करीबन 27 साल पहले, आर्किटेक्ट रेवती कामथ ने सूरजकुंड, फरीदाबाद में अपना घर बनाया। तब वह इसके ज़रिए, सस्टेनेबल घर का बढिया उदाहरण पेश करना चाहती थीं।
लोगों का मानना है कि मिट्टी की ईंटे बारिश में ज़्यादा नहीं चलतीं, लेकिन उन्होंने साबित किया कि मिट्टी में सुखाई हुई ईंटों में भी काफी ताकत है।
उनके घर को बनाने में महिलाओं और बुजुर्गों का सबसे ज़्यादा योगदान है। जबकि पक्के घरों के कंस्ट्रक्शन में आप महिलाओं को बस सामान ढोते ही देखते हैं।
प्लास्टर के लिए मिट्टी और गोबर का इस्तेमाल हुआ है। उन्होंने दिल्ली के कई पक्के घरों में मिट्टी का प्लास्टर करके एक नया लुक दिया है।
छत और नींव सहित इस पूरे कंस्ट्रक्शन में केवल 0.3 प्रतिशत सीमेंट इस्तेमाल हुआ है। बाकि की सारी चीजें 100% रीसायकल हो सकती हैं।