने वाले एक छोटे से जनजातीय वर्ग से जुड़ा हुआ है।

वर्ली चित्रकला

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इसमें वर्ली जीवन शैली को पेड़, पक्षी और नर-नारी जैसी सरल आकृतियों के ज़रिए खूबसूरती से दिखाया जाता है।

फर्श चित्रकला (पट चित्रकला)

यह उत्तर प्रदेश में चाक पूर्ण, उत्तराखंड में एपन, राजस्थान में मंडाना, आंध्र प्रदेश में मगुल्लू, बिहार में अरिपाना, पश्चिम बंगाल में अल्पना और केरल में कलमा जट्टू जैसे अलग-अलग नामों से जानी जाती है।

इसे सामान्य तौर पर त्योहार, व्रत, पूजा, उत्सव विवाह आदि शुभ अवसरों पर सूखे और प्राकृतिक रंगों से बनाया जाता है।

कालीघाट चित्रकला

माना जाता है कि इस चित्रकला की उत्पत्ति लगभग 19वीं सदी में कोलकाता के कालीघाट मंदिर में हुई थी।

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इस शैली की चित्रकला में मुख्यतः हिन्दू देवी-देवताओं और पारम्परिक कथाओं के पात्रों का चित्रण देखने को मिलता है।

कलमकारी चित्रकला

यह एक हस्तकला का प्रकार है जिसमें हाथ से सूती कपड़े पर रंगीन ब्लॉक से छाप बनाई जाती है।

मुख्य रूप से यह कला भारत के आंध्र प्रदेश राज्य के कृष्णा जिले के मछलीपट्टनम में प्रचलित है।

पट्टचित्र कला

'पट्ट' का अर्थ 'कपड़ा' होता है। यह ओड़िशा की पारम्परिक चित्रकला है।

इस चित्रकला में सुभद्रा, बलराम, भगवान जगन्नाथ, दशावतार और कृष्ण के जीवन से संबंधित दृश्यों को दर्शाया जाता है।

पिथोरा चित्रकला

पिथोरा एक अनूठी आदिवासी चित्रकला शैली है, जो मूल रूप से गुजरात के राठवा जनजाति और राजस्थान, मध्यप्रदेश के कुछ हिस्सों में बनाई जाती है।

पिथोरा पेंटिंग इन जनजातियों के लिए एक धार्मिक काम की तरह है।  इसमें घोड़े, सूर्य, चांद और गतिविधियां, जैसे खेती, शिकार, जुताई, नृत्य, गायन का चित्रण होता है।

इसे बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला ब्रश बांस की छड़ियों से बना होता है। यह पेंटिंग न केवल दीवारों पर, बल्कि कपड़े, कागज़, कार्डबोर्ड आदि पर भी की जाती है।