कहने को तो पृथ्वी का एक-तिहाई हिस्से में पानी ही पानी है। लेकिन इस पानी का बहुत ही कम अंश पीने के लिए उपलब्ध है और जो उपलब्ध है वह भी धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है। भूजल स्तर में कमी इस बात का संकेत है कि यदि बड़े पैमाने पर सही कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले वक्त में धरती पर पानी ही नहीं बचेगा।
उत्तराखंड के पहाड़, जहां से कई नदियों का उद्गम है, अगर वहीं पानी की किल्लत होने लगे तो बाकी राज्यों की स्थिति का अंदाज़ा तो हम लगा ही सकते हैं। जी हाँ, पिछले कुछ सालों में उत्तराखंड के जिलों में भी नदियों का आकार घटा है और लोग छोटे-छोटे जल स्त्रोत पर निर्भर हो गए हैं। विडम्बना की बात यह है कि इन जल स्त्रोतों से भी कोई-कोई परिवार ही अपने घर-खेत तक पानी ला पाता है। लेकिन इन सबके बीच नैनीताल में रामगढ़ ब्लॉक के कई गांवों में आज पानी की समस्या दूर हो गई है।
यह संभव हुआ है ‘उत्तराखंड जनमैत्री संगठन’ की सामुदायिक स्तर पर मेहनत और लगातार कोशिशों से। इस संगठन के सदस्य, 49 वर्षीय बची सिंह बिष्ट बताते हैं, “हमारी कोई पंजीकृत संस्था या एनजीओ नहीं है। ग्रामीणों ने मिलकर एक अभियान चलाया हुआ है और हम सभी मिलकर समय-समय पर ग्रामोत्थान के लिए काम करते रहते हैं। इन सभी विकास कार्यों के लिए हमारी सबसे बड़ी ताकत है श्रमदान। हम सभी गाँव के लोगों से अभियान के विषय पर चर्चा करते हैं और फिर सभी कामों में उनसे श्रमदान मांगते हैं। इसी तरह मिल-जुलकर हम स्वयं अपनी परेशानियों को दूर करने में जुटे हैं।”
जनमैत्री संगठन पिछले कई सालों से जल, जंगल और ज़मीन को बचाने के लिए प्रयासरत है। पहाड़ों में स्वच्छता अभियान से लेकर पौधारोपण और वर्षा जल संचयन तक, हर कदम पर संगठन काम कर रहा है। बची सिंह बताते हैं कि साल 1992 में इस संगठन को शुरू किया गया था। तब से ही सभी ने निश्चित किया कि हम गाँव के लोग मजदूरी करें, खेती- बागवानी करें, घोड़ा चलाएं या कोई अपना रोजगार करें। लेकिन उनसे उम्मीद की जाती है कि अपने परिवेश को संरक्षित करने के लिये कुछ वक्त दें।
समाज शास्त्र विषय से एमए करने वाले बची सिंह गांधी जी के विचारों से प्रभावित हैं। गांधी जी के ग्राम विकास के आदर्शों से प्रभावित होकर उन्होंने जनमैत्री संगठन शुरू किया। इस संगठन ने अब तक महिला सशक्तिकरण, जंगल संरक्षण, जल-संरक्षण और अवैध कब्जों को रोकने के लिए काम किया है। पिछले कुछ सालों से वह गांवों में पानी पर काम कर रहे हैं। बची सिंह बताते हैं, “हमारे गाँव फल पट्टी में आते हैं। यहां पर सेब, आडू जैसे फलों के काफी पेड़ हैं और यदि फसल अच्छी हो जाए तो मुनाफा भी अच्छा हो जाता है। लेकिन पिछले कुछ सालों से पानी की किल्लत से सभी किसानों का बुरा हाल था। सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं को होती थी क्योंकि उन्हें दूर-दराज से पानी लाना पड़ता था।”
साल 2015 में संगठन का संपर्क एक सामाजिक संस्था ‘सेवा निधि’ से हुआ, जिन्होंने सूपी के पास पाटा गाँव को जलवायु परिवर्तन के अध्ययन के लिए चुना था। उन्होंने अपने प्रोग्राम के बारे में संगठन के लोगों से चर्चा की और बताया कि कैसे जलवायु परिवर्तन की वजह से जीवन के हर एक पहलू पर प्रभाव पड़ रहा है। उनके साथ जुड़कर जनमैत्री संगठन के लोगों ने पानी पर काम करने की ठानी। उन्होंने ऐसे सस्ते उपाय खोजे जिससे कि प्राकृतिक स्त्रोतों के और बारिश के पानी को संरक्षित किया जा सके।
बची सिंह और उनकी टीम ने जल-संरक्षण के लिए पॉलिथीन से कृत्रिम तालाब बनाए। वह बताते हैं कि इसकी शुरूआत पाटा गाँव से ही की गई। यहाँ पर 90 परिवार रहते हैं और हर एक परिवार के लिए उन्होंने तालाब बनाए। इस तरह से 90 कृत्रिम तालाब बने। सबसे पहले लोगों के घरों के आस-पास या फिर खेतों में पक्के गड्ढे बनाए गए और फिर इसमें पॉलिथीन बिछाई गई। इन तालाबों में छत से सीधा पाइप लगाकर बारिश का पानी और प्राकृतिक जल स्त्रोतों से भी पाइप की सहायता से पानी इकट्ठा किया जाता है। जिन लोगों के घर प्राकृतिक जल स्त्रोत से दूर हैं या फिर जिनके पास इतने साधन नहीं कि वह कोई व्यवस्था कर सकें। उन परिवारों की मदद दूसरे परिवार करते हैं।
जब एक तालाब भर जाता है तो इससे पाइप लगाकर दूसरे घर के तालाब को भरा जाता है। इस तरह मिल-जुलकर इन गाँव के लोगों ने अपनी तकदीर बदली है। पाटा गाँव की ही तरह और कई गांवों में ऐसे तालाब बनाए गए हैं। एक तालाब की क्षमता 10 से 12 हज़ार लीटर पानी की है। अब तक बनाए गए 312 तालाबों में यह ग्रामीण लगभग 75 लाख लीटर पानी सहेज रहे हैं।
उन्होंने बताया, “हमारे गाँव में पानी की इस समस्या को दूर करने में सबसे अहम भूमिका निभाई है महिलाओं ने। सभी तालाबों को बनाने का काम श्रम दान से किया गया और इस पूरे कार्य को महिलाओं ने संभाला। इसके अलावा, बागवानी और जंगल को बचाने में भी महिलाएं बढ़-चढ़ कर भाग ले रही है। सबसे अच्छा यही है कि पिछल कुछ समय में हमारे यहां स्त्रियों के प्रति सम्मान बढ़ा है।”
पानी की किल्लत दूर होने से अब इन गांवों में अच्छी उपज हो रही है। इन गांवों की सफलता को देखकर और भी इलाके के लोग जनमैत्री संगठन से संपर्क कर रहे हैं। बची सिंह कहते हैं कि आगे उनकी योजना छोटी नदियों को बचाने की है। जिन भी नदियों का उद्गम स्थल उनके इलाके में है, उसे वह संरक्षित करने के प्रयासों पर काम कर रहे हैं। साथ ही, उन्होंने लोगों को जैविक खेती के बारे में जागरूक करना भी शुरू किया है। लॉकडाउन के बाद, वह जहरमुक्त खेती का अभियान चलाएंगे ताकि किसानों को जैविक खेती से जोड़ा जा सके।
बची सिंह ने कहा, “ग्राम विकास के लिए सबका साथ बेहद ज़रूरी है। इसलिए हम ग्राम पंचायतों के साथ मिलकर काम करेंगे। इस लॉक डाउन में एक सबक हमने यह भी सीखा है कि किसानों को बिचौलियों से बचकर सीधा ग्राहकों से जुड़ना चहिये। तभी हम एक सस्टेनेबल मॉडल बना सकते हैं। हम किसान भाइयों को जैविक के साथ-साथ प्रोसेसिंग प्रक्रिया से भी रू-ब-रू कराएंगे ताकि उन्हें उनकी मेहनत का सही दाम मिले।”
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यदि आपको इस कहानी ने प्रेरित किया है और आप बची सिंह बिष्ट से संपर्क करना चाहते हैं तो उन्हें 8958381627 पर कॉल करें!