भारत के अनसुने नायक!, जिसे समाज ने डॉक्टर बनने से रोका, उसी ने दिलाई प्लेग से मुक्ति
डॉ. पद्मनाभन पल्पू, जिनको आज केरल के एक बड़े समाज सुधारक और प्रतिष्ठित डॉक्टर के रूप में याद किया जाता है।
क्या आप जानते हैं? एक समय पर उनको शिक्षा हासिल करने का अधिकार भी नहीं दिया गया था।
जिसका कारण था उनका एझावा जाति में जन्म लेना। उस समय इस जाति के लोगों को मात्र ताड़ी की खेती करने का ही अधिकार था।
2 नवंबर 1863 को त्रिवेंद्रम में जन्मे, पल्पू ने 1883 में मैट्रिक पास किया।
इसके बाद त्रावणकोर मेडिकल प्रवेश परीक्षा में दूसरे स्थान पर रहने के बावजूद, उनका आवेदन उनकी जाति के कारण खारिज कर दिया गया था।
एक छात्र के रूप में पल्पू इन सामाजिक बुराइयों को मिटाना चाहते थे।
बड़ी मुश्किलों के बाद 1885 में पल्पू को मद्रास मेडिकल कॉलेज में एडमिशन मिला। 1889 में उन्हें 'लाइसेंस इन मेडिसिन एंड सर्जरी' (LMS) की डिग्री दी गई।
डॉक्टर की डिग्री होने के बावजूद उन्हें त्रावणकोर के चिकित्सा विभाग में जातिवाद के कारण नौकरी नहीं मिली,जिसके बाद उन्होंने 1891 में मैसूर चिकित्सा विभाग में काम करना शुरू किया।
यहाँ काम करते हुए उन्हें बड़ौदा सरकार के स्वच्छता सलाहकार और बेंगलुरु में वैक्सीन संस्थान के अधीक्षक के रूप में काम करने का मौका भी मिला।
अगस्त 1898 में जब, बेंगलुरु में प्लेग फैला था, तो उन्हें "शहर में प्लेग शिविरों का अधीक्षक" बनाया गया।
उन्होंने नारायण गुरु स्वामी के साथ मिलकर श्री नारायण धर्म परिपालन योगम (SNDP) नाम के एक संगठन की स्थापना भी की थी।
जो केरल में कई सामाजिक सुधार आंदोलनों का अहम हिस्सा रही।
एझावा समुदाय की सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक उन्नति में भी इसका अहम योगदान रहा।
यह डॉ. पद्मनाभन पल्पू के कठिन प्रयासों का ही नतीजा है कि आज केरल के मुख्यमंत्री एझावा समुदाय से ही ताल्लुक रखते हैं।
आशा है, आपको इतिहास के इस नायक की कहानी जरूर रोचक लगी होगी।