एक स्टोव जो बचा सकता है 80% ऊर्जा,जानिए कैसे हुआ इसका अविष्कार!!
इम्फाल के रहने वाले मैबम देबेन सिंह ने एक ऐसे Cooking Cum Drying Stove का आविष्कार किया है, जिससे 80 फीसदी ईंधन की बचत हो सकती है।
साल 2011 में देबेन को पता चला कि उनकी बहन को लंग कैंसर है। डॉक्टरों ने सलाह दी कि उन्हें अपनी बहन को धुएं से किसी भी हाल में बचाना होगा,
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उस वक्त उनके घर की हालत इतनी अच्छी नहीं थी कि वह LPG सिलेंडर का खर्च उठा पाते।
पेशे से लोहार, देबेन ने अपनी बहन को धुएं से बचाने के लिए एक तरकीब निकाली और कुछ दिनों में ही लकड़ी या चारकोल से जलने वाला एक ऐसा चूल्हा बनाया, जिसमें धुआं बिल्कुल नहीं होता।
जब उनका स्टील और एल्युमिनियम से बना पहला प्रोटोटाइप तैयार हो गया, तो उन्होंने इसके बारे में अपने बेटे थोईथोई को बताया।
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थोईथोई इस स्टोव की अहमियत को तुरंत समझ गए और उन्होंने इसे ‘एमियोनू स्टोव’ नाम देते हुए, नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन से संपर्क किया।
स्टोव के निचले हिस्से में उन्होंने एक स्टील का ट्रे लगा दिया।
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इस तरह आविष्कार हुआ पहले Cooking Cum Drying Stove का!
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देबेन के इस इनोवेशन के लिए साल 2017 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया।
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इस Cooking Cum Drying Stove का फ़ायदा यह है कि इससे लोगों को खाना बनाने और ड्राई करने के लिए दो अलग-अलग मशीनें ख़रीदने की ज़रूरत नहीं है।
इस खास स्टोव को लकड़ी, चारकोल, नारियल के छिलके जैसे कई चीज़ों पर चलाया जा सकता है। इसमें कम ईंधन के बावजूद, कंपल्शन इतना ज़्यादा होता है कि धुएं के लिए कोई जगह नहीं होती।
अगर LPG चूल्हे पर 10 लीटर पानी गर्म होने में 30 मिनट लगते हैं, तो इसमें 15-17 मिनट में ही हो जाएगा। वहीं, बाकी चूल्हे की तुलना में इसमें 60 से 80 फीसदी ईंधन की बचत भी होती है।
देबेन अब तक सौ से ज़्यादा यूनिट बेच चुके हैं। उनके पास दो तरह के वेरिएंट हैं, एक चूल्हे वाले ड्रायर की कीमत जहां 7.5 हज़ार रुपये है। वहीं, दो चूल्हे वाले ड्रायर की कीमत 20 हज़ार रुपये है।